Maize Farming: रबी सीजन में इन विधियों के साथ करें मक्का की खेती, मिलेगी 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार! पौधों की बीमारियों को प्राकृतिक रूप से प्रबंधित करने के लिए अपनाएं ये विधि, पढ़ें पूरी डिटेल अगले 48 घंटों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में घने कोहरे का अलर्ट, इन राज्यों में जमकर बरसेंगे बादल! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 6 December, 2020 10:10 AM IST
Commercial Lentil Farming

भारत में मसूर की खेती एक प्रमुख दलहनी फसल के रूप में की जाती है. इसकी बुआई रबी सीजन में अक्टूबर-नवंबर माह में की जाती है. इसका उपयोग दाल समेत अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है. देश के कुछ राज्यों में मसूर की पैराक्रापिंग खेती का चलन भी है. जैसे झारखंड में खड़ी धान की फसल में मसूर की बुआई कर दी जाती है. जब धान की फसल काट ली जाती है तब मसूर की फसल लहलहा उठती है. तो आइए जानते हैं मसूर की खेती के दौरान सिंचाई प्रबंधन कैसे करें.

मसूर की खेती में खाद एवं उर्वरक प्रबंधन (Manure and Fertilizer Management in Lentil Cultivation) 

मसूर की अच्छी पैदावार के लिए प्रति हेक्टेयर यूरिया 55 किलोग्राम, डीएपी 44 किलोग्राम, पोटाश 85 किलोग्राम और जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम डालना चाहिए. बुआई समय एक साथ सभी खाद एवं उर्वरक को मिलाकर डालना चाहिए.  

मसूर की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management for Lentil Cultivation)

इसकी खेती सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्र में की जाती है. खेत की तैयारी के बाद पलेवा करके की मसूर की बुवाई की जाती है. इसके बाद इसमें सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है. हालांकि आपके पास पानी के पर्याप्त साधन है तो एक सिंचाई फूल आने या बोवनी के 40 से 45 दिन के बाद कर सकते हैं. ज्यादा पानी मसूर की फसल को हानि पहुंचाता है. इसलिए बुवाई के बाद एक सिंचाई से ज्यादा नहीं करना चाहिए. 

मसूर की खेती के लिए निराई गुड़ाई प्रबंधन (Weeding hoe management for Lentil Cultivation)

बुवाई के 50 दिनों के अंदर मसूर में खरपतवार को नियंत्रित रखना अत्यंत आवश्यक होता है. दरअसल, यह फसल की बढ़वार में बाधा बनता है. मावठा गिरने के कारण मसूर की फसल में खरपतवार की अधिकता हो सकती है ऐसे में यदि फसल के दौरान मावठा गिर जाने में अच्छे से निराई-गुड़ाई करना चाहिए. ताकि खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकें.

मसूर की खेती के लिए रोग नियंत्रण (Disease control for lentil cultivation)

इसमें उकठा रोग बेहद तीव्र लगता है जिससे फसल ख़राब हो जाती है. इसके नियंत्रण के लिए बुआई से पहले मृदा और बीज को उपचारित करना चाहिए. वहीं फसल चक्र में बदलाव करने पर भी उकठा रोग कम लगता है. वहीं मसूर में गेरूआ रोग का भी प्रकोप रहता है. गेरूआ रोग के नियंत्रण के लिए सही समय पर डायथिन एम 45 का छिड़काव करना चाहिए.

मसूर की खेती के लिए कीट नियंत्रण (Pest control for lentil cultivation)

वहीं मसूर में माहो, पत्ती छेदक और फली छेदक कीट का प्रकोप रहता है. माहो के नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस (15 एमएल मात्रा ) प्रति 1 मिली लीटर में घोल बनाकर छिड़काव करें. जबकि पत्ती और फली छेदक के लिए संशोधित कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए.

मसूर की खेती के लिए कटाई (Harvesting of lentils)

मसूर की कटाई उस समय करें जब यह हरे से भूरे रंग की होने लगे. कटाई सुबह-सुबह उस समय करना चाहिए जब मौसम में नमी रहती है. इससे बीज कम झड़ता है और उत्पादन अच्छा होता है. बीज कटाई के बाद खलिहान में मसूर को अच्छी तरह सुखाने के बाद डंडों से पीटकर बीज को निकालना चाहिए.

मसूर की खेती के लिए उपज (Yield for lentil cultivation)

यदि अच्छी मसूर की अच्छी किस्म की बुवाई की जाती है तो सिंचित क्षेत्र में प्रति हेक्टयर 15 से 16 क्विंटल की उपज ली जा सकती है. वहीं असिंचित क्षेत्र से 8 से 10 क्विंटल की पैदावार होती है.

English Summary: How to manage lentil cultivation
Published on: 06 December 2020, 10:25 AM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now