फसल का अधिक उत्पादन और गुणवत्ता सिंचाई पर निर्भर होती है. अगर फसलों को उचित समय पर नमी न दी जाए, तो फसल के पौधों का विकास रुक जाता है. आधुनिक समय में किसान फसलों की सिंचाई में टपक यानी ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation) की उन्नत तकनीक को ज्यादा अपना रहे हैं. यह पानी बचाने का एक बेहतरीन तरीका है. खेत और बाग-बगीचों की सीधे सिंचाई करने से लगभग 60 प्रतिशत पानी बर्बाद होता है. ऐसे में इसे रोकने के लिए टपक (ड्रिप) सिंचाई एक उन्नत तकनीक है.
टपक (ड्रिप) सिंचाई क्या है? (What Is Drip Irrigation)
यह सिंचाई की एक उन्नत तकनीक है जिसमें पौधों को उनकी आवश्यकता अनुसार पानी दिया जाता है. इसमें पौधों की जड़ों में बूंद-बूंद पानी जाता है.
टपक (ड्रिप) सिंचाई के मुख्य घटक (Main Components Of Drip Irrigation)
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मुख्य पाइप लाइन
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उप-मुख्य पाइप लाइन
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लेटरल पाइप
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ड्रिपर्स
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फिल्टर्स या छन्नक
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बाई पास यूनिट
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उर्वरक (मिश्रण) यूनिट
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पम्प और मोटर
टपक (ड्रिप) सिंचाई के प्रकार (Types Of Drip Irrigation)
उप-सतही टपक (ड्रिप) सिंचाई- इस विधि में पौधों की जड़ों वाले क्षेत्र में जमीन की सतह के नीचे लेटरल पाइपों को बिछाकर सिंचाई की जाती है.
सतही टपक (ड्रिप) सिंचाई- इस विधि में लेटरल पाइपों को जमीन पर बिछाया जाता है और ड्रिपरों को पाइप से जोड़कर सिंचाई की जाती है.
ऑन लाइन- इस विधि में ड्रिपर्स को लेटरल पाइप के ऊपर लगाकर सिंचाई की जाती है.
इन लाइन- इस विधि में लेटरल पाइप में ड्रिपर्स को एक निश्चित दूरी पर लगा दिया जाता है. यानी लेटरल पाइप का निर्माण करते समय ड्रिपर्स को अंदर ही डाल देते हैं. इसके बाद फसलों की सिंचाई की जाती है.
टपक सिंचाई का प्रबंधन और देखभाल (Management And Care Of Drip Irrigation)
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इस तकनीक से सिंचाई करने के लिए फिल्टरों की रबड़, वाल्व और अन्य फिटिंग्स को जांचते रहना चाहिए.
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मुख्य पाइप में दबाव लगभग 1 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर का होना चाहिए.
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ड्रिपरों से सिंताई करते समय फसल का निरीक्षण करते रहना चाहिए.
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अगर लेटरल पाइप कट जाए, तो उसे सीधे जोड़क द्वारा जोड़ सकते हैं.
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लेटरल पाइपों के खुले सिरों को ऐंडकैप से बंद रखना चाहिए. अगर यह खुले रहे, तो पानी की बर्बादी होती है.
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खेत से लेटरल पाइपों को हटाते वक्त बड़े गोले के आकार में मोड़ना चाहिए.
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फसल की कटाई में ट्रैक्टर या बैलगाड़ी को खेत में नहीं लाना चाहिए, इससे पाइपों को हानि पहुंचती है.
टपक सिंचाई से लाभ (Benefits Of Drip Irrigation)
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इस तकनीक में पानी केवल पौधों की जड़ों में ही जाता है.
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पानी की निश्चित बचत होती है, इसलिए किसान अधिक क्षेत्र में खेती कर सकते हैं.
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सिंचाई के लिए मेड़ या नालियां बनाने की जरूरत नहीं पड़ती है. ऐसे में श्रमिकों को देने वाली लागत की बचत होती है.
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इस तकनीक से पौधों की जड़ों को पोषक तत्व, पानी और हवा आसानी से मिलती है. इससे फसल की पैदावार और गुणवत्ता अधिक होती है.
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पौधों की जड़ों को पानी मिलने से खरपतवार पर नियंत्रण लगता है.
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रसायन की बचत होती है.
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इस तकनीक में सिंचाई के लिए लवणीय जल को उपयुक्त माना गया है.
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किसान को फसल की उपज जल्दी मिल जाती है.
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अगर खेत समतल नहीं है, तब भी पौधों की सिंचाई अच्छी तरह की सकती है.
टपक सिंचाई पर सब्सिडी (Subsidy On Drip Irrigation)
किसानों को टपक सिंचाई पर सब्सिडी देने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएं उपलब्ध हैं. किसान को खेत के अनुसार सब्सिडी दी जाती है, तो वहीं यह सब्सिडी हर राज्य अपने अनुसार किसानों को देता है. इसकी जानकारी के लिए किसान अपने क्षेत्र के कृषि विभाग से संपर्क कर सकता है.
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