किसान भाईयों प्याज की खेती (Onion cultivation) भारत के सभी भागों मे सफलता पूर्वक की जाती है. प्याज एक नकदी फसल है, जिसमें विटामिन सी, फास्फोरस आदि पौष्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं.
इसका उपयोग सलाद, सब्जी, अचार एवं मसाले के रूप में होता है. प्याज गर्मी में लू लग जाने व गुर्दे की बीमारी में भी लाभदायक रहता है. इस विषय पर कृषि जागरण द्वारा डॉ. एस.के त्यागी से बातचीत की गई, जिन्होंने किसान भाईयों को प्याज की उन्नत खेती करने का तरीका बताया है.
डॉ. एस.के त्यागी बताते हैं कि भारत में रबी और खरीफ, दोनों मौसम में प्याज की खेती (Onion cultivation) होती है. अगर प्याज की खेती उन्नत तरीके से की जाए, तो इससे प्रति एकड़ लगभग 100 क्विंटल उपज प्राप्त की जा सकती है. अगर बाजार में 15 रुपए किलो औसत रूप से बिक जाए, तो लगभग 1 लाख रुपए तक का मुनाफ़ा कमा सकते हैं. आइए डॉ. एस.के त्यागी से जानते हैं प्याज की खेती करने का आसान तरीका.
उपयुक्त मिट्टी
इसकी खेती सभी प्रकार की मिट्टी में हो सकती है जैसे कि रेतीली, दोमट, गाद दोमट और भारी मिट्टी. मगर सबसे अच्छी मिट्टी दोमट और जलोढ़ हैं. इसमें जल निकासी प्रवृति के साथ अच्छी नमी धारण करने की क्षमता होती है, साथ ही पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ होता है. प्याज के लिए 6 से 7 पी.एच.तापमान वाली मिट्टी अच्छी होती है. इसके अलावा प्याज हल्के क्षारीय मिट्टी में भी उगाई जा सकती है.
उन्नत किस्में
खरीफ सीजन में प्याज की बुवाई के लिए भीमा सुपर, भीम डार्क रेड एवं एग्रीफाउंड डार्क रेड किस्म उपयुक्त रहती है.
सफेद प्याज की किस्में
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पूसा व्हाइट राउंड
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पूसा व्हाइट फ्लैट
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भीमा श्वेता
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भीमा शुभ्रा
बीज की बुवाई
खरीफ मौसम में प्याज के बीज की बुवाई मई के अन्तिम सप्ताह से लेकर जून के मध्य तक करते हैं. इसके साथ ही प्याज की रबी फसल के लिए नर्सरी में बीज की बुवाई नवम्बर में करते हैं.
पौध रोपण
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रोपाई के लिए पौध का चयन करते समय विशेष ध्यान रखना चाहिए.
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कम और अधिक आयु के पौध रोपाई के लिए नहीं लेने चाहिए.
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रोपाई के समय पौध के शीर्ष का एक तिहाई भाग काट देना चाहिए, ताकि उनकी अच्छी बुवाई हो सके.
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रोपाई के समय पंक्तियों के बीच 15 सें.मी. और पौधों के बीच 10 सें.मी. अंतर होना चाहिए.
पोषक तत्व प्रबंधन
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अगर प्याज की फसल से भरपूर उत्पादन प्राप्त करना है, तो खाद एवं उर्वरकों का उपयोग मृदा परीक्षण के बाद ही करना चाहिए.
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प्याज की अच्छी फसल लेने के लिए 60 क्विंटल प्रति एकड़ अच्छी सड़ी गोबर खाद खेत की अंतिम जुताई के समय मिला दें.
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इसके साथ में जैव उर्वरक ऐजोस्पाइरिलियम और पीएसबी जीवाणु की 2 कि.ग्रा./एकड़ की दर से मिट्टी में मिलाएं.
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प्याज को प्रति एकड़ 50 किलोग्राम नत्रजन, 16 किलोग्राम फॉस्फोरस, 24 किलोग्राम पोटाश एवं 8 किलोग्राम सल्फर की आवश्यकता होती है. इसके लिए 35 किलोग्राम DAP, 50 किलोग्राम अमोनियम सल्फेट, 40 किलोग्राम मयूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ रोपाई के पहले दें.
