Maize Farming: रबी सीजन में इन विधियों के साथ करें मक्का की खेती, मिलेगी 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार! पौधों की बीमारियों को प्राकृतिक रूप से प्रबंधित करने के लिए अपनाएं ये विधि, पढ़ें पूरी डिटेल अगले 48 घंटों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में घने कोहरे का अलर्ट, इन राज्यों में जमकर बरसेंगे बादल! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 31 October, 2020 12:34 PM IST

अदरक एक महत्वपूर्ण मसाला फसल है. अदरक हमारे दैनिक जीवन में उपयोगी होने के साथ साथ औषधीय गुणों से भरपूर होता है तथा इसका भंडारण भी आसानी से किया जा सकता है. इसे मध्य तथा निचले पर्वतीय क्षेत्रों में नकदी फसल के रूप में उगाया जाता है. विशेषकर ऐसे क्षेत्र जहां बंदरों का उत्पात, आवारा पशुओं तथा जंगली जानवरों की अधिक समस्या रहती है अदरक एक बहुत ही उपयुक्त फसल है तथा किसानों की आय को बढ़ाने में सक्षम और सहायक है. सफल अदरक उत्पादन के बीस सूत्र इस प्रकार हैं:-

1. जलवायु: अदरक के लिए गर्म तथा नमीयुक्त जलवायु उपुक्त रहता है. यह समुद्र तल से 1500 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है. कम नमी तथा 32 सैल्सियस से अधिक तापमान वाले क्षेत्र अदरक के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं और 13 सैल्सियस से कम तापमान के परिणामस्वरूप अदरक सुप्त अवस्था में आ जाता है. पाला अदरक की पत्तिओं तथा गट्ठिओं को हानि पहुंचता है और परिणामस्वरुप भंडारण पर भी विपरीत प्रभाव डालता है.

2. मिट्टी: अदरक के लिए 5.5-8.5 पीएच मान वाली रेतीली दोमट मिटटी उपयुक्त रहती है.

3. खेत का चुनाव: अदरक के लिए ढलानदार, उपजाऊ, आंशिक छाया वाले खेत जिनमें पानी का ठहराव न हो उपयुक्त रहते हैं. अदरक को रोगों से विशेषकर गट्ठी सड़न से बचाने के लिए हर साल खेत बदल बदल कर लगाना चाहिए तथा पांच वर्षीय फसल चक्र अपनाना चाहिए.

4. प्रजातियां: अदरक की सोलन गिरिगंगा तथा हिमगिरि प्रमुख प्रजातियां हैं.

5. बिजाई का समय: अदरक की बिजाई के लिए अप्रैल-मई उपयुक्त रहते हैं. देरी से की गयी बिजाई फसल की उपज पर विपरीत प्रभाव डालती है.

6. खेत की तैयारी: खेत की अच्छी तरह जुताई करने तथा उचित मात्रा में खादें मिलाने के बाद 3 मीटर लम्बी, 1 मीटर चौड़ी तथा 15-20 सेंटीमीटर ऊँची क्यारिआं बनायी जाती हैं. क्यारिओं के बीच जल निकासी के लिए 30-45 सेंटीमीटर चौड़ी नालियां बनायी जाती हैं ताकि वर्षा का अतिरिक्त जल खेत में न रुके.

7. बिजाई: अदरक की गट्ठियाँ ही इसका बीज होती हैं. सावधानी पूर्वक भंडारित की गयी गट्ठिओं को 3-5 सेंटीमीटर के टुकड़ों में काटा जाता है जिनका वजन 20-30 ग्राम तथा उसपर 1-2 आँख होनी आवश्यक है. बीज के लिए स्वस्थ गांठों का प्रयोग करें और 3-5 सेंटीमीटर गहराई पर बिजाई करें.

8. बीज की मात्रा: 18-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज गट्ठिओं की आवश्यकता पड़ती है. अदरक उत्पादन में बीज एक प्रमुख घटक है और कुल उत्पादन लागत का 50% खर्च बीज पर ही आता है.

9. बीज का उपचार: गट्ठिओं का बुआई से पूर्व 60 मिनट के लिए डाइथेन एम्-45 (0.25%) और बेवीस्टीन (0.10%) के घोल में उपचार करें तथा इसे छाया में 48 घंटे के लिए सुखाएं.

10. अंतर: अदरक की बुआई 30x20 सेंटीमीटर के अंतर पर करें.

11. खाद एवं उर्वरक: सामान्यतः अदरक की फसल के लिए गोबर की खाद 300 क्विंटल, नाइट्रोजन 100 किलोग्राम, फास्फोरस 50 किलोग्राम और पोटाश 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की सिफारिश की जाती है. गोबर की खाद, फास्फोरस और पोटाश को खेत तैयार करते समय डालें. नाइट्रोजन की तीन बराबर मात्राएँ, पहली खेत तैयार करते समय, दूसरी एक महीने बाद तथा तीसरी उसके एक महीने बाद डालें.

