कृषि वैज्ञानिकों ने चने के बेहतर उत्पादन के लिए किसानों को सलाह दी हैं कि चने की बुवाई रेज्ड बेड पद्धति से करें. इससे न सिर्फ उत्पादन में इजाफा होता है बल्कि चने की गुणवत्ता भी बढ़ती है. तो आइए जानते हैं क्या है रेज्ड बेड पद्धति और कैसे करें चने की बुवाई-
बुवाई का उचित समय
मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसएस धाकड़ का कहना है कि अभी चने की बुवाई का सही समय चल रहा है. किसान इस समय चने की बुवाई कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि इस बार अच्छी बारिश हुई है और पानी के स्त्रोत लबालब है. ऐसे में चने की खेती भी अच्छी होगी. वहीं रबी की अन्य फसलों का रकबा भी बढ़ेगा.
प्रमुख किस्में
कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को चने की प्रमुख किस्में जैसे, जेजीके-1, जेजीके-2, काक 2, जेकेजी 5, जेजी 14, आरव्हीजी 201, आरव्हीजी 202, आरव्हीजी 203,जाकी 9218 की बुवाई करने की सलाह दी.
बीजोपचार
डॉ. धाकड़ ने बताया कि इस बार किसान बीज दर प्रति हेक्टेयर 75 किलो रखें. वहीं बुवाई से पहले बीज को अच्छे से उपचारित कर लें. बीज को सबसे पहले फफूंदनाशक दवा जैसे थायरम, बावस्टीन की 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर लें. दीमक और अन्य भूमिगत कीटों से बचने के लिए बीज को क्लोरोपायरीफॉस की 5 एमएल मात्रा प्रतिकिलो के हिसाब से उपचारित करें. इसके बाद रायजोबियम और पीएसबी कल्चर की 5.5 ग्राम मात्रा प्रतिकिलो के हिसाब से बीजोपचार करें. उत्पादन को बढ़ाने के लिए अमोनियम मोलिब्डेड को 1 ग्राम प्रतिकिलो बीज की मात्रा में लेकर उपचारित करें. इससे 20.25 प्रतिशत उत्पादन में वृध्दि होती है.
रेज्ड बेड पद्धति से करें बुवाई
कृषि वैज्ञानिक डॉ. मुकेश सिंह का कहना है कि किसानों को चने की बुवाई रेज्ड बेड पद्धति से करना चाहिए. इससे उत्पादन में वृद्धि होती है. वहीं इस पद्धति से सिंचाई के पानी का सही व्यवस्थापन होता है. इस वजह से 30 प्रतिशत पानी की बचत होती है. वहीं समतल क्यारी विधि से बुवाई करने पर सिंचाई में 30 प्रतिशत पानी अधिक लगता है और उत्पादन में 25 फीसद की गिरावट आती है. रेज्ड बेड पद्धति से बीज दर कम लगने के साथ खाद और उर्वरक का सही व्यवस्थापन होता है इस कारण उर्वरक उपयोग क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है. इस विधि से बुवाई करने पर पौधों की कैनोपी को सूर्य का सही प्रकाश मिल पाता है. इस कारण से पौधे का सही विकास होता है. वहीं समतल विधि की तुलना में रेज्ड बेड पद्धति से बीजों का उचित अंकुरण होता है.