कोरोना संकट की वजह से अधिकतर मजदूर बाहरी राज्यों से अपने गांव लौट रहे हैं. इस कारण किसानों को मजदूरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. किसानों को गेहूं की कटाई से लेकर धान की बुवाई तक में समस्याएं आ रही हैं.
बता दें कि खरीफ सीजन में मजदूर धान की बुवाई के लिए बाहरी राज्यों में पहुंचते थे, लेकिन कोरोना और लॉकडाउन की वजह से प्रतिबंध लगा हुआ है.ऐसे में राज्य के कृषि विभाग अन्य विकल्पों पर काम कर रहे हैं. ऐसे में कृषि वैज्ञनाकों की सलाह है कि इस साल किसान धान की बुवाई डायरेक्ट सीडिंग तकनीक से कर सकते हैं. यानी धान की सीधी बुवाई.
इसका पहला परीक्षण कठुआ के सैदपुर में हो भी चुका है. इसके लिए जिले में लगभग 20 बीस लोगों को पंजाब से मशीनें लाने की अनुमति भी मिल है. इस मशीन द्नारा 1 घंटे में 1 एकड़ भूमि में धान की बुवाई की जा सकती है.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक (According to agricultural experts)
पुराने समय से ही किसान धान की बुवाई पारंपरिक तकनीक से करते आ रहे हैं. कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि इस तकनीक में सबसे पहले धान की नर्सरी तैयार की जाती है. इसके बाद बीजों की बुवाई होती है. इसके लिए धान के छोटे-छोटे पौधों को नर्सरी से हटाकर खेत में बोना पड़ता है. इसमें लगभग 25 से 35 दिन तक का समय लगता है.
अगर धान की खेती के समय बारिश न हो, तो खेत में 4 से 5 सेमी. पानी की गहराई बनाए रखने के लिए रोजाना सिंचाई करनी पड़ती है. इस जलमग्न अवस्था में ऑक्सीजन की कमी होती है, जिस कारण खेत में खरपतवारों की वृद्धि नहीं हो पाती है.
मगर एरेंचिमा ऊतक की वजह से फसल की जड़ों में हवा पहुंचती रहती है, इसलिए धान की खेती में पानी एक दवा का काम करता है.
क्या है डायरेक्ट सीडिंग तकनीक (What is Direct Seeding Technique)
इस तकनीक में धान की नर्सरी तैयार करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि इसमें ट्रैक्टर द्वारा संचालित मशीनों की मदद से खेत में बीजों की बुवाई होती है. इससे किसानों की लगात, समय की बचत के साथ-साथ मेहनत भी कम लगती है. इसके साथ ही फसल की पैदावार भी अच्छी मिल सकती है.
डायरेक्ट सीडिंग तकनीक से बुवाई (Sowing by direct seeding technique)
इस तकनीक से धान की बुवाई करने के लिए सबसे पहले खेत को समतल बनाया जाता है. इसके बाद एक बार सिंचाई की जाती है. खेती की मिट्टी में आवश्यक नमी बनाए रखने के लिए 2 बार जुताई कर देना चाहिए. इसके बाद धान के बीजों की बुवाई की जाती है. यह एक ऐसी तकनीक है, जो कि खरपतवार को नियंत्रित करने में सहायक साबित होती है.
कम पानी और श्रम की होती है जरूरत (Requires less water and labor)
इस विधि में कुछ खरपतवार नाशकों की आवश्यकता होती है, लेकिन इसमें कम पानी और श्रम के उपयोग से लागत की बचत हती है. इससे पहले भी कई बार किसानों ने धान की खेती डायरेक्ट सीडिंग तकनीक से करने की कोशिश की है, लेकिन इससे धान की उपज कम होने की वजह से जोर नहीं मिल पाया.
मगर यह विधि मजदूरी, पानी और उर्वरक की लागत को बचाती है. इसकी खास बात यह है कि इस विधि से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी बरकरार रहती है. जिससे फसल अच्छी पैदावार देती है.
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