मूंगफली एक तिलहनी फसल होने के साथ-साथ यह दलहनी फसल भी है, जिससे भूमि में नाइट्रोजन की मात्रा मिलती है. इसमें 45 से 50 प्रतिशत तेल तथा 26 प्रतिशत प्रोटीन होता है. ग्रीष्मकालीन मूंगफली फसल से 7 क्विंटल प्रति एकड़ औसत पैदावार होती है जबकि खरीफ की मूंगफली में औसत पैदावार 5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की होती है.
ग्रीष्म कालीन मूंगफली से अधिक पैदावार होने के कई प्रमुख कारण है (There are several major reasons for summer peanut being high yields)
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गर्मी में बीजों का अंकुरण अच्छा होता है जिससे प्रति क्षेत्र पौधों की संख्या अधिक मिल जाती है.
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इस मौसम में खरपतवारों का प्रकोप बहुत कम होता है जिससे फसल की बढ़वार अच्छी होती है और खेत में खरपतवार कम होने से निर्राइ गुर्ड़ाइ पर कम खर्च होता है जिससे उत्पादन लागत कम लगती है.
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नमी की कमी होने से इस मौसम में कीडे़-मकोड़े व बीमारियों का प्रकोप काफी कम होता है.
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यह फसल सिंचित क्षेत्रों में ही उर्गाइ जाती है इस कारण फसल में नमी की कमी नहीं होती है और सूईयाँ व मूंगफली जमीन में आसानी से बढ़ती है.
जलवायु एवं भूमि (Climate and Soil)
फसल के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है, मूंगफली की खेती के लिए दोमट बलुई, बलुई दोमट या हल्की दोमट भूमि अच्छी रहती है. जायद में मूंगफली की फसल के लिए भारी दोमट भूमि में नहीं उगानी चाहिए क्योंकि जमीन के नीचे पोड नहीं बन पाएंगे या आकार कम होगा.
भूमि की तैयारी और बुवाई (Soil preparation and sowing)
मूंगफली के लिए अच्छे जल धारक क्षमता वाली गहरी हल्की या दोमट भूमि अधिक उपयुक्त रहती है. रबी की फसल (जैसे-सरसों इत्यादि) की कटाई के बाद एक गहरी जुताई करें. इसके बाद हेरो या कल्टीवेयर से 2 जुर्ताइ करें और आखिर में खेत को समतल कर लेवें. दीमक की समस्याग्रस्त खेत में, खेत तैयार करते समय क्यूनोलफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 10 किलो प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय मिला दें.ग्रीष्मकालीन मूंगफली में बुवाई समय से करना आवश्यक होता है अन्यथा देरी से बुवाई करने पर फसल देर से पकेगी उस समय यदि वर्षा शुरु हो जाती है तो दाने जमीन के अंदर ही उग जाते हैं. अतः ग्रीष्मकालीन मूंगफली की बुवाई फरवरी के दूसरे सप्ताह से लेकर मार्च के दूसरे सप्ताह तक अवश्य कर देनी चाहिए.
बीज की मात्रा और बीजोपचार (Quantity of seed and Seed treatment)
जायद में झुमका किस्मों का 100 से 120 किलोग्राम बीज (दाना) प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती हैं.भूमि व बीज जनित रोगों से फसल को बचाने के लिए और कीट से फसल की रक्षा करने के लिए बीजों को उपचारित करना आवश्यक है. इसके लिए बाविस्टीन दवा 2 ग्राम या जैविक फफूंदनाशी ट्राइकोडर्मा 8 ग्राम प्रति किलो बीज के लिए काम मे लेवें. इसके बाद बीजों को जीवाणु खाद राइजोबियम कल्चर 3 पैकेट एवं पीएसबी 3 पैकेट प्रति हैक्टेयर से बीज उपचारित करें ताकि नाइट्रोजन और फास्फोरस फसल को मिल सके.
बोने की विधि (Sowing method)
बुवाई कतारों में करें, कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेमी रखें. इस प्रकार करीब 1 लाख 35 हजार पौधे प्रति एकड़ उगेंगे. आवश्यकता से अधिक पौधों को 20 दिन बाद निकाल देना चाहिए और पौधों से पौधों की दूरी में उचित अंतर कर लेना चाहिए.
