अगर आपके इरादे फौलाद हो तो सपनो को साकार होते हुए देर नहीं लगती है. इसी कहावत को साकार करके दिखा दिया है. नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक के बसगांव निवासी 86 वर्षीय बुजुर्ग गणेश दत्त पांडे ने. उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके जमीन में बागान को विकसित करके काम से जी चुराने वालों के लिए एक नई मिसाल को पेश किया है. उन्होंने बागान को विकसित करके लोगों को काफी रोजगार उपलब्ध करवाया है. आज उनके जरिए लगाए गए बागान मेट्रो सिटी दिल्ली तक खुशबू को बिखेर रहे है.
तीन परिवारों को रोजगार मिला
बागवानी के सहारे तीन गरीब परिवारों को रोजगार मिल रहा है. यह परिवार सीजन में फलो की देखरेख और दूसरे बाकी समय में सब्जियों और दालों की खेती करते है. बुजुर्ग गणेश दत पांडे के बेटे का कहना है कि इस तरह से बागवानी करने से परिवार को साल के दो लाख रूपये की आमदनी प्राप्त हो जाती है. उन्होंने पुश्तैनी जमीन पर बागवानी करने की ठानी है. इसके बाद बीज, कटिंग आदि से आडू, सेब, खुमानी, नाशपाती समेत विभिन्न प्रजातियों की पौध को तैयार कर लिया है. उन्होंने दस साल की मेहनत के बाद बागों को विकसित किया है. ऐसा करके उनकी आमदनी में भी काफी इजाफा हुआ है.
दूसरे परिवारों ने शुरू की बागवानी
गणेश दत्त पांडे को देखकर गांव के अन्य लोग भी उनसे बागवानी की प्रेरणा लेने का कार्य कर रहे है. आज 40 से ज्यादा परिवारों ने बागवानी को अजीविका का जरिया बना लिया है. हल्दानी और दिल्ली में भी पहाड़ी फलों की चछी डिमांड होने के बाद एक के बाद एक लोग बागवानी के कार्य से जुड़ते गए है. फलों की यह प्रजाति सात से नौ साल में उत्पादन देने लगती है.गणेश दत्त पांडे जरूरतमंदों को सस्ती दरों पर फलदार पौधों की कटिंग भी उपलब्ध करवा रहे है.
इन प्रजातियों का हो रहा उत्पादन
गणेश दत्त पांडे मुख्य रूप से आडू की रैड जून, पैरा, आसाडी, लाल बाईस, सेब की लालबाईस, फैनी, डैलीसस, आमरी, खुमानी में बादामी, गोला, पुलम में सैंटरोजा और सरसोमा की किस्म, जबकि नाशपाती में जाखनैल, चुसनी, बूबूगोसा कश्मीरी आदि प्रजातियों का उत्पादन हो रहा है. यहां पर बसगांव का आडू, सेब, खुमानी स्थानीय मार्केट से दिल्ली की आजादपुर मंडी तक पहुंचता है यहां पर अच्छी और खास गुणवत्ता वाला फल छोटी पेटियों में पैक करके ट्रांसपोर्ट के सहारे दिल्ली लेकर लाया जाता है. यहां दूसरी ग्रेडिंग का उत्पाद हल्द्धानी से आता है.