Milky Vine: दूधी बेल एक विशाल जंगली बेलीय पौधा है. इसमें दूधिया सफेद तरल पदार्थ मिलता है. जिसकी औषधीय गुणवत्ता है.
जलवायु और मिट्टी
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यह पौधा आर्द्र जलवायु और आंशिक रूप से सूर्य की रोशनी पसंद करता है.
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रेतीली चिकनी मिट्टी इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम रहती है.
उगाने की सामग्री:
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इसके बीजों से इसका रोपण किया जाता है.
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परिपक्व बीज दिसंबर से फरवरी के पहले सप्ताह के दौरान एकत्रित किए जाते हैं.
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इसके जड़ों और तनों की कटिंग के माध्यम से भी फसल उगाई जा सकती है.
नर्सरी की विधि
पौध तैयार करना:
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उपयुक्त नमी हेतु हल्की सिंचाई करनी आवश्यक है.
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बीजों को बोने से पहले चार से पांच घंटों तक पानी में भिगोया जाता है. बीज करीब 12-15 दिनों में अंकुरित होते हैं.
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लगभग एक महीने के पौधे14 सेमी x 10 सेमी के पॉलीबैगों में रोपे जाते हैं, जिनमें मिट्टी, बालू और अच्छी तरह कंपोस्ट की गई खाद 1:1:1 के अनुपात में भरी जाती है. जो रोपित पौधा पॉलीबैग में है उसे छाया में रखे जाने और नियमित रूप से सींचे जाने की व्यवस्था करनी चाहिए.
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एक हेक्टेयर भूमि में पौधे उगाने के लिए लगभग1-2 किलो बीजों की जरूरत होती है.
रोपण की दर:
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60सेमीX 60 सेमी की दूरी पर रोपण के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 30,000-35,000 पौधों की जरूरत होती है.
खेत में रोपाई:
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खेत तैयार करने के बाद खेत मे दूधी बेल के पौधों की रोपाई मई-जून में करनी चाहिए.
जमीन की तैयारी:
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जमीन को जुताई और निराई द्वारा तैयार किया जाता है.
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80सेमीx 80 सेमी की दूरी पर 40 सेमी x 40 सेमी गहराई के गड्ढे खोदे जाते हैं, और उन्हें प्रत्येक पौधे के लिए 3-6 किलो की दर से उर्वरक के साथ 1:1 के अनुपात में मिट्टी और बालू को अच्छी तरह मिलाकर भरा जाता है.
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अन्य फसल के साथ उगाने की स्थिति में भूमि तैयार करते समय30 टन/ हेक्टेयर की दर से उर्वरक डाला जाता है.
पौधारोपण की दूरी:
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पौधों को खेत में मानसून आरंभ होते ही जून-जुलाई में, पॉलीबैग में लगाए जाने के लगभग30-40 दिनों के बाद, रोपा जाता है.
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एकल फसल के लिए80 सेमी x 80 सेमी की दूरी रखी जाती है.
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इसमें प्रति हेक्टेयर लगभग 35,000 पौधों की जरूरत होती है.
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अन्य फसलों के साथ खेती किए जाने पर पौधों की जरूरत लगभग15,000 होगी.
संवर्धन विधियां:
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दूधी बेल का पौधा बेल वर्गीय होने के कारण जुलाई-अगस्त में सहारे की जरूरत होती है.
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पहली निराई40-50 के बीच में की जानी चाहिए.
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फसल को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए पौधारोपण के दो और चार महीने में दो बार हाथ से निराई करना आवश्यक है.
सिंचाई:
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दूधी बेल मानसून अवधि के दौरान वर्षा वाली फसल के तौर पर उगाई जाती है.
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मानसून की समाप्ति के बाद वैकल्पिक दिनों में5 सेमी पानी के साथ इसकी सिंचाई की जाती है.
बीमारी और कीट नियंत्रणः
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0.05%किवनांल्फांस का छिड़काव वर्षा ऋतु के दौरान एफिड्स के हमलों को प्रभावी रूप से नियंत्रित करता है.
फसल प्रबंधन
फसल पकना और कटाई:
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हालांकि, 18महीने के बाद ही फसल अपने चरम पर होती है, भले ही ताजी जड़ों की उपज घटकर 245 किलो/हेक्टेयर रह जाती है.
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जड़ों को इकठ्ठा करने के लिए जमीन खोद कर कटाई की जाती है. फिर इन जड़ों को अच्छी तरह धोया जाता है.
फसल पश्चात् प्रबंधन:
- जड़ों को10 सेमी लंबाई के टुकड़ों में काटा, छाया में सुखाया और जूट के बोरे में भंडारण किया जाता है.
उपज:
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इसकी उपज सूखी जड़ों से15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है.
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एक वर्ष के बाद400-450 किलो/हेक्टेयर (ताजा जड़ें) प्राप्त की जा सकती है.
बांदा कृषि एवं प्रौधोगिक विश्वविधालयए बांदा. 210001 उत्तर प्रदेश
लेखक
डॉ. योगेश यादवराव सुमठाणे
सहा. प्राध्यापक एवं वैज्ञानिक
सुनील कुमार
वानिकी सहयोगी