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Updated on: 5 April, 2022 2:02 PM IST
Cluster Bean Cultivation

ग्वार एक महत्तवपूर्ण शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्र की व्यावसायिक फसल है. यह एक सूखा प्रतिरोधी दलहनी फसल है, क्योंकि इसमें गहरी जड़ प्रणाली और पानी के तनाव से उभरने की क्षमता बाकी फसलों की तुलना में अधिक है. ग्वार के बीज में 30-33 प्रतिशत गोंद पाया जाता है, जो इसे एक महत्तवपूर्ण औध्योगिक फसल बनाता है.

मिट्टी

यह कम व मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों की बारानी फसल है. ग्वार को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. यह अच्छी जल निकासी वाली, उधर्वाधर रेतीली दोमट और दोमट मिट्टी में अच्छी पैदावार देता है. यह भारी मिट्टी, लवणीय और क्षारीय मिट्टी में नहीं उगाया जा सकता. यह मिट्टी के पीएच मान 7 से 8.5 तक उगाया जा सकता है.

उन्नत किस्में

ग्वार की उन्नत क़िस्मों के नाम है, आरजीसी 936, आरजीसी 1002, आरजीसी 1003, आरजीसी 1066, एचजी 365, एचजी 2-20, जीसी 1, आरजीसी 1017, एचजीएस 563, आरजीएम 112, आरजीसी 1038 व आरजीसी 986

खेत की तैयारी

भारी व अधिक खरपतवार वाली भूमि में गर्मी की एक जुताई करें. वर्षा के साथ 1-2 जुताई कर खेत तैयार करें. उपलब्ध होने पर तीन साल में एक बार 20-25 गाड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर डालें. अच्छे अंकुरण के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करना चाहिए. पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करनी चाहिए ताकि कम से कम 20-25 सेमी गहरी मिट्टी ढीली हो जाए. इसके बाद एक या दो जुताई करके समतल खेत तैयार करना चाहिए, जिसमें अच्छी जल निकासी हो सकें.

बुवाई का समय

ज़्यादातर में जून के अंत या जुलाई के प्रथम पखवाड़े में इसकी बुवाई की जाती है. ग्वार की बुवाई जुलाई के दूसरे पखवाड़े से देरी होने पर पैदावार में कमी देखी जा सकती है. सिंचाई की सुविधा होने पर इसे जुलाई के अंत तक भी बोया जा सकता है.

बीज का उपचार

बीज जनित रोगों से बचाने के लिए, बीज का उपचार 2.0 ग्राम  बाविस्टीन से किलोग्राम बीज को उपचरित कर बोयें. आंगमारी रोग की रोकथाम के लिए बीज को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 200 पीपीएम या एग्रोमाईसीन 250 पीपीएम के घोल में 3 घंटे भिगोकर उपचारित कर बुवाई करें. तथा जड़ गलन रोग के नियंत्रण हेतु कार्बेण्डाजिम या थाओफोट मिथाइल 70 डबल्यूपी 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें. इस बीमारी के जैविक नियंत्रण हेतु ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित करें.

बीज की मात्रा

बुवाई की परिस्थितियों के अनुसार 4 से 5 किलो बीज प्रति बीघा बोने के लिए पर्याप्त होगा. यदि प्रति हैक्टेयर की बात करें तो 15-20 किलोग्राम बीज पर्याप्त होगा.

बुवाई

ग्वार की बुवाई ड्रिल द्वारा या दो पोरों से करें और कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें. बीज 5 सेंटीमीटर गहराई पर डालें, कम उपजाऊ व कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बीज की दर कम रखें.

अंतराशस्य

आमतौर पर ग्वार को मूँग, मोठ, तिल या बाजरे के साथ कतारों में सहफ़सली रूप में लिया जाता है. कहीं-कहीं इसे शुद्ध रूप में भी लिया जाता है.

उर्वरक

शुष्क व अर्धशुष्क वाले क्षेत्रों में जहां हल्की मिट्टी पायी जाती है वहाँ नत्रजन 20 किलोग्राम व फास्फोरस 40 किलोग्राम डालें. ग्वार एक दलहनी फसल है, इसलिए नत्रजन व फास्फोरस दोनों की सारी मात्रा बुवाई के समय ही डालें देवें.

निराई-गुड़ाई

खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करना जरूरी है. यह फसल के एक माह की अवस्था में सम्पन्न कर देनी चाहिए. इसके लिए इमेजाथाइपर 10 प्रतिशत एसएल दवा की 10 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति बीघा की दर से 100 से 125 लीटर पानी में डालकर बुवाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करें.

सिंचाई

ग्वार की बिजाई के तीन या चार सप्ताह बाद अच्छी वर्षा न हो तो सिंचाई करनी चाहिए. दूसरी सिंचाई वर्षा समाप्त होने पर माह अगस्त या सितंबर में करना आवश्यक है.

पौध संरक्षण

तेला (जेसिड़), सफ़ेद मक्खी व चेपा (एफीड)

नियंत्रण हेतु बोवेरिया बैसियाना (108 सीएफ़यू/मिली) 200 मिली प्रति बीघा की दर से छिड़काव करें. मिथाइल डिमेटोन 25 ई.सी. 250 मिली प्रति बीघा की दर से छिड़काव करें, आवश्यकता अनुसार बुरकाव को 15-20 दिन बाद दोहराया जा सकता है.

बेक्टीरियल ब्लाइट

इस रोग को रोकने के लिए 100 लीटर पानी में स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 5 ग्राम या एग्रोमाईसीन 30 ग्राम के हिसाब से छिड़काव करें. झुलसा रोग के लक्षण दिखाई देते ही गंधक पाऊडर 25 किलो या 1.5 किलो जाइनेब या मेंकोजेब प्रति हैक्टेयर का छिड़काव करें.

तना गलन/ जडगलन/चारकोल गलन

इसके लिए बैसिलस थ्यूरनजीनेसिस 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें. या सरसों के अवशेष बुवाई के एक माह पूर्व खेत में डालें.

 

कटाई एवं गहाई

यह फसल नवम्बर माह तक पक जाती है, पूरी पकने पर कटाई करके फसल को सुखाने के लिए खेत में छोड़ दें.

पैदावार

ग्वार की पैदावार सामान्यतौर पर 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर से लेकर 12 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है.

लेखक

सुचित्रा, विद्या वाचस्पति (अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन),  कृषि महाविद्यालय, जुनागढ़ एग्रिकल्चरल यूनिवर्सिटी, जुनागढ़ (गुजरात)

शीतल गुप्ता, विद्या वाचस्पति (अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन),  कृषि महाविद्यालय,एमपीयूएटी, उदयपुर

अनिता, विद्या वाचस्पति (अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन),  कृषि महाविद्यालय, एसकेएनएयू, जोबनेर

English Summary: How to cultivate Guar, read its improved varieties and method of sowing
Published on: 05 April 2022, 02:20 PM IST

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