विभिन्न सब्जी वर्गीय फसलों जैसे मिर्च, शिमला मिर्च, टमाटर, बैंगन, भिण्डी, कद्दू वर्गीय फसलों, चुकंदर, गाजर, प्याज, लहसुन, आलू आदि में जड़ गांठ की समस्या देखी जाती है. यह समस्या सूत्रकृमि या निमेटोड, जो की मिट्टी मेँ पाये जाने वाला अतिसूक्ष्म जीव है, उसकी वजह है. ये सूत्रकृमि पौधे की जड़ों में प्रवेश करके जड़ों को घायल कर गांठ उत्पन्न कर देते है. इससे फसल बुरी तरह प्रभावित होकर खत्म हो जाती है.
सूत्रकृमि का फसलों पर प्रभाव (Effect of Nematodes on crops)
सूत्रकृमि की प्रमुख रूप से तीन प्रजाति पाई जाती है जो पौधे को गंभीर नुकसान पहुंचाती है इनमें से मुख्य प्रजातियां मेलाइडोगाइनी, ग्लोबोडेरा और हेटरोडेरा हैं. ये सूत्रकृमि पौधे की जड़ों को गांठो में बदल देते हैं जिससे पौधा जल और पोषक तत्व लेने की अपनी क्षमता खो देता है. सूत्रकृमि के आक्रमण से पत्तियों में पीलापन, पौधे बौने व झाड़ीनुमा अविकसित रह जाते है. फसल की उपज पर विपरीत असर पड़ता है. सामान्यतौर पर सूत्रकृमि से फसल को 20-30 % नुकसान होना स्वाभाविक है लेकिन रोग की अधिकता से 70-80 % तक भी फसल को नुकसान हो जाता है.
सूत्रकृमि से बचाव के उपाय (Preventive measures of Nematodes)
1. सूत्रकृमि से फसल को बचने का एक उपाय फसल चक्र है. इसमें ऐसी फसलों का चयन किया जा सकता है जिसमें सूत्रकृमि की समस्या ना होती हो. ये फसलें है- पालक, चुकंदर, ग्वार, मटर, मक्का, गेहूं आदि हैं.
2. कृषि यंत्रो और औजारों से और रोगग्रसित पौध से भी सूत्रकृमि का प्रसार हो सकता है अतः प्रभावित खेत वाले औजारों को उपयोग में लेते समय अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए तथा रोगरहित, साफ, पौध को ही खेत में लगाएं.
3. नीम, सरसों, महुआ या अरंडी की खली 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ खेत में डालने से सूत्रकृमि का प्रभाव कम हो जाता है.
4. सूत्रकृमि की शत्रु फसल को खेत मेँ उगाकर सूत्रकृमि को नष्ट किया जा सकता है. इन फसलों मेँ सरसों, गेंदा और शतावर प्रमुख है. इन फसलों की जड़ों में ऐसे रसायनिक द्रव्य का रिसाव होता है जो सूत्रकृमि के लिए घातक सिद्ध होती है. आलू में सूत्रकृमि से होने वाला सिस्ट रोग को सफ़ेद सरसों लगाने से कम किया जा सकता है. इसी तरह टमाटर में फसल को सूत्रकृमि की समस्या से बचाने के लिए गेंदा को खेत में बीच-बीच में लगाएं.
5. ग्रीष्मकाल में गहरी जुताई करने से सूत्रकृमि के साथ अन्य कीट और रोगों के बीजाणुओं को नष्ट किया जा सकता है. यह तरीका बड़ा प्रभावी है.
6. मई-जून के महीनो मेँ गहरी जुताई करने के बाद खेत को सिंचाई करें और क्यारियां बनाकर पोलिथीन की शीट से ढककर पोलिथीन शीट के किनारों को भी मिट्टी में दबाने का काम करें. ताकि सूर्य की धूप से शीट के अंदर का ताप इतना अधिक हो जाए कि सूत्रकृमि नष्ट हो जाएं.
7. बैगन, टमाटर, मिर्च, भिंडी, खीरा आदि फसल को खेत में 2-3 साल तक न लगाएं.
8. कार्बोफ्यूरान 3 % दानों को रोपाई पूर्व 10 किलो प्रति एकड़ की दर से खेत में मिला दें.
9. सूत्रकृमि के जैविक नियंत्रण के लिए 2 किलो वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम या 2 किलो पैसिलोमयीसिस लिलसिनस या 2 किलो ट्राइकोडर्मा हरजिएनम को 100 किलो अच्छी सड़ी गोबर के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से अन्तिम जुताई के समय भूमि में मिलाएं.
10. सूत्रकृमि प्रतिरोधी किस्म का चयन करके सूत्रकृमि को नियंत्रित किया जा सकता है.
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टमाटर के लिए हिसार ललित, पूसा-120, अर्का वरदान, पूसा H-2,4, पी.एन.आर.-7, कल्याणपुर 1,2,3 है.
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बैंगन के लिए विजय हाइब्रिड, ब्लैक ब्युटी, ब्लैक राउंड, पूसा लॉन्ग पर्पल किस्म हैं.
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खरबूजा के लिए हारा मधु किस्म है.
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आलू के लिए कुफ़री स्वर्ण, कुफ़री थेनामलाई किस्म है.
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मिर्च के लिए पूसा ज्वाला, मोहिनी नामक किस्मों का लगाएं.