वातावरण में लगभग 80% नाइट्रोजन है लेकिन यह पेड़-पौधों के लिए स्टॉक में मौजूद नहीं होने की वजह इस्तेमाल में नहीं है. वातावरणीय नाइट्रोजन को पौधों के लिए उपलब्ध कराने के लिए मिट्टी में मौजूद कुछ जीवाणुओं की प्रजाति सहयोग करती है. इन जीवाणु के माध्यम से किया जाने वाला यह कार्य नाइट्रोजन स्थिरीकरण या यौगिकीकरण कहलाता है. और वातावरण से गैसीय नाइट्रोजन अमोनिया के रूप में स्थिर हो जाती है. इस प्रक्रिया में इसे पौधे और मिट्टी में उपस्थित कुछ जीव अमीनो अम्ल में बदलकर पौधों की बढ़वार और विकास में वृद्धि करते हैं. दलहनी फ़सलों की जड़ों में गांठे बनती है जिसमें राइजोबियम जीवाणु होते है जो वातावरणीय नाइट्रोजन को पौधों के लिए उपलब्ध अवस्था में बदल देते हैं, लेकिन फसल की शुरूआती अवस्था में ये गांठे नहीं बनती. इस तरह ये नाइटोजन पौधों और मिट्टी में मिलकर उपजाऊ क्षमता बढ़ाती हैं.
प्रयोगशाला में राइजोबियम और अन्य जीवाणुओं को मल्टीप्लाई किया जाता है जिसे हम कल्चर के रूप में जानते है. दलहनी फसलों के अलावा अन्य फसल में भी ये कल्चर उपलब्ध है. प्रकाश संश्लेषण में पौधे वायु की कार्बन डाई ऑक्साइड गैस से कार्बोहाइड्रेट को संश्लेषित करते है जिसकी कुछ मात्रा पौधे की जड़ों में आ जाती है. जिसे ये जीवाणु अपनी ऊर्जा स्त्रोत के रूप में उपयोग लेते हैं. इस प्रकार ये जीवाणु पौधे को नाइट्रोजन देते है और पौधे जीवाणुओं को कार्बोहाइड्रेट देते हैं जिसे सहजीवन संबंध कहा जाता है.
नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु (Nitrogen fixing bacteria)
राइजोबियम जीवाणु (Rhizobium bacteria): ये दलहनी फसलों की जड़ों में सहजीवी रूप में पाए जाते हैं, जो नाइट्रोजन पौधों को उपलब्ध कराते है. ये राइजोबियम प्रजाति इस प्रकार है- राइजोबियम मेलीलोटी-मेथी, राइजोबियम टा्रइफोली- बरसीम, राइजोबियम लेग्यूमिनोसेरम-मटर और मसूर, राइजोबियम फेसीयोली- सेम, राइजोबियम जेपोनिकम- अरहर, लोबिया, मूँगफली और सोयाबीन के लिए उपयुक्त प्रजाति हैं.
एजोटोबेक्टर जीवाणु: ये असहजीवी जीवाणु धान्य और सब्जी वर्गीय फसलों को नाइट्रोजन देते हैं.
एजोस्पाइरीलम जीवाणु: धान्य और मोटे अनाज के लिए वायु से नाइट्रोजन हासिल करते हैं.
नीलहरित शैवाल: ये प्रकाश संश्लेषण शैवाल है, जो धान की फसलों में वायु से नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं.
एनाबीना: अवायु स्थिति में नाइट्रोजन उपलब्ध कराता है.| एजोला की पंखुड़ियों में एनाबिना नामक नील हरित काई जाति का एक सूक्ष्मजीव होता है जो सूर्य के प्रकाश में वायुमंडलीय नत्रजन का यौगिकीकरण करता है और हरे खाद की तरह फसल में नाइट्रोजन की पूर्ति करता है.
एजोला: जैव-उर्वरक के रूप में, एजोला वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पत्तियों में संग्रहीत करता है, इसलिए इसे हरी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. धान के खेत में एजोला चावल के उत्पादन में 20% वृद्धि करता है. यह फसल के लिए उपलब्ध नाइट्रोजन और कार्बनिक कार्बन सामग्री को मिट्टी में उपलब्ध कराता है. ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण की वजह से उत्पन्न ऑक्सीजन फसलों की जड़ प्रणाली श्वसन के साथ-साथ अन्य मिट्टी के सूक्ष्मजीवों को भी सक्षम बनाता है. एजोला कुछ हद तक रासायनिक नाइट्रोजन उर्वरकों (20 किलोग्राम/ हेक्टेयर) का विकल्प हो सकता है और यह फसल की उपज और गुणवत्ता को बढ़ाता है.
रासायनिक उर्वरक की मात्रा में होगी कमी (Chemical fertilizer dose will decrease)
जैविक नाइट्रोजन के इस्तेमाल रासायनकि उर्वरक के इस्तेमाल में कमी की जा सकती है, जिससे लागत में कमी आएगी और रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल की वजह जो मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम हो रही है उसे कम किया जा सकता है. ये जीवाणु पौधों के पोषण के लिए महत्वपूर्ण अवयव है जिसे टिकाऊ खेती की नीव के लिए जरूरी समझा जाता है. इसकी मात्रा से जमीन को नाइट्रोजन मिल जाती है जिससे रासायनिक उर्वरक की मात्रा बहुत कम देनी पड़ती है.
बीज उपचार में जीवाणु कल्चर का उपयोग कैसे करें? (How to use bacterial culture in seed treatment)
जीवाणु कल्चर के जरिए बीज का उपचार किया जा सकता है. बीज उपचार के लिए 50 ग्राम गुड़ को आधे लीटर पानी में मिलाकर घोल बना लें और इसे उबाल लें. जब घोल उबलकर ठंडा हो जाए तो इस गाढ़े घोल में 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर मिला दें. और फिर एक किलो बीज इसमे ठीक से मिला दें. इसके बाद उपचारित बीज को छाया में सूखाने के बाद उसी दिन बुवाई करें.
जीवाणु कल्चर से मिट्टी के उपचार की विधि (Soil treatment method from bacterial culture)
इस विधि में 4-5 किलो जीवाणु कल्चर को 50-60 किलो कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद में अच्छी तरह से मिला दें. इस मिश्रण को अंतिम जुताई या खड़ी फसल में सिंचाई के साथ दें. जिससे इन जीवाणुओं के साथ-साथ मिट्टी की संरचना में भी सुधार होता है.