12. बिछावन: भूमि में सुधार लाने व कटाव रोकने तथा उपयुक्त नमी व तापमान बनाये रखने हेतु क्यारियों को हरी या सुखी पत्तियों या गोबर की खाद से ढक कर रखा जाता है. एक हेक्टेयर जमीन में 50 क्विंटल सूखे पत्ते या 125 क्विंटल हरे पत्तों की 3-5 सेंटीमीटर मोटी मल्च की तह बना लें.

13. अन्तर फसल: अदरक एक लम्बी अवधि की फसल है और एक छाया प्रेमी फसल भी है. इसलिए अधिक लाभ कमाने के लिए इसके साथ दूसरी फसल को अंतर् फसल के रूप में लगाया जाता है. जिन में मक्की, भिंडी, अरबी, बाथू तथा मिर्च प्रमुख हैं तथा इनकी आंशिक छाया का लाभ भी अदरक की फसल को मिलता है.

14. सिंचाई: अदरक का उत्पादन सिंचित तथा वर्षा पर आधारित दोनों ही परिस्थितियों में किया जाता है.

15. जल निकासी: खेतों में अतिरिक्त जल निकासी का उचित प्रबंध बहुत ही आवश्यक है.

16. निराई गुड़ाई: फसल में कम से कम दो बार निराई गुड़ाई करने की आवश्यकता रहती है. निराई गुड़ाई के समय गठ्ठियों को कोई नुक्सान नहीं पहुंचना चाहिए.

17. रोग प्रबंध: गट्ठी सड़न अदरक का प्रमुख रोग है. बचाव के लिए स्वस्थ बीज का चयन तथा जल निकासी का प्रबंध करें. अगस्त और सितंबर में डायथन एम्-45 (0.25%) और बेवीस्टीन (0.10%) के घोल से सींचें तथा स्प्रे करें.  

18. जैविक खेती: जिन क्षेत्रों में जैविक खेती की जा रही है, वहां अदरक के रोगों की रोकथाम हेतु गठ्ठियों का गर्म जल तथा सौर्य उपचार करें. बीज का उपचार बुआई से पूर्व प्रयोगशाला में गर्म जल यंत्र में 450 सैल्सियस तापमान पर 30 मिनट के लिए करें. उपचार के बाद गठ्ठियों के ऊपर की नमी को पंखे के प्रयोग से सुखाएं. अदरक के बीज को बुआई से पूर्व सुबह की धूप में 45 मिनट तक रखें. गठ्ठियों के सौर्य उपचार के लिए ऊपर तथा नीचे पॉलिथीन बिछाएं तथा किनारों पर मिटटी डालें. अदरक की तह 30 सेंटीमीटर से ज्यादा मोटी तथा पॉलिथीन के बीच का तापमान 470 सेल्सियस से ज्यादा नहीं होना चाहिए.

19. फसल निकालना: फसल 7-9 महीनों में तैयार होती है, इस समय पत्ते पीले पड़ कर मुरझाने लगते हैं. बाजार में मांग और मूल्य को देखते हुए फसल को पहले भी निकला जा सकता है. फसल को प्रसंस्करण के लिए भी पहले निकाला जा सकता है क्योंकि 5-7 महीनों की फसल में फायबर तथा पंजैन्सी कम रहते हैं. जबकि बीज तथा सौंठ के लिए अदरक को 7-9 माह के बाद निकाला जाता है जब इसकी गठ्ठियों की त्वचा सख्त हो जाती है. अदरक को देरी से निकलने पर फायबर तथा पंजैन्सी बढ़ते हैं तथा वाष्पीय तेल कम हो जाते हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में जहां पाला पड़ता है अदरक को पाला पड़ने से पहले निकाल लेना चाहिए. सामान्यतः 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज रहती है. सौंठ की प्राप्ति 15-25% रहती है.      

20. भंडारण: भंडारण के लिए रोगमुक्त, मोटी तथा फूली हुई गठ्ठियां ही चुनें. भंडारण से पूर्व गठ्ठियों का डायथन एम्-45 (0.25%) तथा बेविस्टीन (0.10%) के घोल में 60 मिनट तक उपचार करें तथा छाया में सूखा लें. उपचारित गठ्ठियों को उपयुक्त गढ़ों में रखें जहां धूप व वर्षा से बचाव हो. इन गढ़ों को ऊपर से लकड़ी के तख्तों से ढक दें तथा हवा के उचित आवागमन के लिए तख्ते में छेद करें और बाकी के भाग को गोबर से लेप दें. अप्रैल-मई में गठ्ठियों को गढे से बाहर निकाल कर सुखाएं तथा रोगी गठ्ठियों छंटाई कर दें. बिजाई से पूर्व पुनः गठ्ठियों का उपचार करें.

लेखक: डॉ॰ विपिन शर्मा; रसायन विशेषज्ञ
डॉ. हैपी देव शर्मा; प्राध्यापक शाक विज्ञान
दीपक शर्मा (शोधार्थी
डॉ॰ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय
नौणी सोलन 173 230 ;हि॰प्र॰
मो: 09418321402
ईमेल - vipinsharma43@yahoo.com

English Summary: Earn millions by cultivating ginger in modern way
Published on: 31 October 2020, 12:43 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now