सोमानी क्रॉस X-35 मूली की खेती से विक्की कुमार को मिली नई पहचान, कम समय और लागत में कर रहें है मोटी कमाई! MFOI 2024: ग्लोबल स्टार फार्मर स्पीकर के रूप में शामिल होगें सऊदी अरब के किसान यूसुफ अल मुतलक, ट्रफल्स की खेती से जुड़ा अनुभव करेंगे साझा! Kinnow Farming: किन्नू की खेती ने स्टिनू जैन को बनाया मालामाल, जानें कैसे कमा रहे हैं भारी मुनाफा! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 23 October, 2020 6:13 PM IST

मटर रबी मौसम की एक महत्वपूर्ण सब्जी फसल है. मटर के लिए ठंडी जलवायु उपयुक्त रहती है किन्तु पाले के आने से उसके फूल व फली को नुकसान पहुँचता है. बीज की बुवाई करते समय तापक्रम 22 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए अधिक तापमान पर  पौधे बौने एवं कमजोर हो जाते हैं तथा पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. अतः 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक इसकी बुवाई कर देनी चाहिए. इससे कम तापमान पर अंकुरण कम और बहुत देर से होता है मटर के लिए दोमट भूमि उपयुक्त है. भारी मिट्टी एवं जहां पानी का निकास ना हो वहां इसकी फसल अच्छी नहीं होती क्योंकि सिंचाई के बाद पौधे पीले पड़ कर मर जाते है. 

उन्नत किस्में- अगेती फसल के लिए VL-3, अर्किल, जवाहर मटर 4, मटर अगेती-6 है. इनकी फलियां 50 से 60 दिन में आ जाती है. मुख्य फसल के लिए बोनविला, जवाहर मटर-1, पंजाब- 89, आजाद P-1, आजाद P-3, JP- 83 इत्यादि है. इनकी फलियां 75 से 90 दिन में तैयार होती है. 

बीज उपचार: मटर एक दलहनी फसल है अतः इसके बीज को राइजोबियम कल्चर से बीज उपचार करना चाहिए ताकि राइजोबियम कल्चर में उपस्थित लाभदायक जीवाणु इसकी जड़ों की गांठों को विकसित कर सके. इन्हीं जड़ की गांठों द्वारा वातावरण से नाइट्रोजन स्थिर कर पौधों को मिल पाती है.  जिस खेत में गत वर्ष मटर की फसल दी गई हो वहां इसका यह उपचार करना आवश्यक नहीं है. बीज उपचार के लिए ढाई सौ ग्राम गुड का 1 लीटर पानी में घोल बना लें एवं इसमें तीन पैकेट राइजोबियम कल्चर मिला देने तथा बीज को इस घोल में भली-भांति मिला देवे तथा उपचारित बीज को छाया में सुखाने के बाद बुवाई करें. रासायनिक माध्यम से कार्बेण्डजीम 12% + मेंकोजेब 75% WP की 200 ग्राम मात्रा या कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% DS दवा की 250 ग्राम मात्रा प्रति 100 किलो बीज में मिलाकर बीज उचारित कर सकते है

खाद एवं उर्वरक: खेती की तैयारी के समय 200 से 250 क्विंटल गोबर की खाद प्रति एकड़ हेक्टेयर की दर से खेत में मिला दें तथा जुताई करे. अंतिम जुताई से पहले प्रति हेक्टेयर 40 किलो फास्फेट, 25 किलो नत्रजन तथा 50 किलो पोटाश खेत में मिला दें.      

बीज की मात्रा और बुवाई: इसकी मात्रा एवं बुवाई एक हेक्टेयर के लिए 80 से 100 किलो बीज पर्याप्त होता है. 30 सेंटीमीटर दूरी दूरी की कतारों में बीज की बुवाई करें पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर रखें भूमि में नमी अधिक हो तो गहरी बुवाई ना करें. 

निराई गुड़ाई और सिंचाई: बुवाई के लगभग 1 माह बाद निराई गुड़ाई करना आवश्यक है तथा आवश्यकता पड़ने पर दूसरी  निराई गुड़ाई करे. रसायनिक तौर पर बुवाई के 3 दिनों के बाद प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडिमेथालीन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिए ताकि फसल में दोनों प्रकार के संकरी और चौड़ी पत्ती के खरपतवार को उगने से पहले ही नष्ट किया जा सके.   पहली सिंचाई बुवाई के चार से 5 सप्ताह बाद एवं दूसरी सिंचाई 7 से 8 दिनों के अंतर पर आवश्यकतानुसार करें.

कीट एवं बीमारियों की रोकथाम   

तना मक्खी एवं लीफ माइनर: तना मक्खी के कारण टहनी का अगला भाग मर जाता है एवं बढ़ोतरी बंद हो जाती है. इसका प्रकोप उगने के 15 से 20 दिन बाद प्रारंभ होता है. लीफ माइनर मटर के पत्तों के अंदर सुराख करके आने पहुँचाते हैं इनका प्रकोप फसल के उगने से प्रारंभ होकर पूरे मौसम तक रहता है.

इनकी रोकथाम हेतु क्यूनॉलफॉस 25 EC 300 मिली प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें. 

फली छेदक: ये हरे रंग की सवा इंच लंबी एवं चौथाई इंच मोटी लट होती है जो बाद में गहरे भूरे रंग की हो जाती है. यह फूल आने के समय से फल की कटाई तक फसल को नुकसान पहुंचाती है. लटें फली में छेद कर के अंदर का दाना खोखला कर देती है.  

रोकथाम:  इनकी रोकथाम हेतु फूल आने से पूर्व वह फली फनी लगने के बाद क्यूनॉलफॉस 25 EC 300 मिली या एमामेक्टीन बेंजोइट 5 SG 200 ग्राम  प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दे. 

चूर्णिल आसिता या छाछिया रोग: इसके प्रकोप से फसल पर सफेद चूर्णी धब्बे दिखाई देते हैं. रोग की रोकथाम के लिए प्रति टेबुकोनाजोल 10%+ सल्फर 65% WG 400 ग्राम या 500 ग्राम घुलनशील सल्फर या थिओफिनेट मिथाइल 75 WP 300 जीएम प्रति 200 लीटर पनि में मिलाकर छिड़काव कर दें. 

English Summary: High production techniques in pea crop
Published on: 23 October 2020, 06:19 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now