जीरा राजस्थान और गुजरात में रबी के मौसम में ली जाने वाली प्रमुख फसल है. यह फसल किसान को जितना अधिक आमदनी देने वाली फसल है उतनी ही अधिक रोग एवं कीट के प्रति असहनशील फसल है. फसल को मौसम बदलाव से सबसे अधिक नुकसान होता है, खासकर जब बादल छाए हो. जीरे की फसल में प्रमुख रोग एवं इनका प्रबंधन इस प्रकार है-
उकठा/विल्ट: यह रोग फ्यूजेरियम नामक मृदाजनित एवं बीजजनित कवक के कारण होता है, जो जड़ों से हमला कर पौधे को नष्ट कर देता है. यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में आक्रमण कर सकता है, किन्तु शुरुआती अवस्था में जब पौधे छोटे ही होते है, तब प्रकोप अधिक देखा गया है. इसके लक्षण सबसे पहले पत्तियों में देखे जा सकते हैं. इस रोग में पत्तियाँ पीली पड़ जाती है और पौधा मुरझा जाता है. पौधे प्राय हरे ही मुरझा जाते हैं. रोग ग्रस्त पौधे की जड़ों को चीर कर देखा जाये तो उसमें लम्बी काले रंग की धारियाँ दिखाई देगी. इस रोग की शुरुआत खेत में छोटे छोटे खंडों में होती है उसके बाद रोग आगे चलकर पूरे खेत को अपनी चपेट में ले लेता है.
रोकथाम हेतु समाधान:
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इसके नियंत्रण के लिए गर्मी में खेत की गहरी जुटाई करे ताकि हानिकारक रोगाणुओं को नष्ट किया जा सके.
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जिस खेत में उकटा रोग आ चुका है वहाँ जीरा की फसल 3 वर्ष तक नही लेना चाहिए.
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कम से कम 3 वर्ष तक जीरा-ग्वार-गेहूं-सरसों का फसल चक्र अपनाना चाहिए.
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बीजों को कार्बेण्डजीम 50% WP 2 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज या जैविक फफूंदनाशी ट्राइकोडर्मा विरिडी से 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचारित करना चाहिए.
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खेत में उकटा रोग के लक्षण दिखाई देने पर एक किलो जैविक फफूंदनाशी ट्राइकोडर्मा विरिड को एक एकड़ खेत में 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर खेत में मिला दे उसके तुरन्त बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें.
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रासायनिक उपचार हेतु कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP की 300 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.