आज भारत के कुछ राज्यों में किसानों ने पारंपरिक खेती को छोड़कर हनीप्लांट की खेती करना शुरु किया है. इससे किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. हनीप्लांट को स्टीविया कहा जाता है. यह चीनी से कई गुना मीठा होता है. इसमें कैलोरीज की मात्रा न के बराबर होती है, इसलिए शरीर में शुगर के लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है.
मधुमेह के रोगी इसे उपयोग करते हैं. लिहाजा बाजार में इसकी डिमांड काफी रहती है. स्टीविया को उगाना भी आसान है और कम लागत में यह फसल ज्यादा मुनाफा देती है. आज के लेख में हम आपकी हनीप्लांट यानि स्टीविया की खेती के बारे में जानकरी दे रहे हैं.
भारत में स्टीविया की खेती मुख्य तौर पर कर्नाटक, महाराष्ट्र में की जाती है लेकिन अब मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तरप्रदेश समेत अन्य राज्यों के किसान भी इसकी खेती कर रहे हैं.
स्टीविया के लिए उपयुक्त जलवायुः
हनीप्लांट की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु ज्यादा अच्छी होती है. इसकी खेती के लिए 10 से 41 डिग्री के बीच तापमान उपयुक्त होता है. इससे कम या ज्यादा तापमान होने पर पौधों का विकास अच्छे से नहीं हो पाता. इसके लिए 140 सेंटीमीटर तक औसत वर्षा पर्याप्त होती है.
उपयुक्त मिट्टीः
स्टीविया की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली, भुरभुरी, समतल, बलुई दोमट मिट्टी, हल्की कपासिया, लाल मिट्टी जिसका पीएच 6-8 के बीच हो, उपयुक्त होती है.
रोपाई का सही समयः
इसके पौधों का रोपण न तो ज्यादा सर्दी वाले समय किया जा सकता, न ही ज्यादा गर्मी वाले समय में. रोपाई के लिए फरवरी-मार्च, अक्टूबर-नवंबर का समय सबसे उपयुक्त होता है.
स्टीविया की उन्नत किस्में
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SRB-123 – यह दक्षिणी पठार क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है.
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SRB-512 – यह ऊत्तरी भारत के लिए ज्यादा उपयुक्त है।
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SRB-128 – यह किस्म पूरे भारत में उगाई जा सकती है व अच्छा उत्पादन देती है.
रोपाई की विधि
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स्टीविया उगाने के लिए ज्यादा जगह की आवश्यकता नहीं होती. किसानभाई चाहे तो इसे खेत की मेड पर उगा सकते हैं, घर के गार्डन में भी इसे उगाया जा सकता है. इसका रोपण कलम विधि द्वारा किया जाता है.
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स्टीविया के पौधों का रोपण 30-30 सेंटीमीटर की दूरी पर होता है. इस तरह एक एकड़ में करीब 40 हजार पौधों की आवश्यकता होती है. अच्छा उत्पादन लेने के लिए कलम विधि या टिश्यू कल्चर से तैयार पौधे लगाएं.
कहां से ले पौधे
स्टीविया के पौधे आप ऑनलाइन मंगा सकते हैं या सरकारी उद्यानिकी विभाग, कृषि विभाग, सरकारी नर्सरी, कृषि कॉलेज में भी संपर्क कर सकते हैं.
सिंचाई
स्टीविया के पौधों की रोपाई के बाद तुरंत ही सिंचाई की जरुरत होती है. इसकी खेती में फुव्वारा और ड्रिप सिंचाई का उपयोग होता है. सिंचाई करने समय इस बात का ध्यान रखें कि खेत में पानी जमा न हो पाए.
खाद व उर्वरक
स्टीविया की खेती में ज्यादा खाद की आवश्यकता नहीं होती. आप पौधों में गोबर की खाद, कंम्पोस्ट खाद, केंचुआ खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं. स्टीविया औषधीय फसल है इसलिए इसमें रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया जाता.
रोगों से बचाव-
स्टीविया प्लांट में रोग व कीट प्रकोप कम देखने को मिलते हैं, लेकिन कभी-कभार विपरीत परिस्थितियों में रोग लगने से फसल खराब हो जाता है. इसलिए रोग के अनुसार कीटनाशक का छिड़काव करें. कई किसान गोमूत्र और नीम के तेल का छिडकाव कर फसल को कीड़ों से बचाते हैं.
कब होती है उपज
स्टीविया एक पंचवर्षीय पौधा है, यानि एक बार लगाने पर यह पांच साल तक पैदावार देता है. पौधा रोपाई के 90 से 100 दिनों के अंदर फसल प्रधम कटाई के लिए तैयार हो जाती है. पौधों में फूट आने से पहले ही कटाई कर लेनी चाहिए. पहली कटाई के बाद 3-3 महीने के अंतराल में कटाई की जाती है.
फसल कहां बेचे
स्टीविया के पत्तों की तुड़ाई करने के बाद इन्हें छाया में सुखाया जाता है. फिर एयरटाइट कंटेनरों, या पॉलिथीन बैग्स में पैक किया जाता है. इसके बाद आप उपज को ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों माध्यम से बेच सकते हैं. इसके अलावा दवा उत्पाद बनाने वाली कंपनियों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर अपनी फसल बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं. वहीं मंडियों में खरीदारों से संपर्क कर फसल बेच सकते हैं.
खेती के लिए अनुदान
नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड के माध्यम से आप अनुदान लेकर भी स्टीविया की खेती कर सकते हैं.
कितना मुनाफा
स्टीविया अच्छी कमाई करवाने वाली फसल है. यदि इसकी पत्तियों का पाउडर बनाकर बेचा जाए तो दोगुनी कमाई होती है. अगर सभी बातों का ध्यान रखें तो एक फसल से औसतन वर्ष भर में 20 क्विंटल तक सूखे पत्ते प्राप्त होते हैं. पत्तों की बिक्री दर 80 से 120 रुपए प्रति किलोग्राम तक होती है. वहीं यदि पत्तियों का पाउडर बनाकर बेचा जाए एक एकड़ में करीब 5 लाख की कमाई की जा सकती है. इस तरह किसान 5 सालों में बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं.
स्टीविया की खेती में इन बातों का रखें ध्यान
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स्टीविया की खेती के लिए टिश्यू कल्च विधि या तने की कलम विधि से तैयार पौधे ही लगाएं, इससे अच्छा उत्पादन मिलेगा.
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रोपाई के लिए स्वस्थ पौधों का चुनाव करें, वरना फसल खराब होगी.
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ध्यान रखें कि भूमि में जलभराव बिल्कुल न हो.
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फूल आने से पहले ही पत्तियों की कटाई कर लें.