देश की बढ़ती जनसंख्या को भोजन उपलब्ध कराने के लिए सघन खेती ही एकमात्र विकल्प बनता जा रहा है, क्योकि बढ़ती जनसंख्या के दबाव के कारण खेती की भूमि अन्य कार्यो के लिए परिवर्तित हो रही है. इसलिए आपको खेती की उतेरा विधि के बारे में बता रहे हैं.
भारत में बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहां की कृषि पूरी तरह से बारिश पर आधारित है और सिंचाई के सीमित साधन के कारण ही रबी मौसम में खेत खाली रहते हैं ऐसे क्षेत्रों के लिए सघन खेती के रूप मे उतेरा खेती एक अहम विकल्प साबित हो सकती है. क्योंकि उतेरा खेती का मुख्य उद्देश्य खेत में मौजूद नमी का उपयोग अगली फसल के अंकुरण और वृद्धि के लिए करना है. यह फसल उगाने की वह पद्धति है जिसमे दूसरी फसल की बुवाई पहली फसल के कटने के पहले ही कर दी जाती है.
इन फसलों के लिए उपयुक्त उतेरा खेती
किसान रबी सीजन की मुख्य फसलें जैसे अलसी, सरसों, उड़द, चना, तिवड़ा, गेहूं, मसूर, मटर आदि फसलों की खेती में इस विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं.
उपयुक्त मिट्टी
उतेरा खेती के लिए मटियार दोमट जैसी भारी मृदा वाली भूमि उपयुक्त मानी जाती है. अत: मध्यम और निचली भूमि का चुनाव करना चाहिए. भारी मृदा में जलधारण क्षमता अधिक होती है साथ ही काफी लम्बे समय तक मृदा में नमी बनी रहती है. टिकरा या उच्च भूमि उतेरा खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है क्योंकि यह जल्दी सूख जाती हैं.
फसल लगाने का समय और तरीका
उतेरा खेती सामान्यत: धान की फसल में की जाती है. धान की फसल कटाई के 15-20 दिन पहले जब बालियां पकने की अवस्था में हों यानि अक्टूबर के बीच से नवम्बर के बीच में उतेरा फसल के बीज छिड़क दिये जाते हैं. बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिए. नमी इतनी होनी चाहिए की बीज गीली मिट्टी में चिपक जाए. ध्यान दें कि खेत में पानी अधिक न हो अन्यथा बीज सड़ जायेंगे. जरूरत से ज्यादा पानी की निकासी कर देनी चाहिये.
फसल का चुनाव
मुख्य फसल और उतेरा फसल के बीच समय का सामंजस्य बहुत जरूरी है. मुख्य फसल के लिए मध्यम अवधि वाली धान की फसल अर्थात 100 से 125 दिनों में पकने वाली उन्नत प्रजाति का चुनाव करना चाहिए. लंबी अवधि वाली धान की फसल का चुनाव करने से उतेरा फसल को वृद्धि के लिए कम समय मिलता है और नमी के अभाव के कारण उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इसलिए धान की उन्नत और मध्यम अवधि वाली किस्में जैसे- समलेश्वरी, दंतेश्वरी, आई. आर.-36, आई. आर.- 64, चंद्रहासिनी, इंदिरा राजेश्वरी, पूर्णिमा, एमटीयू-1010, पूसा बासमती इत्यादि की खेती खरीफ में मुख्य फसल के रुप में कर सकते हैं. इसके अलावा उतेरा फसल के रूप में अलसी, तिंवड़ा, मसूर, चना, मटर, लूसर्न, बरसीम आदि का चुनाव कर सकते हैं.
बीज दर
उतेरा फसल के लिए बीज दर उस फसल के सामान्य अनुशंसित मात्रा से लगभग डेढ़ से दोगुना अधिक होता है. उदाहरण के लिए तिंवड़ा का अनुशंसित बीज दर 40-45 किलो प्रति हेक्टेयऱ है वहीं उतेरा खेती के लिए 90 किलो प्रति हेक्टेयर बीज दर लगता है.
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उपज
प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल पैदावार बढ़ाने के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव जरूरी है. किसान यदि मुख्य फसल धान की तरह ही उतेरा फसल की खेती पर ध्यान दें तो निश्चित रूप से प्रति इकाई क्षेत्रफल मे पैदावार बढ़ेगी. जिससे किसानों को ज्यादा मुनाफा होगा.