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Updated on: 23 October, 2020 5:30 PM IST

अरंडी एक औषधीय फसल के रूप में पहचानी जाती है. इसका तेल औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ औद्योगिक क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है. यह मुख्यत एक  झाड़ीनुमा तिलहनी फसल की श्रेणी में आती है. इसका उपयोग दवा तथा साबुन बनाने में किया होता है तथा पेट दर्द, पाचन तथा बच्चों की मालिश के लिए भी उपयोगी है. इसके खली जैविक खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसकी खेती के लिए खास कोई मिट्टी की जरूरत नहीं होती है अर्थात इसकी बंजर भूमि में भी लाभप्रद  साबित होती है. अरंडी की फसल को कीट एवं रोगों से बचाने के लिए कुछ वैज्ञानिक उपाय अपनाने पड़ते है जिससे इसकी उत्पादकता में भी बढ़ोतरी हो सके.किसी फसल में बीज, सिंचाई, उर्वरक के अलावा रोग तथा कीट की समुचित व्यवस्था करना जरुरी रहता है . रोग और कीट से कभी – कभी नुकसान इतना होता है की पूरी फसल ही खत्म हो जाती है. 

पौध संरक्षण

फ्यूजेरियम या उखटा रोग: इस रोग से पौधे धीरे– धीरे पीले होकर रोगी दिखाई देने लगते हैं. उपरी पत्तियां और शाखाएँ पूरी तरह से मुरझा जाती है. इसकी रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी किस्म के बीज का चुनाव करना चाहिए जैसे DCS– 9, ज्वाला, GCH- 4, GCH- 5, DCH-177 की बुवाई करें. 

कर्बेन्डजियम 2 ग्राम या जैविक माध्यम से ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करके ही बुवाई करना चाहिए और ट्राईकोडर्मा 2.5 किलो प्रति हैक्टेयर गोबर की खाद के साथ बुवाई पूर्व भूमि में देना प्रभावी पाया गया.  बाजरा/ रागी या अनाज के साथ फसल चक्र लेने से रोग के प्रकोप के सम्भावना को घटाया जा सकता है.       

जड़ गलन रोग:  इस रोग में पौधों की उपरी जड़ें सुखी एवं  गहरे काले रंग की दिखाई देने लगती है. जड़ की छाल निकलने लगती है. जिससे पौधा जल व पोषण का अवशोषण नहीं कर पाता परिणामस्वरूप पौधा मरने लगता है. 

इसकी रोकथाम के लिए संक्रमित फसलों के अवशेषों को जला कर नष्ट कर देना चाहिए. अनाज की फसलों के साथ फसल चक्र लें. प्रतिरोधी किस्में जैसे ज्वाला (48 – 1) और GCH- 6 की खेती करें . ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम या केप्टान 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें.

अल्टेरनेरिया अंगमारी: इस रोग की मुख्य पहचान यह है कि पत्तियों पर हल्के भूरे गोल धब्बे दिखाई देते हैं और परिपक्व पत्तियों पर सघन छल्लों के साथ नियमित धब्बे होते है. बाद में यह धब्बे मिलने से अंगमारी होती है और पत्तियां झड़ जाती है. परिपक्व कैप्सूल या इसकी गिरी पर काली कवकी वृद्धि की वृद्धि साफ देखि जा सकती है. इसके नियंत्रण एवं रोकथाम के लिए थिरम या  कैप्टन से 2 – 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजों का उपचार करे. फसल वृद्धि के 90 दिन से आरंभ कर आवश्यकता के अनुसार 2 – 3 बार 15 दिनों के अंतराल से मैन्कोजेब 500 ग्राम या  कॉपर आक्सीक्लोराईड 600 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें.      

पाउडरी मिल्ड्यू/ चूर्णिल आसिता:  पत्तियों की निचली सतह पर सफ़ेद पाउडर की वृद्धि होती है. पत्तियां बढने से पहले ही झड जाती है. बुवाई के तीन महीने बाद से आरंभ कर दो बार घुलनशील सल्फर 500 ग्राम या थिओफिनेट मिथाइल 70 WP 400 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करे और आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अंतराल से छिड़काव दोहराएं.  

ग्रे रांट / ग्रे मोल्ड: आरंभ में फूलों पर छोटे काले धब्बे दिखाई देते है जिसमें से पीला द्रव रिसता है जिससे कवकीय वृद्धि होती है और संक्रमण फैलता है. संक्रमित कैप्सूल गल कर गिरते है. अपरिपक बीज नर्म हो जाते है और परिपक्व बीज खोखले , रंगहीन हो जाते हैं . संक्रमित बीजों पर काली कवकीय वृद्धि होती है.

इसकी रोकथाम  के लिए सहनशील किस्म ज्वाला (48 – 1) की खेती करें. कतारों के बीच अधिक दूरी 90 से 60 से.मी. रखें. कार्बेन्डाजिम 50 WP 150 ग्राम या थिओफिनेट मिथाइल 70 WP 400 ग्राम प्रति प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करे. जैविक माध्यम से भी इसका उपचार संभव है इसके लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी और सूडोमोनस फ्लुरोसेसस का 3 ग्राम प्रति लिटर पानी में मिलाकर से छिड़काव करे. संक्रमित स्पाइक/ कैप्सूल को निकाल कर नष्ट कर दें. 

सेमीलूपर कीट और तम्बाकू इल्लियाँ: यह कीट पौधे के पत्तियों को खा जाता है. पुराने लार्वा तने और शिराएँ छोड़ कर पौधे के सभी भाग खा लेते है. सितम्बर से नवम्बर के बीच अरण्डी को सेमीलूपर व हेयरी केटरपिलर नुकसान पहुंचाते है। नियंत्रण हेतु प्रोफेनेफोस 40 + सायपरमेथ्रिन 4 EC दवा या क्यूनालफास 25 EC 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करे. खराब पत्तियों के साथ छोटे अण्डों और नष्ट हुई पत्तियों के साथ इल्लियों को एकत्र कर नष्ट कर दें. कैप्सूल बेधक: यह कीट कैप्सूल को छेद कर पूरी बीज को खा जाता है इसके बाद एक कैप्सूल से दुसरे कैप्सूल में चला  जाती है. नियंत्रण हेतु प्रोफेनेफोस 40 + सायपरमेथ्रिन 4 EC दवा या क्यूनालफास 25 EC 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें .         

रसचूसक कीट: अरंडी की फसल में विभिन्न प्रकार के रसचूसक कीट जैसे- एफीड, जैसिड, सफेद मक्खी अत्यादि पाये जाते है. इनके नियंत्रण के लिए एसिटामीप्रीड 20 SP 100 ग्राम का प्रति एकड़ छिड़काव करें. 

पाले की समस्या: आने वाले वक्त में पाले पड़ने की संभावनाएं बढ़नी वाली है. पाले से फसल को बचाने के लिये पाला पड़ने की सम्भवित अवधि के पहले 1 लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव कर दें. पाले से प्रभावित फसल में सिंचाई करें और उसमें 10 किलोग्राम अतिरिक्त नत्रजन प्रति हैक्टेयर को यूरिया टोप ड्रेसिंग के रूप में दें. 

English Summary: Do scientific method of plant protection in castor crop
Published on: 23 October 2020, 05:38 PM IST

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