राजस्थान के सीकर जिले में किसान परंपरागत खेती करने के बजाय फूलों की खेती को बढ़ावा देने का कार्य कर रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह फूलों की बिक्री से किसानों की रोजाना आय है. इनकी बानगी यह है कि वर्षों से प्याज उत्पादक क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध रसीदपुरा, भढाडर क्षेत्र के कई खेतों में बाबूना जैसे फूल लहलहा रहे हैं. इसके अलावा इस जिले के किसानों ने खेत में विकल्प के तौर पर डच रोज़, इंग्लिश रोज़ जैसे मंहगे फूलों की खेती को अपनाना शुरू कर दिया है. इसका सबसे बड़ा असर यह हुआ है कि इस नकदी के कारोबार से जिले के सौ से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है, जिसका फायदा उनको काफी हद तक हो रहा है. इसका दूसरा फायदा यह है कि किसानों का गांवों को छोड़कर शहरों में होने वाला पलायन भी कम हुआ है. फूल की खेती से अच्छी आमदनी होने के चलते युवाओं का भी खेती के प्रति रूझान बढ़ा है. इसके साथ ही यहां के किसान मंडियों में बड़े पैमाने पर फूल बेचकर अच्छी कमाई कर रहे हैं.
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कम लागत में अच्छा मुनाफा
विदेशी किस्म के फूलों का बीज औसतन 8 हज़ार से 19 हजार रूपये किलो तक आता है. किसान नत्थू सिंह बताते है कि बाबूना फूल की किस्म के बीज अक्टूबर के महीने में लगाए जाते है. इसके लिए जमीन की तैयारी और खरपतवार हटाने समेत अन्य काम के लिए दो से तीन हजार रूपए और फिर सवा महीने बाद से ही उत्पादन शुरू हो जाता है. यह उत्पादन केवल तीन माह तक ही मिलता है. इसके उत्पादन की खास बात यह है कि एक बार फूल को तोड़ देने के बाद महज पांचवे दिन में फूल तैयार हो जाता है.
फूलों के लिए बाजार की है कमी
किसान ताराचंद ने कहा कि फिलहाल सीकर जिले में फूलों की मंडी घंटाघर के पास लगती है. इस मंडी में फूलों के खरीददार थोड़े कम हैं जिससे कई किसान तो त्यौहारी सीजन में सीधे फूलों की आपूर्ति जयपुर और दिल्ली तक करते है जिससे उनको काफी अच्छा फायदा होता है. रोजाना फूलों से होने वाली आय को देखते हुए किसानों ने खेती के दायरे को भी बढ़ा दिया है जिससे कई तरह के अच्छे परिणाम सामने दिखाई देने लगे है.
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण