यहां पर जिले में तालाब के जगह पर प्लास्टिक के जार में मत्स्य पालन किया जा रहा है.जिले के एक छोटे से गांव सलावा के किसान प्रकाशवार वीर ने भी खेती की नई तकनीक को अपनाया है. उन्होंने खेत की जगह पर मकान की छत पर ही हाइड्रोफोनिक विधि से खेती करने का कार्य किया है.इस विधि में मिट्टी के बजाय नारियल के फल के छिलके के बुरादे में फसल बोई जा रही है. इस बुरादे को कोको-पिट कहा जाता है.
ऐसे की गई हाइड्रोपोनिक खेती
इस खेती के लिए मकान की छत पर चार इंच व्यास के पाइप को बिछाया गया है. इसमें नौ इंच की दूरी पर छेद किए गए हैं. इसमें कुल नौ इंच की दूरी पर छेद किए गए हैं. इन छेद में प्लास्टिक की जाली में नारियल के छिलके का बुरादा भरा गया है. सभी साइड में पाइप लगे होते हैं. ये आपस में एक अन्य छोटे पाइप से कनेक्ट होते है. पहले पाइप में टंकी से पानी छोड़ा गया है. पानी सभी पाइप में घूमकर सबसे पहले आखिरी छोर में पहुंचता है. वहां पर पानी बाहर एक ड्रम में एकत्र होता है. यह पानी बार-बार सिंचाई तकनीक में इस्तेमाल किया जाता है. इस विधि से फसलों में तरल खाद दिया जाता है. उन्होंने इस विधि से 300 पौधे बोए थे. हर पौधे पर 400 ग्राम फल आया. फसल के दाम 400 से 600 रूपये प्रति किलोग्राम मिल चुके है.प्रकाशवीर ने अपनी फसल को 40 हजार रूपये में बेची है.
हाइड्रकोपोनिक खेती नई तकनीक
यह एक नई तरह की तकनीक है जिन लोगों के पास अपनी खुद की जमीन नहीं है वह इस खेती को कर सकते है. इसका इस्तेमाल घर या खेत में किया जा सकता है. हाइड्रोफोनिक विधि में खेत के मुकाबले केवल एक चौथाई जगह में ज्यादा त्पादन लिया जा सकता है. इसमें खेत में नाली और गुल आदि बनाने की जरूरत नहीं होती है. कोको पिट बीज की दुकानों से मिल जाता है. कुल 300 स्कावायर फीटमें लगाने की 15 हजार लगात आती है. फिलहाल कोई सबब्सिडी इस योजना में नहीं मिलती है.
अन्य किसान हो रहे जागरूक
किसान भी इस तकनीक को अपनाकर काफी जागरूक हो रहे है. मिट्टी से कई तरह के कीटों के जरिए बहुत सी बीमारी आती है. किसान प्रकाशवीर के अनुसार आसपास के के गांवों के किसानों ने भी उनके घर पर आकर खेती करने की बात कही है.