खाने में स्वादिष्ट व मिठास से भरपूर ऐप्पल बेर को सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है. गोला, डींग, स्मॉली, पेबदी, तसीना, काठा, एप्पल. उत्तर प्रदेश के मथुरा में पैदा होता है यह सेब. वाले सेब की वैरायटी के नाम है. इसमें एप्पल सेव ने ब्रज के बाजारों में काफी धूम मचा रखी है. स्मॉली और गोला बेर की भी इस जगह पर मांग बढ़ती ही जा रही है.
एप्पल बेर के बाग मशहूर
मथुरा के चौमुंहा के पास स्थित जीएलए विश्वविद्यालय से दिल्ली की ओर को आने वाले नेशनल हाइवे से ठीक एक किलोमीटर में बेर के कई बाग होते है. करीब सौ साल पहले आझई गांव में पलवल में से कलम लाकर बेर की खेती शुरू की गई थी. उस समय तक किसी को नहीं पता था कि यह इलाका एक दिन एप्पल बेर प्रजाति के लिए इस कदर तक मशहूर होगा. हाल ही में जय किसान अभियान के दौरान जीएलए विश्वविद्यालय में चौपाल लगाई थी. इसमें जगदीश ने ड्रिप इरीगेशन व एप्पल खेती के जानकार संजीव निवासी चौमुंहा से मुलाकात की. जानकारी लेने के बाद जगदीश ने जुलाई में अपने चार एकड़ खेत में एप्पल बेर की पौध रोपी.
20 साल तक फल देगा
इसकी फसल मात्र छह महीने में ही तैयार हो जाती है और किसान कुंतल एप्पल बेर को बेच चुके है. इस समय एप्पल बेर 110 रूपये किलो बिक रहा है. इसका एक पौधा लगभग 20 साल तक पैदावार देगा. इसपर 80 रूपये प्रति पौधे के हिसाब से 1240 पौधों को लगाया है जिस पर करीब सवा लाख का खर्चा आया है.
थाईलैंड मूल का फल
एप्पल बेर मूल रूप से थाईलैंड में पाया जाता है. भारत में सबसे पहले जोधपुर में इसका बाग लगाया गया था. प्रोटीन और मिनरल्स सेब जैसे ही होने के कारण इसे एप्पल बेर कहा जाता है. जगदीश ने इसी खेत में पपीता की 'रेड लेडी 786' प्रजाति भी लगा दी. इस पर कुल 15 हजार रूपये का खर्चा हुआ है. बहुफसल खेती की तकनीकी अपनाते हुए खेत में सरसों भी बो दी.सिंचाई पर 1.5 लाख रुपये खर्च कर ड्रिप इरीगेशन सिस्टम लगाया. बेरों की खेती में आमदनी दोगुनी हो गई है.
चौमुहां में किसानों का कहना है कि एप्पल बेर की खेती में 50-60 हजार प्रति एकड़ का रेट रहता है. एक दिन के भीतर एक आदमी कुल एक कुंतल बेर को तोड़ लेता है और जैसे ही सीजन की शुरूआत हो जाती है इसमें बेरों का भाव सौ रूपये प्रति किलो तक मिलता है जिससे काफी फायदा होता है. पैबंदी बेर को सुखा लिया जाता है और छुहारा बनाकर इसे गर्मियों में मंहगी दरों पर बेचा जाता है.