Diseases Prevention of Amla Crop: आंवला भारतीय मूल का एक महत्वपूर्ण फल है. भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसे धात्री, आमलकी, अमला, आमलकी, नेल्ली, अमलाकामू तथा अमोलफल के नाम से जाना जाता है. भारत में आंवले की खेती सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में की जाती है. इसके लिए लवणीय एवं क्षारीय मृदा उपयुक्त मानी जाती है. इसके अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु के अर्ध शुष्क क्षेत्रों में तथा हरियाणा के अरावली क्षेत्रों में आंवले की खेती की जाती है.
लगने वाले रोग-
आंवले का टहनी झुलसा
बरसात के मौसम में टहनी झुलसा का रोग आंवले के पौधों पर लग जाता है. टहनियों का झुलसना और पौधों के ऊपर से नीचे तक का पूरा तना सुखने लगता है. इससे बचाव के लिए नर्सरी में फसल को छायांकन से बचायें और समय-समय पर कार्बेन्डाजिम या मैन्कोजेब का निरंतर छिड़काव करते रहें.
पत्तियों पर धब्बा पड़ना
बरसात के दिनों में पौधे के पत्तों पर पानीनुमा धब्बे दिखाई देते हैं. यह 2 से 3 सेंटीमीटर व्यास के होते हैं और पत्तो के सिरे जले हुई दिखाए देते हैं. कैप्टॉन या कार्बेन्डाजिम के छिड़काव से इसे नियंत्रित किया जा सकता है.
आंवले का रतुआ
इस रोग में पत्तियों, पुष्प शाखाओं और तने पर रतुआ रोग के कारण इसकी पत्तियों पर नारंगी रंग के फफोले पड़ जाते हैं. इसके नियंत्रण के लिए डाईथेन-जेड और वेटएबल सल्फर का छिड़काव करना चाहिए.
सूटी मोल्ड
पौधे की पत्तियों, टहनियों और फूलों की सतह पर काले रंग के कवक बन जाना सूटी मोल्ड के लक्षण होते हैं. यह रोग केवल सतह तक ही नहीं, पौधों को अंदर से भी खोखला करने लगता है. रस चूसने वाले कीट इस रोग को फैलाते हैं, जैसे तिला, सफ़ेद मख्खी आदि. इससे बचाव के लिए पौधों पर नियमित रुप से स्टार्च तथा लैम्ब्डा कयहलोथ्रिन का छिड़काव करते रहना चाहिए.
लाइकेन
लाइकेन बड़े पेड़ के तने की सतह पर पाए जाते हैं. यह पेड़ के मुख्य तने और शाखाओं पर अलग अलग आकार के सफेद, गुलाबी, सतही पैच के रूप में देखें जा सकते हैं. इससे बचाव के लिए पौधे की शाखाओं पर जूट की बोरी रगड़ना तथा कास्टिक सोडा के छिड़काव से शाखाओं पर चिपके लाइकेन नियंत्रण किया जा सकता है.
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आंवले का गीली सड़न
यह रोग सामान्य रूप से नवंबर और दिसंबर के बीच दिखाई देता है. इसके लगने से फल का आकार विकृत हो जाता है और उस पर भूरे और काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. फलों में कवक अपरिपक्व और परिपक्व दोनों अवस्था में लग जाता है. इससे बचने के लिए फलों को चोट से बचाएं तथा नवंबर माह के दौरान डाइथेन एम -45 या बाविस्टिन के छिड़काव से फलों का उपचार करें.