किसानों के लिए औषधीय पौधे कमाई का बड़ा जरिया बनते जा रहे हैं। औषधीय गुणों से भरपूर ब्राह्मी की खेती से किसान लागत से तीन-चार गुना अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। ब्राह्मी बकोपा की खेती बहुत ही लाभदायक है, औषधीय गुणों की वजह से छुट्टा जानवर इसे खाते नहीं हैं दूसरी ओर एक एकड़ में सिर्फ 20 से 25 हजार रुपये की लागत आती है। इस फसल को एक बार लगाने के बाद साल में तीन बार कटाई कर सकते हैं। इसके साथ सहफ़सली के तौर पर मक्का, अरहर की बुवाई कर सकते हैं और एक एकड़ से सालाना 2 से 3 लाख रुपये आसानी से कमा सकते हैं। ब्राह्मी की खेती मुनाफेदार साबित हो रही है,
आइये जानते खेती का सही तरीका
इन बीमारियों में लाभदायक- इसकी पत्तिया कब्ज दूर करने में मददगार होती हैं। इसके रस से गठिया का सफल इलाज होता है। ब्राह्मी में रक्तशुद्धी के गुण होते हैं ब्राह्मी दिमाग को तेज करता है और यादाश्त बढ़ाने में भी सहायक है इससे बनी दवाइयों का प्रयोग कैंसर, एनिमिया, दमा, किडनी और मिर्गी जैसे बीमारियों के इलाज में किया जाता है। सांप के कांटने पर भी इसका इस्तेमाल होता है।
अनुकूल जलवायु- ब्राह्मी की खेती के लिए शीत प्रधान और आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्र उपयुक्त होते हैं।
उपयोगी मिट्टी- इसे कई तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह घटिया निकास प्रबंध को भी सहन कर सकती है। यह सैलाबी दलदली मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है। इसे दलदली इलाकों, नहरों और अन्य जल स्त्रोतों के पास उगाया जा सकता है। इसके अच्छे विकास के लिए इसे तेजाबी मिट्टी की जरूरत होती है।
खेत की तैयारी- ब्राह्मी की खेती के लिए भुरभुरी और समतल मिट्टी की जरूरत होती है। मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा बनाने के लिए, खेत को जोतें और फिर हैरों का प्रयोग करें। जब ज़मीन को प्लाटों में बदल दिया जाये तो तुरंत सिंचाई करें। जोताई करते समय 20 क्विंटल रूड़ी की खाद डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।
बिजाई का समय- इसकी बिजाई मध्य जून या जुलाई महीने के शुरू में कर लेनी चाहिए।
बुवाई:- मानसून शुरू होते ही जून-जुलाई महीने में बुवाई कर देनी चाहिए। इसकी बुवाई पूर्णतः विकसित शाखाओं द्वारा की जाती है। शाखाओं को कतारबद्ध तरीके से 60×60 सेमी की दूरी पर लगाना चाहिए। इस प्रकार प्रति हेक्टेयर लगभग 500 की ग्राम या 25000 नग गीली शाखाओं की जरूरत पड़ती है।
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सिंचाई - यह एक वर्षा ऋतु की फसल है, इसलिए इसे वर्षा ऋतु खत्म होने के बाद तुरंत पानी की जरूरत होती है सर्दियों में 20 और गर्मियों में 15 दिनों के फासले पर सिंचाई करें।