भारत के कई राज्यों के किसान मूंग की खेती करते हैं. प्रमुख दलहनी फसल होने की वजह से इसकी बुवाई बड़े पैमाने पर की जाती है और किसानों को इससे लाभ भी अच्छा मिलता है लेकिन कई बार फसल सम्बन्धी समस्याओं के चलते वे इस लाभ का लुत्फ़ नहीं उठा पाते हैं. इन्हीं में से एक है मूंग में लगने वाले प्रमुख कीट और रोग की समस्या, जिसका अगर समय रहते उपाय न किया गया तो पूरी फसल और लगने वाली लागत बर्बाद हो सकती है.
हम आपको मूंग में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट और रोग की जानकारी देने जा रहे हैं और बताएंगे कि आप इनकी रोकथाम कैसे कर सकते हैं. इसके साथ ही हम आपको यह भी बताएंगे की अनचाहे खरपतवार से भी आप कैसे छुटकारा पाकर ज्यादा से ज्यादा उत्पादन ले सकते हैं. यहां हम जैविक विधि के साथ रासायनिक विधि से भी मूंग की खेती में खरपरवार नियंत्रण की विस्तृत जानकारी दे रहे हैं.
मूंग के प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम (Major diseases of moong and their prevention)
1) चितेरी रोग
पीला चितेरी रोग एक विषाणु जनित रोग है जिसमें पत्तियों पर पीले धब्बे पड़ जाते हैं और बाद में पत्तियां पूरी तरह से ही पीली पड़ जाती हैं. यह रोग तेजी से फैलता है.
रोकथाम
यह रोग मूंग की फसल में सफेद मक्खी द्वारा फैलता है. ऐस में इसकी रोकथाम के लिए खेत में आवश्यकतानुसार ऑक्सीडेमेटान मेथाइल या डायमेथोएट को पानी में घोलकर छिड़क दें.
2) पत्ती रोग
इस रोग में पत्तों पर झुर्रियां सी आ जाती हैं. यह भी एक विषाणु जनित रोग है. इसमें पत्तियां अधिक मोटी और खुरदरी दिखाई देने लगती हैं.
रोकथाम
किसान इस रोग के नियंत्रण के लिए फसल से रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला दें. इसके साथ ही किसान कीटनाशक का भी छिड़काव कर सकते हैं.
3) सरकोस्पोरा पत्र बुंदकी रोग
यह मूंग की फसल में लगने वाला एक खास रोग है जिसके प्रकोप से पैदावार में काफी नुकसान होता है. इसमें पत्तियों पर भूरे गहरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं.
रोकथाम
किसान फसल को इस रोग से बचाने के लिए बुवाई से पहले कैप्टन या थिरम कवकनाशी से बीज को जरूर उपचारित करें.
4) चूर्णी फफूंद रोग
इस रोग में पौधों की निचली पत्तियों पर गहरे धब्बे पड़ जाते हैं और बाद में पत्तों पर छोटे-छोटे सफेद बिंदु दिखाई देने लगते हैं. बाद में ये छोटे सफेद बिंदु बड़े सफेद धब्बे बन जाते हैं. आपको बता दें कि यह रोग गर्म या शुष्क वातावरण में तेजी से फैलता है.
रोकथाम
किसान इस रोग के प्रकोप से पौधों को बचाने के लिए घुलनशील गंधक का इस्तेमाल करें. रोग का प्रकोप ज्यादा होने पर आवश्यकतानुसार कार्बेन्डाजिम या केराथेन को पानी में घोलकर छिड़क दें.
5) पर्ण संकुचन रोग
इस रोग में पत्तियों का विकास रुक जाता है. पत्तियों में पोषक तत्व की कमी हो जाती है. नतीजतन, मूंग की उपज में भी कमी आती है. यह भी एक विषाणु रोग है.
रोकथाम
किसान फसल को रोग से बचाने के लिए बीजों को इमिडाक्रोपिरिड से उपचारित कर लें और उसके बाद ही बुवाई करें. साथ ही बुवाई के लगभग 15 दिन बाद कीटनाशक का छिड़काव कर दें.
6) पीला मोजेक रोग
मोजेक रोग में पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं और उनपर फफोले पड़ने लगते हैं. ऐसे में पौधों का विकास भी रुक जाता है.
रोकथाम
किसान अपनी मूंग की फसल को बचाने के लिए प्रमाणित बीज से ही बुवाई करें. इसके साथ ही रोगी पौधों को उखाड़कर जला दें.
मूंग के प्रमुख कीट और उनकी रोकथाम (Major pests of Moong and their prevention)
1) थ्रिप्स या रसचूसक कीट
रसचूसक कीट या थ्रिप्स कहलाने वाले कीट मूंग के पौधों का रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं. इसके प्रकोप से पौधे पीले, कमजोर हो जाते हैं. उनमें विकार भी आ जाता है.
रोकथाम
किसान बुवाई से पहले बीज का थायोमेथोक्जम 70 डब्ल्यू एस 2 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचार करें. आपको बता दें कि थायोमेथोक्जम 25 डब्ल्यू जी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़कने से भी थ्रिप्स की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है.
2) माहू
फसल में माहू कीट के शिशु और प्रौढ़ पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूल-फल से रस चूसकर उसे कमजोर बना देते हैं.
रोकथाम
किसान इस कीट से फसल सुरक्षा के लिए डायमिथोएट 1000 मिलीलीटर प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल प्रति 600 लीटर पानी में 125 मिलीलीटर के हिसाब से प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें.
3) सफेद मक्खी
सफेद मक्खी एक बहुभक्षी कीट है जो फसल को शुरुआती अवस्था से लेकर आखिरी अवस्था तक नुकसान पहुंचाता है. इसके प्रकोप से उत्पादन में कमी आती है.
रोकथाम
माहू कीट नियंत्रण की विधि का इस्तेमाल किसान इस कीट से भी छुटकारा पा सकते हैं.
मूंग की खेती में रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण (Weed control by chemical method in the cultivation of moong)
मूंग की बुवाई के लगभग 20 से 30 दिन तक किसान खरपतवार पर खास ध्यान दें. ऐसा इसलिए क्योंकि शुरुआती दौर में खरपतवार फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. वहीं अधिक समस्या होने पर खरपतवारनाशक रसायन का छिड़काव करें. किसान पेन्डीमिथालीन 30 ई सी, 750 से 1000 ग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर बुवाई के 3 दिन के अंदर ही इस्तेमाल करें.
मूंग की खेती में जैविक विधि से खरपतवार नियंत्रण (Organic weed control in moong cultivation)
अगर किसान जैविक विधि से मूंग की खेती में खरपतवार प्रबंधन करना चाहते हैं तो इसके लिए वे गर्मियों में अपने खेत की गहरी जुताई करें. इसके साथ ही वे खेत में सड़ी गोबर की खाद का इस्तेमाल करें. किस्मों के चुनाव पर भी जरूर ध्यान दें. खरपतवार से निपटने के लिए बुवाई के लगभग 20 दिन बाद निराई कर दें. इसके 45 दिन के बाद एक बार फिर निराई कर दें. किसान उचित फसल चक्र चुनें. इसके साथ ही किसान जैविक विधि से खरपतवार प्रबंधन के लिए मल्चिंग का इस्तेमाल कर सकते हैं.