चकोतरे (Grapefruit cultivation) की खेती भारत में व्यापक रूप से की जाती है. चकोतरे का प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु हैं. इस लेख में हम इसकी खेती के बारे में सभी महत्वपूर्ण जानकारियों पर नजर डालेंगे. इसकी खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
चकोतरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
चकोतरे की फसल उष्णकटिबंधीय और गर्म तापमान में भी उगाई जा सकती है. इसमें अधिक तापमान और धूप सहने की क्षमता होती है. यह फसल उच्च तापमान (20-30 डिग्री सेल्सियस) डिग्री को आसानी से सह जाता है. इसलिए इस फसल को भारत के अधिकांश भागों में उगाई जा सकती है, जहां बारिश अच्छी मात्रा में होती है और वायुमंडलिय तापमान समान्य होता है. अप्रैल महीने से जून महीने तक पश्चिमी घाटों में मानसूनी वर्षा के दौरान इसकी बुवाई की जाती है.
चकोतरे की खेती के लिए भूमि
चकोतरे की खेती के लिए धातुयुक्त मृदा (लोमी सीमेंट मृदा) पसंद की जाती है. इसके साथ ही हल्की एवं मध्यम उपज वाली बलुई दोमट मिट्टी भी सही मानी जाती है. जिसका पीएच मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए.
चकोतरे की खेती के लिए खेत की तैयारी
सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई कर भुरभुरा बना लें. फिर गड्ढों की खुदाई कर इसमें खाद एवं वर्मी कम्पोस्ट डाल दें. फिर इसमें पौधों की रोपाई कर लें.
चकोतरे की खेती के लिए खाद और उर्वरक
अच्छे विकास और पैदावार के लिए पौधों को पोषण की जरूरत होती है. ऐसे में हर पौधे के लिए तैयार गड्ढो में हर साल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 20-25 किलो, 1-1.5 किलो यूरिया, 1-1.5 किलो फास्फोरस और 1/2-1 पोटाश किलो का इस्तेमाल करना चाहिए. इसके साथ ही फलदार पौधे के लिए ज़िंक सल्फेट 200 ग्राम और बोरान 100 ग्राम प्रति पौधे के लिए इस्तेमाल करना चाहिए.
ये भी पढ़ें: June-July Fruit Farming: जून-जुलाई में इन फलों की करें खेती, होगी अच्छी कमाई
चकोतरे की खेती के लिए खरपतवार नियंत्रण
इसके लिए आप समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहें.
चकोतरे की खेती के लिए उन्नत किस्म का चयन करें
भारत में चकोतरे की खेती के लिए कई किस्मों का इस्तेमाल किया जाता है. जिसमें सबसे आम रूबी रेड, मार्श सीडलेस, थॉम्पसन,गंगानगर रेड, डंकन, फोस्टर, थाम्पसन, मार्श रूबी रेड और स्टार रूबी शामिल हैं. ये किस्में स्वाद, रंग और बीज सामग्री में अच्छी मानी जाती हैं.