किसान खेती के साथ पशुपालन और उसका उपयोग बहुत पहले से करते आ रहे हैं. पशुओं की उपयोगिता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि, कृषि से जुड़े कई प्रमुख कार्यों में इसकी जरुरत किसानों को होती है. इनके गोबर से बनी जैविक खाद, कृषि उपज को बढ़ावा देती है.
इन पशुओं का प्रमुख स्रोत दूध, खाना तो है ही इसके साथ यह किसानों के लिए आय का प्रमुख साधन भी है. ऐसे में कुछ किसान कृषि में ज्यादा लाभ ना मिल पाने के वजह से पशुपालन की ओर अपना झुकाव दिखा रहे है. इससे ना सिर्फ उनकी आय बढ़ती है बल्कि कृषि क्षेत्र में भी बहुत सहायता मिलती है. अगर आप भी पशुपालन करने के बारे में सोच रहें हैं, तो बकरी पालन (Goat rearing ) की शुरुआत कर सकते हैं. यह काम लागत के साथ अधिक लाभ दिलाता है. बकरी पालन में सबसे बड़ा फायदा यह है की इसके लिए बाजार स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो जाता है. जिससे बाजार की कोई समस्या नहीं रहती है.
बकरी पालन की पूरी प्रक्रिया (Goat rearing process)
बकरी पालन करने के लिए पशुपालक को अलग से कोई जगह लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. उन्हें वो अपने घर पर ही आसानी से रख सकते हैं. वहीं बड़े पैमाने पर यदि बकरी पालन का कार्य किया जाएं, तब उसके लिए अलग से बाड़ा बनाने की जरुरत पड़ती है. यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र में ज्यादातर लोग खेती किसानी के साथ बकरी पालन का कार्य करते हैं. ऐसी स्थिति में ये बकरियां खेतों और जंगलों में चर कर अपना भोजन आसानी से प्राप्त कर लेती है. अतः इनके लिए अलग से दाना-भूसा आदि की व्यवस्था बहुत कम मात्रा में करनी पड़ती है.
ऐसे में कुछ किसान कृषि में ज्यादा लाभ ना मिल पाने के वजह से पशुपालन की ओर अपना झुकाव दिखा रहे है. इससे ना सिर्फ उनकी आय बढ़ती है बल्कि कृषि क्षेत्र में भी बहुत सहायता मिलती है. अगर आप भी पशुपालन करने के बारे में सोच रहें हैं, तो बकरी पालन (Goat rearing ) की शुरुआत कर सकते हैं. यह काम लागत के साथ अधिक लाभ दिलाता है. बकरी पालन में सबसे बड़ा फायदा यह है की इसके लिए बाजार स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो जाता है. जिससे बाजार की कोई समस्या नहीं रहती है .
बकरी पालन की पूरी प्रक्रिया (Goat rearing process)
बकरी पालन करने के लिए पशुपालक को अलग से कोई जगह लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. उन्हें वो अपने घर पर ही आसानी से रख सकते हैं. वहीं बड़े पैमाने पर यदि बकरी पालन का कार्य किया जाएं, तब उसके लिए अलग से बाड़ा बनाने की जरुरत पड़ती है. यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र में ज्यादातर लोग खेती किसानी के साथ बकरी पालन का कार्य करते हैं. ऐसी स्थिति में ये बकरियां खेतों और जंगलों में चर कर अपना भोजन आसानी से प्राप्त कर लेती है. अतः इनके लिए अलग से दाना-भूसा आदि की व्यवस्था बहुत कम मात्रा में करनी पड़ती है.
अफारा (Flatulence Disease)
इस बीमारी में बकरियां तनाव में रहना शुरू कर देती है, वो लगातार अपने दांतों को पीसती रहती है और मांसपेशियोंको हिलाती है. इस बीमारी के उपचार के लिए सोडा बाइकार्बोनेट दिया जाना चाहिए.
थनैला रोग (Mastitis Disease )
इस बीमारी में बकरियां का लेवे गर्म और सख्त होने लगता है और भूख में भी कमी आनी शुरू हो जाती है. इस बीमारी के उपचार के लिए विभिन्न तरह के एंटीबायोटिक मौजूद हैं जैसे सी डी पेंसीलिन, एंटीऑक्सिन, बेनामाइन, नुफ्लोर आदि दिया जाना चाहिए.
दस्त (Diarrhea Disease)
इस बीमारी में बकरी थोड़े-थोड़े अन्तराल पर तरल रूप में मल निकालती है. इसके साथ ही शरीर में बहुत कमजोरी आने लगती है. इस बीमारी के उपचार के लिए नेबलोन पाउडर 15 से 20 ग्राम 3 दिन तक दें. अगर बकरी को दस्त में खून भी आ रहा है, तो इसे वोक्तरिन गोली आधी सुबह और शाम नेबलोन पाउडर के साथ दे सकते हैं.
निमोनिया (Pneumonia Disease)
इस बीमारी में बकरी को ठंड लगने लगती है, नाक से तरल पदार्थ का रिसाव होने लगता है, मुंह खोलकर सांस लेने में भी दिक्कत होती है व खांसी, बुखार आने लगता है. इस बीमारी के उपचार के लिए ठंड के मौसम में जितना हो सके बकरियों को छत वाले बाड़े में ही रखें और खांसी के लिए केफलोन पाउडर 6-12 ग्राम रोजाना 3 दिन तक देते रहें.
ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब की गाय के नाम से मशहूर बकरी हमेशा से ही आजीविका के सुरक्षित स्रोत के रूप में पहचानी जाती रही है. बकरी छोटा जानवर होने के कारण इसके रख-रखाव में लागत भी कम होता है. सूखा पड़ने के दौरान भी इसके खाने का इंतज़ाम सरलता से हो सकता है. इसकी देखभाल का कार्य भी महिलाएं एवं बच्चे आसानी से कर सकते हैं और साथ ही जरुरत पड़ने पर इसे आसानी से बेचकर अपनी जरूरत भी पूरी की जा सकती है.
यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र के अधिकतर लघु एवं सीमांत किसान आय कम होने के कारण सपरिवार एक या दो जानवर अवश्य पालते हैं, ताकि उनके लिए दूध की व्यवस्था होती रहे. इनमें गाय, भैंस और बकरी आदि शामिल होती हैं. बीते कुछ सालों से पड़ रहे सूखे की वजह से बड़े जानवरों के लिए चारा आदि की समुचित व्यवस्था आदि करना एक मुश्किल कार्य होने के वजह से लोग अब बकरी पालन को प्राथमिकता दे रहे है.