अंगूर काफी प्रसिद्ध फसल है जो ज्यादातर देशों में व्यापारिक तौर पर उगाई जाती है. इसकी बेल सदाबहार होती है और इसके पत्ते भी साल में सिर्फ एक बार ही झड़ते हैं.
अंगूर की खेती करने के लिए गर्म और शुष्क जलवायु की जरूरत पड़ती है. यह ऐसे क्षेत्रों में उगाई जाती है. जिसकी तापमान रेंज 15 से 40 डिग्री सेल्सियस तक होती है. फलों के विकास के दौरान 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान होने पर इसकी बेरी साईज और फल की स्थिरता को कम कर देती है. इसकी छटाई के समय अगर इसका तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से कम हो तो कलियां टूटने लग जाती है. जिस कारण फसल खराब होने लगती है.
अंगूरों की खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. जैसे रेतीली मिट्टी, लोमस मिट्टी, लाल रेतीली मिट्टी, हल्की काली मिट्टी आदि. इसके लिए शुष्क मिट्टी की आवश्यकता पड़ती है, जिसमें अच्छे से और पूर्ण रूप से पानी रोकने की क्षमता हो.
अंगूर के बीजों का चयन
अगर आप शुष्क क्षेत्र में इसकी खेती करते है, तो आप अंगूर के सूखने पर उससे किशमिश भी बना सकते है. इसके लिए आपको इन अंगूरों के बीजों की खेती करने पड़ेगी -Thompson Seedless, Black Sahebi
अगर आप अंगूर को कच्चा ही बेचना चाहते है तो आपको इन बीजों से खेतीं करनी पड़ेगी -hompson Seedless, Beauty Seedless, Black Sahebi, Anab-e-Shahi
अगर आप इसका इस्तेमाल जूस बनाने में उपयोग करना चाहते हैं तो आपको इन बीजों से खेती करनी पड़ेगी -Beauty Seedless, Black Prince
अगर आप इसका इस्तेमाल वाइन बनाने में करना चाहते है तो आपको इन बीजों से खेती करनी पड़ेगी - Rangspray, Cholhu White, Cholhu Red
क्या होना चाहिए बुवाई का सही समय ?
दिसंबर से जनवरी महीने में फसल की तैयार की गई जड की रोपाई की जाती है.
कितना होना चाहिए फासला
निफिन विधि के अनुसार 3x3 मीटर फासला रखें और आरबोर विधि के अनुसार 5x3 मीटर का फासला रखें. अनब-ए-शाही किस्म के लिए 6x3 मीटर फासला रखे.
कितनी होनी चाहिए बीज की गहराई ?
कटिंग को 1 मीटर की गहराई पर लगाना चाहिए.
पहली सिंचाई - छंटाई के बाद फरवरी में करे
दूसरी सिंचाई - मार्च के पहले सप्ताह में करे
तीसरी सिंचाई - अप्रैल से मई के पहले सप्ताह के अंतराल पर करे जब फल पक जाए
चौथी सिंचाई - मई के दौरान सप्ताह के अंतराल पर करे
पांचवी सिंचाई - जून माह के 3 या 4 दिन के अंतराल पर करे
फिर जुलाई से अक्टूबर के लंबे समय तक शुष्क या पर्याप्त वर्षा होने पर इसकी सिंचाई करे.
इसकी आखिरी सिंचाई नवंबर से जनवरी माह में मिट्टी के पूरी तरह शुष्क हो जाने के बाद करें.
खाद की मात्रा
इस फसल में यूरिया 60 ग्राम होना चाहिए और म्यूरेट ऑफ पोटाश 125 ग्राम तक होना चाहिए. फिर इस मिश्रण को अप्रैल मई के महीने में फसल में डालकर जून के महीने में फिर से इसी मात्रा में दोबारा डालें. फिर आप रूड़ी की खाद और एस एस पी की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन और पोटाशियम की आधी मात्रा की छंटाई करने के बाद फसल में डालें और नाइट्रोजन और पोटाशियम की आधी मात्रा को आप फल बनने के बाद अप्रैल महीने में डालें. साथ ही यूरिया का दो बार स्प्रे करें. पहला स्प्रे पूरी तरह जब खिल जाए, तब करें और दूसरा स्प्रे बनने के समय करे.
कटाई
जब फसल की तुड़ाई के बाद छंटाई करें तो 6 -7 घंटों के लिए फलों को 4.4 डिग्री तापमान पर रख दे. जिससे वह थोड़े ठंडे रहे और ज्यादा देर तक उनका ताजापन बना रहे और वह ख़राब न हो.
आंकलन द्वारा पता चला है कि अंगूर की खेती में प्रति एकड़ 1,0,000 रूपये का लाभ है, वहीं किशमिश उत्पादन में यह लाभ बढ़कर 1,50,000 रूपये प्रति एकड़ हो जाता है. इसलिए आने वाले समय में इसकी खेती काफी फायदेमंद साबित होने वाली है.