सालम पंजा टेरिसटियल चिकने चमड़े जैसा 20-25 सेमी. लंबा पौधा होता है. इसके कन्द हल्के फैले हुए, हथेलियों के आकार के 3-5 अंगुलियों में विभाजित हुई रचना के समान होते है. पत्तियां 4-6 स्तंभिक, रैखिक बाले की धार के आकार वाली होती है. इसकी खेती एल्पाइन क्षेत्रों में तथा पश्चिमी हिमालय की अत्याधिक ठण्डी जलवायु (2500-3000 मीटर) में भी पौधा असानी से उगाया जा सकता है. पौधों के विकास के लिए नम, एसिडिक रेताली, समृद्ध दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है. आंशिकी रुप से धूप वाले स्थान इसकी खेती के लिए अधिक बेहतर होते है. 15-25 डिग्री सेल्स के बीच का तापमान इसके विकास के लिए सर्वोत्तम होता है.
रोपण सामग्री
- बीज और कंदों की कटिंग.
- प्रकंदों के अकुरण छिटका कर बी पौधों को उगाया जाता है.
नर्सरी तकनीक
पौध उगाना
- वर्धी रोपण कन्द के द्वारा अधिक सफल होता है (4-6 सेंटीमीटर उंचा पौधा तैयार होता है).
पौध दर और पूर्व उपचार
- बीज को कम उंचाई पर प्राकृतिक उत्पति स्थान से एकत्रित करते हुए अधिक बेहतर परिणाम प्राप्त किये जाते हैं.
- अपरिपक्व और ताजे बीजों को इकट्ठा करके अंकुर प्रतिशतता को बढ़ाया जाता है.
- एक हेक्टेयर के लिए लगभग 1,11,150 कंदों या कंदों के खंड़ों की आवश्यकता पड़ती है.
खेत में रोपण
भूमि की तैयारी और उर्वरक प्रयोग
- भूमि पर हल चलाते हुए उसको समतल किया जाना चाहिए और निराई मुक्त रखना चाहिए.
- एक हेक्टयर के लिए लगभग 5000 किलोग्राम पशु खाद की आवश्यकता होती है. पशु खाद और जंगली घासपात की खाद से इसके जीवन, विकास और पैदावार में वृद्धि होती है.
पौधा रोपण और अनुकूलतम दूरी
- 0 मिमी आकार के छोटे कंद को 15 सेमी.x15 सेमी. की दूरी पर 5.0 सेंटीमीटर-7.0 सेटीमीटर गहराई में प्रत्यारोपित किया जाता है.
अंतर फसल प्रणाली
- इस पौधे को अतीस तथा चिरायता के साथ उगाया जा सकता है.
अंतर खेती और रख-रखाव पद्धतियां
निराई
- विशेष रुप से वर्षा ऋतु में प्रत्येक सात से दस दिनों के भीतर निराई इसके अधिकतम विकास के लिए उपयुक्त होती है.
सिंचाई
- जड़ों के विकास के लिए 80-90 प्रतिशत नमी की आवश्यकता होती है.
- आरम्भिक चरण के दौरान निचले भागों में प्रत्येक बारह घंटों में सिंचाई की जरुरत होती है.
फसल प्रबंधन
फसल पकना और कटाई
- प्राय:कन्दों को पांच वर्ष के पश्चात् वकाटने से अच्छी पैदावार होती है.
- कभी कभी इसे प्रत्यारोपण के दो या तीन वर्षा के बाद भी काटा जा सकता है.
- सितम्बर के अंत में बीज के पकने पर कंदों को ककत्रित किया जाता है.
खेती पश्चात् प्रबंधन
- पुराने कंदों को युवा कंदों से अलग किया जाता है और एक घंटे तक इसको गर्म पानी में भिगाया जाता है.
- कंदों की बाहरी त्वचा को हटाया जाता है और हल्की पीली कंदों को धूप में सूखाकर इसे भंडारित किया जाता है.
पैदावार
- प्राकृतिक अवस्था में लगभग 1.764 टन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है.
- हरित घरों में प्रत्यारोपण करके इसकी उत्पादकता लगभग 1.80-2.0 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाई जा सकती है.