भारत में खेती सबसे महत्वपूर्ण रोजगार और लोगों के जीवन जीने का साधन है. आज के समय में भी ग्रामीण क्षेत्रों (Rural Areas) में किसान खेती ही करते हैं. हमारे देश की मिट्टी में कई तरह की खेती को आसानी से किया जा सकता है.
भारत की जलवायु और मिट्टी में बिना उर्वरक और रसायनों के खेती (Farming of fertilizers and chemicals) से अच्छी पैदावार की क्षमता है और इन्हीं खेती से देश के ज्यादातर किसान अपना जीवन यापन करते हैं. इन्हीं खेती में से एक नीलगिरी की खेती (Eucalyptus cultivation) है, जिससे आमतौर पर सफेदा की खेती (whitewashed cultivation) कहा जाता है. इसकी खेती से किसान भाइयों को अधिक मुनाफा प्राप्त होता है. क्योंकि बाजार में इसके इस्तेमाल से ईंधन से लेकर कागज, चमड़ा और तेल आदि बनाए जाते है.
भारत के किन राज्यों में नीलगिरी की खेती होती है
आपको बता दें कि पूरी दुनिया में नीलगिरी (Eucalyptus) की 300 से अधिक किस्में पाई जाती हैं. इसकी खेती सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि इसे अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका जैसे कई देशों में बड़े पैमाने पर की जाती है. अगर भारत की बात करें, तो उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, गोवा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक होती है. भारत में नीलगिरी की खेती (Eucalyptus cultivation in india) के लिए जून से लेकर अक्टूबर का समय उपयुक्त है.
ऐसे करें नीलगिरी की खेती (How to do eucalyptus cultivation)
भारत में इसकी लगभग 6 किस्में (Eucalyptus varieties) की खेती की जाती है. जो कुछ इस प्रकार से है.
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नीलगिरी ऑब्लिव्का(Eucalyptus oblivka)
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नीलगिरी डायवर्सी कलर( Eucalyptus Diversity Color)
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नीलगिरी डेलीगेटेंसिस(Eucalyptus delegatensis)
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नीलगिरी निटेंस( Eucalyptus Nitens)
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नीलगिरी ग्लोब्युल्स( Eucalyptus Globules)
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नीलगिरी विमिनैलिस ( Eucalyptus viminalis)
देखा जाए, तो इन सभी किस्मों के पेड़ों की लंबाई 80 मीटर तक होती है. जो 5 साल में किसानों को लाखों का लाभ देते हैं. तो आइए नीलगिरी की खेती (Eucalyptus cultivation) कैसे करें इसके बारे में जानते हैं...
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अगर आप इसकी खेती की बुवाई (farming sowing) को मानसून के समय करते हैं, तो इसके पौधों में वृद्धि बहुत तेजी से होती है.
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इसकी खेती के लिए किसानों को बीज या कलम की बुवाई से कम से कम 20दिन पहले खेत की अच्छे से तैयारी कर लेनी चाहिए.
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नीलगिरी की खेती को अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में ही करें, ताकि यह अच्छे से बढ़ सके.
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आपने अक्सर देखा होगा कि इसे पेड़ काफी बड़े होते हैं, इसलिए इसकी खेती के लिए अच्छी धूप, पानी और साथ ही दवा की जरूरत होती है.
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इसकी खेती में मिट्टी में पोषण देने के लिए नमी को बनाए रखें.
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अच्छी क्वालिटी की लकड़ी के लिए इसके पौधों में कीट व रोगों कीरोकथाम करना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि इसके पौधों में बहुत जल्दी दीमक, कोढ़ और गांठ का रोग लग जाता है.
नीलगिरी की खेती से किसानों को लाभ (Farmers benefit from eucalyptus cultivation)
नीलगिरी के पेड़ों की बाजार में सबसे अधिक मांग होती है, क्योंकि इसके पेड़ों से कई तरह के बेहतरीन उत्पादों को तैयार किया जाता है. इसके पेड़ से अच्छी लकड़ी (Eucalyptus tree wood) प्राप्त होती ही है, साथ ही इससे कागज, चमड़ा, गोंद और औषधीय तेल (Eucalyptus Herbal Oil) निकालने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. इसके तेल से व्यक्ति के नाक, गले और पेट से संबंधित बीमारियों को लाभ पहुंचता है.
अगर किसान अपने खेत में लगभग 3 हजार नीलगिरी के पौधे (Eucalyptus plants) को लगाते हैं, तो उन्हें प्रति पौधे पर 7 से 8 रुपए तक खर्च आता है. इस हिसाब से इसके पौधों में लगभग 21 हजार रुपए का खर्च आता है और खाद-उर्वरक (fertilizers) में 25 हजार रुपए तक का खर्च आता है.
5 साल बाद एक एकड़ खेत से नीलगिरी के पेड़ (eucalyptus trees) से किसान को 12 लाख किलो लकड़ी प्राप्त होती है. जिसे फिर किसान बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं.
देखा जाए, तो किसान एक एकड़ खेती की नीलगिरी लकड़ी से 60 लाख रुपए तक लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
नीलगिरी की खेती से रोजगार के अवसर (Employment opportunities from eucalyptus cultivation)
देश में हर साल लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर तक नीलगिरी की खेती की जाती है. एक रिपोर्ट के अनुसार, इसकी खेती से ग्रामीण इलाकों के किसान व लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है. देखा जाए तो कृषि फसलों (Agricultural crops) की तुलना में नीलगिरी की खेती करने वाले किसानों की आय 60 से 70 प्रतिशत अधिक पाई जाती है. अगर किसान भाई अपनी आय (farmers' income) बढ़ाना चाहते हैं, तो नीलगिरी की खेती उसके लिए अच्छा विकल्प साबित हो सकता है.
अगर आप चाहें, तो इसकी खेती के साथ-साथ आप सब्जियों की सह-फसल खेती को भी सरलता से कर सकते हैं. जिससे नीलगिरी की खेती में लागत (cost of eucalyptus cultivation) कम लगती है, साथ ही इससे किसानों को दोगुना मुनाफा (double profit to farmers) प्राप्त होता है.