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प्याज में 35 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ रोपाई के 30 दिन बाद दें.
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इसेक अलावा 35 किलोग्राम यूरिया रोपाई के 45 दिन बाद छिड़क दें.
अच्छी उपज के लिए घुलनशील उर्वरकों का पर्णीय छिड़काव
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अगर वानस्पतिक वृद्धि कम हो, तो 19:19:19 पानी में घुलनशील उर्वरक 1 किलोग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी मे घोलकर रोपाई के 15, 30 और 45 दिन बाद छिड़क दें.
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इसके बाद 13:0:45 पानी में घुलनशील उर्वरक 1 किलोग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर रोपाई के 60, 75 और 90 दिन बाद छिड़क दें.
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प्याज की अच्छी उपज और गुणवत्ता के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों का मिश्रण 200 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर रोपाई के 45 और 60 दिन बाद छिड़क दें.
खरपतवार प्रबंधन
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समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को निकालते रहें.
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इसके अतिरिक्त खरपतवारनाशी जैसे- पेंडिमेथेलिन 30 ईसी 1.3 लीटर प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोलकर रोपाई के 3 दिन के अंदर छिड़क दें.
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या फिर ऑक्सीफ्लोरफेन 23.5 प्रतिशत ई. सी. 250 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर रोपाई के 3 दिन के अंदर छिड़क दें.
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अगर खड़ी फसल में खरपतवार हैं, तो इसकी रोकथाम के लिए ऑक्सीफ्लोरफेन 23.5 प्रतिशत ई. सी. 200 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी + क्विजालीफॉप इथाइल 5 प्रतिशत ई.सी. 400 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर रोपाई के 20 से 25 दिन बाद छिड़क दें.
सिंचाई
प्याज का अच्छा उत्पादन मौसम, मिट्टी, सिंचाई की विधि और फसल की आयु के आधार पर निर्भर करता है. आमतौर पर रोपाई के समय, रोपाई से 3 दिन बाद और मिट्टी की नमी के आधार पर 7 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जरूरत होती है. इसके अलावा खरीफ फसल में 5 से 8 बार, पछेती खरीफ फसल में 10 से 12 बार और रबी की फसल में 12 से 15 बार सिंचाई की जरूरत होती है. फसल कटाई से 10 से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दना चाहिए. इससे भंडारण के दौरान सड़न को कम करने में मदद मिलती है. प्याज की फसल के लिए अतिरिक्त सिंचाई हानिकारक हो सकती है.
खुदाई
प्याज की फसल 50 प्रतिशत गर्दन गिरने के बाद निकाली जानी चाहिए, जो कि फसल परिपक्वता का संकेत है. हालांकि, खरीफ मौसम में रोपाई के 90 से 110 दिनों में कन्द परिपक्व हो जाते हैं, लेकिन पौधे सक्रिय विकास के चरण में ही रहते है और गर्दन गिरने के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं. ऐसे समय में रंग और प्याज के आकार को परिपक्वता के लिए सूचक के रूप में लिया जाता है. कन्द के संपूर्ण विकास के बाद कटाई से 2 से 3 दिन पहले गर्दन गिरावट को प्रेरित करने के लिए खाली ड्रम घुमाना चाहिए. कटे हुए कन्द को 3 दिनों के लिए खेतों में सूखने के लिए छोड़ देना जाना चाहिए, जिससे कन्द शुष्क हो जाते हैं. इससे उनकी जीवनावधि बढ़ जाती है. इसके 3 दिन बाद 2.0-2.5 सें.मी. गर्दन को छोड़ सबसे ऊपर का भाग हटा देना चाहिए और फिर 10-12 दिनों के लिए कन्दों को छाया में रखना चाहिए. इससे बेहतर भंडारण होता है. समय से पहले कटाई करने से सड़न और अंकुरण के कारण नुकसान बढ़ जाता है.
संभावित उपज
उपयुक्त तरीके से खेती करने पर प्याज की खेती से औसतन 100 से 125 क्विंटल प्रति एकड़ उपज प्राप्त हो सकती है.