भारत की अर्थव्यवस्था में खेती का एक बहुत बड़ा योगदान है. पशुपालन, सीफूड और बागवानी से देश के करोड़ों लोगों की आजीविका चलती है, लेकिन इस बदलते मौसम और लगातर गर्मी और सूखे की वजह से किसानों के जीवन स्तर पर गहरा असर पड़ रहा है. हाल ही में हो रही भारी बरसात के कारण देश के कई राज्यों की फसलों को काफी नुकसान पहुंचा है. वहीं देश के कुछ ऐसे भी राज्य हैं, जहां सूखा पड़ने के कारण वहां के किसानों की पैदावार ही नहीं हो रही है.
जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी का तापमान और बढ़ता वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड हमारी जीवन शैली पर असर डाल रहा है. इसके अलावा ये सभी फसल की उपज को प्रभावित कर रहे हैं. ऐसे में हम इस लेख के माध्यम से जलवायु परिवर्तन का हमारी खेती पर पड़ने वाले असर के बारे में समझने की कोशिश करते हैं.
गर्मी और सूखे का फसल पर असर
वातावरण में तापमान बढने का सबसे बड़ा कारण कार्बन डाई आक्साइड है. इस बढ़ते तापमान से खेतों में कवक, कीट और खरपतवारों की संख्या बढ़ने लगती हैं. एक अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी का तापमान बढ़ने से पौधों की विकास तो तेज होता है, लेकिन इसके साथ ही इन पौधों में प्रोटीन और अन्य महत्वपूर्ण मिनरल की कमी हो जाती है. सूखा पड़ने के कारण मिट्टी का उपजाऊपन खत्म हो जाता है और वहीं जमीनें सूख कर फटने लगती हैं.
गर्मी और सूखे का पशुओं पर असर
हीट वेव और सूखे के कारण पशुओं के शरीर के तापमान पर असर पड़ता है. यह उनकी प्रजनन क्षमता को कम कर देता है. तापमान बढ़ने से जानवरों में बीमारी का खतरा भी बढ़ जाता है और साथ ही उनकी दूध उत्पादन की क्षमता भी कम हो जाती है. वहीं सूखे से सीधे तौर पर पशुओं के चारे की आपूर्ति को खतरा पहुंचता है.
गर्मी और सूखे का मछली पालन पर असर
जलवायु परिवर्तन से समुंद्र का तापमान और लवणता दोनों बढ़ रही है. समुंद्र की बढ़ती लवणता के कारण मछलियों का जीवन काल कम होने लग रहा है और बढ़ते इस तापमान से मछलियों का माइग्रेशन भी कम होता जा रहा है. तापमान के बढ़ने के कारण समुंद्र में रह रहे जीवों में अम्लता बढ़ती जा रही है, जो इन जीवों की तंत्रिका तंत्र की संरचनाओं को भी खतरे में डालती है.
जानें कैसे करें फसलों का बचाव
गर्मी के महीनों के दौरान इसके तनाव को कम करने के लिए अपने खेतों में ऐसी फसलें उगाएं जो गर्मी और सूखा को सहने की क्षमता रखते हों. ये फसलें किसानों के नुकसान को कम कर सकेंगी क्योंकि उनकी पानी की आवश्यकता कम होगी. सीमित जल संसाधनों वाले क्षेत्रों में ऐसी फसलें उगाना काफी उपयोगी साबित होता है क्योंकि इन्हें कम सिंचाई की जरुरत होती है.
मल्चिंग
मल्चिंग एक कृषि तकनीक है, जहां मिट्टी की जलधारण क्षमता को बेहतर बनाने और प्रतिकूल मौसम की स्थिति से बचाने के लिए मिट्टी की सतह को कार्बनिक या अकार्बनिक सामग्री से ढक दिया जाता है. यह खरपतवार की वृद्धि को भी रोकता है और मिट्टी की पोषण की मात्रा को स्थिर करता है. गर्मियों के दौरान जब तापमान अधिक होता है, तो मिट्टी बहुत जल्दी सूख जाती है. इससे पौधों को पोषक तत्व ग्रहण करने में बाधा आती है. मल्चिंग मिट्टी और सूर्य के बीच एक बाधा के रूप में कार्य करती है. यह मिट्टी द्वारा अवशोषित की जाने वाली गर्मी की मात्रा को कम करता है, जिससे पौधों की जड़ों को गर्मी के तनाव से बचाया जा सकता है और यह मिट्टी की सतह से पानी का वाष्पीकरण को भी कम करता है.
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छाया का प्रबंधन
फसलों पर गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए पौधों को पर्याप्त छाया की जरुरत होती है. गर्मी के तनाव से पत्तियां और फूल समय से पहले मुरझा जा रहे हैं, इनका विकास रुक जा रहा और उपज भी कम हो रही है. छाया प्रदान करके हम पौधे तक पहुँचने वाली सीधी धूप की मात्रा को कम कर सकते हैं, जिससे फसल को पर्यावरणीय तनाव से बचाकर इसकी उपज में कुछ हद तक सुधार किया जा सकता है.