भारत में बदलते दौर में अब फूलों की खेती (Flower Farming) व्यापारिक तौर पर बहुत ज्यादा होने लगी है. वर्तमान में फूलों के उत्पादन (Flower Production) का क्षेत्र बढ़ रहा है, क्योंकि भारत की जलवायु (Climate) में नाजुक और कोमल फूल आसानी से उगाए जा सकते हैं. भारत को फूलों का निर्यातक देश भी कहते हैं. ज्यादातर किसान अब फूलों की खेती कर बंपर मुनाफा कर रहे हैं. ऐसे में आपको गुलनार फूल की खेती से जुड़ी जानकारी दे रहे हैं. गुलनार का फूल (Gulnar Flower)बहुत ही खास होता है क्योंकि यह ज्यादा देर तक ताजा रह सकता है जिसकी वजह से इसे लंबी दूरी पर लेकर जाना आसान होता है. साथ ही इसे रिहाइड्रेशन से भी ताजा रखा जा सकता है. जो इसकी खास क्वॉलिटी है. गुलनार के फूल पीले, जामुनी और गुलाबी आदि रंगों में मिलते हैं. गुलगार की खासियत की वजह से खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है.
मिट्टी का चयन- गुलनार की खेती किसी भी तरह की मिट्टी में कर सकते हैं लेकिन अच्छे उत्पादन के लिए उचित जल निकासी वाली मिट्टी का इस्तेमाल करना चाहिए. जबकि उत्तम रेतली दोमट मिट्टी गुलनार की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है, उचित बढ़ोतरी के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए.
जमीन की तैयारी- गुलनार की खेती के लिए बेड तैयार किए जाते हैं. बेड 15-20 सेमी ऊंचे, 1-1.2 मीटर चौड़े होते हैं और आवश्यक लंबाई का ध्यान रखा जाता है. बेड के बीच की दूरी 45 से 60 सेमी रखनी चाहिए.
बुवाई का समय- ग्रीन हाउस के नियंत्रित वातावरण में बुवाई की जा सकती है. उत्तरी मैदानों के लिए बिजाई आमतौर पर सितंबर से नवंबर महीने में की जानी चाहिए और फूलों की कटाई फरवरी से अप्रैल महीने तक करनी चाहिए.
बुवाई का तरीका- गुलनार की बिजाई के लिए पौधे के भाग का इस्तेमाल करते हैं, बीज बेड के बिल्कुल ऊपर 15x15 सेमी या फिर 20x20 सेमी की दूर पर बोना चाहिए. बेड के बीच की दूरी 45-60 सेमी रखनी चाहिए. बेड के ऊपर पौधे के भाग को बोना चाहिए.
बीज मात्रा और उपचार - खेती करने के लिए एक एकड़ खेत के लिए लगभग 75 हजार पौधे के भागों की जरूरत होती है. 21 दिनों में आमतौर पर अच्छे तरीके से जड़ें विकसित हो जाती हैं, बुवाई से पहले पौधों के भागों को NAA 1000 PPM प्रति ग्राम लीटर से उपचारित करना चाहिए जिससे जड़ों के विकास में सुधार होता है.
सिंचाई- गुलनार की फसल को थोड़े-थोड़े समय के बाद पानी देते की जरूरत होती है. गर्मियों में हर सप्ताह 2-3 बार पानी देना चाहिए, जबकि सर्दियों में 15 दिनों के अंतराल में 2 से 3 बार पानी देना चाहिए. बुवाई के तत्काल बाद पानी देना चाहिए.
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कटाई- कली का आकार और पत्तियों का विकास कटाई के लिए निर्भर करता है. इसकी कटाई हमेशा सुबह करनी चाहिए. मुख्य पौधे और तने को नुकसान पहुंचाए बिना तने को तीखे चाकू से काटना चाहिए. उत्पादन के समय हर 2 दिन बाद फूल काटें और कटाई के बाद फूलों को पानी या सुरक्षित घोल में कम से कम 4 घंटे के लिए रखना चाहिए. काटे हुए फूल सीधी धूप में न रखें.