Groundnut Variety: जून में करें मूंगफली की इस किस्म की बुवाई, कम समय में मिलेगी प्रति एकड़ 25 क्विंटल तक उपज खुशखबरी! किसानों को सरकार हर महीने मिलेगी 3,000 रुपए की पेंशन, जानें पात्रता और रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया Monsoon Update: राजस्थान में 20 जून से मानसून की एंट्री, जानिए दिल्ली-एनसीआर में कब शुरू होगी बरसात किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 17 May, 2019 5:34 PM IST

कंजरों के नाम से पहचाने जाने वाला मध्य प्रदेश का ग्राम पंथ पिपलौदा अब पनी संतरे की खेती के लिए मशहूर हो गया है. यहां धार के जिला तहसील से लगभग 30 किमी दूर गांवों के लोगों ने संतरे की खेती से आर्थिक रूप से तो खुद को मजबूत बनाया ही है साथ ही ग्रामीणों से प्रेरित होकर अपराधों के लिए मशहूर कंजर समाज के 50 परिवार भी खुद संतरे की खेती को करके अब अपराध से हटकर समाज की मुख्यधारा से जुड़ते जा रहे है. आज से ठीक 15 साल पहले ग्रामीणों के द्वारा शुरू की गई खेती का ही नतीजा है कि यहां का संतरा अब यूपी, महाराष्ट्र, गुजरात सहित देश के अलग-अलग प्रातों में लोगों की पहली पसंद बन चुका है. यहां के ग्रामीणों का कहना है कि पारंपरिक फसलों से जहां पर खर्चे को काटने के बाद कुल 10 से 15 हजार रूपये हाथ में आते थे बाद में इसी संतरे की खेती को काटने के बाद लाखों की कमाई होने लगी है.

पहले नागपुर से आते थे संतरे

ग्रामीणों का कहना है कि यहां पर गांव में पानी की कमी है इसलिए पांरपरिक रूप से खेती करना संभव नहीं हो पाता है. यहां पर सोयाबीन, लहसुन, गेहूं का कम उत्पादन देखकर किसानों ने नागपुर से संतरे के पौधे लाना शुरू कर दिया था. इसमें से कुच पौधे वह अपने खेत में लगाते है तो कुछ पौधे अन्य ग्रामीणों को निशुल्क ही दे देते है. बाद में संतरे की खेती ग्रामीणों को समझ में आने लगी और लगभग 25 प्रतिशत गांव के निवासी संतरे की खेती करने का कार्य कर रहे है. संतरे का सौदा गांवों से ही होता है. दूसरे प्रांतों में व्यापारी संतरे की खेती का सौदा कर जाते है.

कम पानी लगता है

ग्रामीणों का कहना है कि संतरे की खेती में अन्य पांरपरिक फसलों के मुकाबले कम पानी लगता है. जबकि सोयाबीन, गेहूं, प्याज में कुल 7-8 बार पानी लग जाता है. संतरे की फसल में सर्दी और गर्मी के मौसम में महज 5-6 बार पानी लगता है जो कि सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है. संतरे की खेती के लिए 3-4 स्प्रे प्रति पौधा 1 किलो खाद, प्रति पौधे 5 रूपये गुड़ाई और पौधे को टिकाने के लिए बांस की जरूरत होती है. इतनी सारी मेहनत पर प्रति क्विंटल ढाई से तीन टन संतरे का उत्पादन होता है. कई बार तो सरकार की तरफ से भी कंजरो को न संतरों के उत्पादन करने पर मदद मिल जाती है.

English Summary: Famous orange cultivation in this village of Madhya Pradesh
Published on: 17 May 2019, 05:37 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now