सुरजना या सहजन औषधीय गुणों से भरपूर होता है. इसे अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहा जाता है. वहीं इसका वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा है. भारत की तुलना में श्रीलंका, फिलीपींस, मलेशिया और मैक्सिको जैसे देशों में सहजन का खूब उपयोग होता है. दक्षिण भारत में सहजन के व्यंजनों को खूब पसंद किया जाता है. यह स्वादिष्ट होने के साथ कई रोगों से लड़ने में सक्षम है. इसमें मल्टीविटामिन्स, एंटी ऑक्सीडेंट और एमिनो एसिड जैसे तत्व पाए जाते हैं. सहजन की पीकेएम-1 किस्म काफी नई और उन्नतशील किस्म है. आइए जानते हैं इस किस्म के बारे में और कैसे इसकी खेती करें
पीकेएम-1 किस्म की खासियत
यह सहजन की बेहद उन्नत किस्म है जिसे तमिलनाडु के पेरिया कुलम हार्टिकल्चर कॉलेज एवं रिसर्च इंस्टिट्यूट ने विकसित किया था. अन्य किस्मों की तुलना में इसकी फली का स्वाद बेहतर होता है. यह साल भर में फली देने लगता है. इसके पौधों में चार साल तक लगातार फली आती रहती है. इसके पौधों में 90 से 100 दिनों बाद फूल आना शुरू हो जाता है. इसकी फली की लंबाई लगभग 45 से 75 सेंटीमीटर की होती है. वहीं एक पौधे से 300 से 400 फली का उत्पादन होता है. साथ ही यह किस्म साल में चार बार फल देता है. यही वजह है कि इसकी खेती किसानों के फायदेमंद है.
कैसे लगाएं
प्रति एकड़ सहजन के 250 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है. पौधे लगाने के लिए कतार से कतार की दूरी 12 फीट रखना चाहिए. वहीं पौधे से पौधे की दूरी करीब 7 फीट रखना चाहिए. एक एकड़ में सहजन के 500 से 520 पौधे लगाना चाहिए.