देश में इन दिनों वायु की गुणवत्ता काफी खराब है, ध्वनि प्रदूषण के बाद वायु प्रदूषण आज लोगों के जीवन में एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है इसके साथ ही भूमि प्रदूषण भी बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है. किसान अधिक उत्पादन के लालच में खेतों में अधिक रसायनों, पेस्टीसाइडस का इस्तेमाल कर रहे है. इससे भूमि प्रदूषण का स्तर काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है. विशेषज्ञों के अनुसार अत्याधिक रसायन से भूमि बंजर होती जा रही है. जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए रसायनमुक्त उत्पादन करना बड़ी चुनौती है. रायुपर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने जैविक खेती को नुकसान पहुंचाने वाले शत्रु कीट को मारने के लिए उनका संवर्धन पालना शुरू कर दिया है.
पौष्टिक तत्वों का क्षरण रूका
यह सभी कीट धान, तिलहन, दलहन, सब्जी, भाजी आदि के लिए पौधों को खाने और नष्ट करने वाले कीटों को खाते है या उनको नष्ट कर देते है. इससे किसानों को कीटनाशक का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं करना पड़ रहा है. किसानों ने बताया कि जैविक खेती में प्रयोग के तौर पर रासायनिक खाद और कीटनाशक डालने के बजाय इन कीटो का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में उनकी भूमि से पौष्टिक तत्वों के क्षरण तो रूक रहा है साथ ही हानिकारक शत्रु कीट भी फसल को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचा पा रहे है.
इस तरह से फॉर्मूला आया
कृषि विवि के जैविक कीट विज्ञान विभाग के नेतृत्व में शत्रु कीटों को नष्ट करने के लिए मित्र कीटों का संवर्धन किया जा रहा है. इसके सहारे पर्यावरण को भी फायदा हो रहा है. विवि में बायोकंट्रोल एजेंटस उत्पादन एवं प्रशिक्षण केंद्र की मदद से गांगुली ने खेतों से इन मित्र कीटों को लैब में लाया है. उनके अनुकूल लैब को निर्मित किया गया है ताकि कीटों का संवर्धन किया जा सकें. इन प्रयोग के सफल होने के बाद इन कीटों का कामर्शियल इस्तेमाल को शुरू कर दिया है. अभी तक गाजर घास, खरपतवार को नियंत्रण करने के लिए खरपतवार नाशी दवाईयों का छिड़काव और हानिकारक कीटों पर नियंत्रण के लिए कीटनाशक का इस्तेमाल करते है.
यह है मित्र कीट
यह जैविक मित्र कीट गाजरघास के शिशु, वयस्क पौधे को खाकर पूरी तरह से नष्ट करता है. राजनांदगांव के किसान विजय कटरे ने इसका पूरी तरह से सफल प्रयोग किया है. ट्राइकोग्रामा परजीवी अंड का यह जैविक कीट पौधों के हानिकारक कीटों के अंडावस्था को नष्ट करता है. इससे धान में लगने वाले हानिकारक कीटों को नियंत्रित करता है.
बस्तर का चोपड़ा
बस्तर में पाए जाने वाले लाल चीटी को चपोड़ा कहा जाता है. यह कीट रस चूसने वाले शत्रु कीटों मिलीबग, एपिड, जैसिड सभी को नष्ट करता है. यह बस्तर में आम, अमरूद, गुदहड़ में पाया जाता है.