किसानों ने गेहूं की बुवाई करना शुरू कर दिया है. इसकी खेती के दौरान फसल के साथ कई तरह के खरपतवार उग आते हैं. कुछ खरपतवार गेहूं की तरह ही दिखते हैं, तो कुछ खरपतवार को पहचानना मुश्किल होता है, जो बड़े होने के बाद समझ में आते हैं, जब इसमें बालियां निकल आती हैं. ऐसा ही एक गेहूं की मामा या गुल्ली डंडा घास है. अगर इस घास का सही समय पर उपचार न किया जाए, तो फसल की पैदावार पर करीब 30 से 40 प्रतिशत की कमी आ सकती है.
क्या है गेहूं की मामा या गुल्ली डंडा घास
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के खरपतवार विशेषज्ञ का कहना है कि यह घास गेहूं की तरह ही होती है, लेकिन इसे पहचानना काफी मुश्किल होता है. मगर इसमें और गेहूं में एक अंतर होता है कि गेहूं की जड़ के पास तना हरा-सफेद होता है, लेकिन घास में गुलाबी होता है. बताया जा रहा है कि करीब ढाई दशक पहले विदेशों से गेहूं की बीज मंगाए गए थे, जिसमें गेहूंसा के दाने भी चले आए थे. तब से गेहूं के साथ ये भी उग आता है. इसकी एक बाली में करीब 1000 तक बीज होते हैं. खेत में इसकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे गेहूं की फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हो रहा है. ऐसे में अगर किसानों की नजर इस घास पर पड़े, तो इसे तुरंत उखाड़ कर नष्ट कर दें, ताकि बीज की शुद्धता बनी रहे.
उपज पर असर
अगर इस घास का सही समय पर उपचार न किया जाए, तो गेहूं की करीब 30 से 40 प्रतिसत उपज पर प्रभाव पड़ता है. ऐसे में किसानों को समय रहते इस घास का उपचार कर देना चाहिए.
उपचार
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निराई
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रसायनिक खरपतवारनाशी काछिड़काव
यह दो तरीके इस घास से छुटकारा दिला सकते हैं. खरपतवार विशेषज्ञ का कहना है कि इसके बचाव के लिए प्रोटोडान जैसे कई खरपतवारनाशी उपयोगी मनाए गए हैं. मगर कुछ साल में खरपतवारनाशी बदल देना चाहिए. यह घास पंजाब और हरियाणा में दवा की प्रतिरोधी हो गई है. अब इस पर इसका कोई असर ही नहीं पड़ता है, इसलिए किसानों को 2 से 3 साल में खरपतवारनाशी बदल देना चाहिए.