उन्नत किस्में (Improved varieties)
ग्रीष्मकाल में गुच्छे वाली किस्में अधिक पैदावार देती है इसलिए इन किस्मों का चयन करना चाहिए. अतः जीजेजी 31, टीएजी 24, टी जी 37, प्रताप राज मूंगफली, जी.जी. 2, डी.एच. 86, आर 9251, तथा आर 8808 किस्में अधिक उपयुक्त हैं. बीज की उपलब्धता राष्ट्रीय बीज निगम और मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़ गुजरात में रहती है.
खाद व उर्वरक (Manure and Fertilizer)
उचित पैदावार के लिए खेत की तैयारी के समय 4-6 टन प्रति एकड़ गोबर की खाद अच्छी तरह पुरे खेत में मिला देनी चाहिए. साथ ही 6-8 किलो नाइट्रोजन और 16-24 किलो फास्फोरस प्रति एकड़ की दर से र्बुआइ के समय बीज से 5 से 7 से.मी. नीचे ऊर कर देना चाहिए. इस मात्रा को 12 किलो यूरिया और 140 किलो एसएसपी के द्वारा दिया जाना चाहिए. एस.एस.पी. में फोस्फोरस के अलावा 20 प्रतिशत कैल्शियम और 12 प्रतिशत सल्फर भी होता है और ये दोनों तत्व फली में दाना बनाने के लिए आवश्यक है.
सिंचाई (Water management)
पलेवा के आलावा 6 से 8 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है. इसके लिए फूल निकलते समय, सूईयाँ बनते समय व फली में दाना बनते समय खेत में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए. दाना पकने के बाद सिंर्चाइ नहीं करें नही तों दाने फलियों में उग जायेंगे और उपज पर विपरीत असर पड़ेगा.
निराई-गुडा़ई (Hoeing and Weeding)
पहली निराई-गुड़ाई 15-20 दिन बाद तथा दूसरी 30-35 दिन बाद करनी चाहिए. दूसरी गुड़ाई के समय पौधों की जड़ों के पास मिट्टी भी चढ़ा देनी चाहिए. सूईयाँ बनते समय गुड़ाई नहीं करनी चाहिये.
मूँगफली में रोग (Disease of Peanut crop)
कालर रोट (Collar rot): इस रोग से पौधे का निचला हिस्सा काला हो जाता है व बाद में पौधा सूख जाता है. सूखे भाग पर काली फफंद दिखाई देती है. इसकी रोकथाम के लिए बुआई से 15 दिन पहले 1 किग्रा ट्राईकोडरमा पाउडर प्रति बीघा की दर से 50-100 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर दें. खडी फसल में जड़गलन की रोकथाम के लिये 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में मिलाकर ड्रेंच करे.टिक्का रोग (Tikka): इस रोग में पत्तियो पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए खड़ी फसल में मैंकोंजेब 2 किग्रा मात्रा का प्रति हैक्टेयर में 2-3 छिडकाव करना चाहिए.
फसल की खुदाई (Crop digging and harvesting)
जब पत्तियाँ पीली पड़कर सूखने लग जायें, पौधे मुरझाने लगें, फलियों के छिलके का रंग सुनहरा होने लगे, फलियों के दाने के ऊपर छिलका अधिक चमकदाररंग का हो जाये. इस प्रकार के लक्षण प्रकट होने पर पौधों को खोद कर उखाड़ ले. 8-10 दिन सुखाने के बाद मूंगफली के झाड़कर पौधों से अलग कर लें. भंडारण करते समय नमी 8 प्रतिशत या इससे कम होनी चाहिए. अधिक नमी पर भंडारण करने से दानों में अल्फाटोक्सीन पदार्थ बनना शुरु हो जाता है. यह एस्परजिलस फफूंद के कारण होता है और जहरीला होता है.
उपज (Yield)
उपरोक्त वैज्ञानिक विधि अपनाकर 6 से 8 क्विंटल प्रति एकड़ मूंगफली की उपज आसानी से प्राप्त की जा सकती है.