महिंद्रा ट्रैक्टर्स ने किया Tractor Ke Khiladi प्रतियोगिता का आयोजन, तीन किसानों ने जीता 51 हजार रुपये तक का इनाम Mandi Bhav: गेहूं की कीमतों में गिरावट, लेकिन दाम MSP से ऊपर, इस मंडी में 6 हजार पहुंचा भाव IFFCO नैनो जिंक और नैनो कॉपर को भी केंद्र की मंजूरी, तीन साल के लिए किया अधिसूचित Small Business Ideas: कम लागत में शुरू करें ये 2 छोटे बिजनेस, सरकार से मिलेगा लोन और सब्सिडी की सुविधा एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! सबसे अधिक दूध देने वाली गाय की नस्ल, जानें पहचान और खासियत
Updated on: 19 November, 2020 12:30 PM IST

चुकंदर ठंडे मौसम में उगलने वाली, मीठी स्वाद वाली एक नकदी फसल है. कई देशों में इसकी जड़ों से चीनी भी बनाई जाती है. चुकंदर के कई हेल्थ बेनिफिट हैं क्योंकि इसमें फाइबर, विटामिन ए, विटामिन सी और आयरन भरपूर मात्रा में होता है. स्वास्थय संबंधित गुणों की वजह से चुकंदर यानी बीच रूट इसका उपयोग एनीमिया, बवासीर, अपच, कब्ज, पित्ताशय विकारों के लिए किया जाता है. इतना ही नहीं चुकंदर का इस्तेमाल कैंसर, हृदय रोग, और किडनी के रोगों के इलाज में भी फायदेमंद है. उत्तर भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में चुकंदर (beet root) की खेती बीजों के उत्पादन के लिए भी की जाती है.

चुकंदर की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी का चुनाव (Climate and soil for beet root Farming)

चुकंदर को सुगर बीट (sugar beet) भी कहा जाता है. देश के अधिकांश भागों में अगस्त और सितंबर के महीने में चुकंदर यानी बीट रूट की बुवाई की जाती है. लेकिन दक्षिण भारत में फरवरी-मार्च में चुकंदर की बुवाई शुरू होती है. चुकंदर की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. लेकिन अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम है. चुकंदर लवणीय मिट्टी में आसानी से हो सकती है और क्षारीय मिट्टी (9.5 पी एच) में भी इसकी खेती की जा सकती है.  

उन्नत किस्में (Improved varieties)

चकुंदर की कई उन्नत किस्में इस प्रकार हैं:

शुभ्रा: स्वीडन देश में विकसित इस किस्म में पत्ती धब्बा रोग कम लगता है. इसमें शर्करा  की मात्रा 18% होती है.

मैगना पोली: स्वीडन देश में विकसित इस किस्म में पत्ती धब्बा रोग कम लगता है. इसमें शर्करा की मात्रा 14-16% होती है.|

ट्रायबल: यह विदेशी किस्म में शर्करा की मात्रा 14-16% होती है.

IISR कम्पोजिट: IISR लखनऊ से निकाली गई इस किस्म में पत्ती धब्बा रोग कम लगता है और शर्करा की मात्रा 14-16% रहती है.

रेमान्सकाया: शर्करा की मात्रा 14-16% होती है.

बुवाई का तरीका (Method of sowing)

मिट्टी पलटने वाले हल से 3-4 बार गहरी जुताई करें. आखिरी जुताई के समय मिट्टी उपचार के लिए जैविक फफूंदनाशी ट्राइकोडर्मा विरिड की एक किलो मात्रा या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस की 250 ग्राम मात्रा को एक एकड़ खेत में 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर खेत में बीखेर दें. अंत में पाटा चलाने के बाद मेढ़ों को 45 सेमी की दूरी पर बनाएं. इन मेढों पर 1.5 से 2 सेमी गहराई में बीजों की बुवाई करें. पौधों से पौधों के बीच दूरी 15-20 सेमी होनी चाहिए. बुवाई से पहले बीज को कार्बेन्डाजीम या थिरम से 2 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से उपचारित कर लें.

पौध संरक्षण (Plant protection)

कीटों से बचाव (Protection of Insects): चुकंदर की फसल को रसचूसक कीट (एफीड, माहु, सफेद मक्खी) से बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP की 400 ग्राम या थायोमेथोक्सोम 25 डब्लू जी 100 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें.  

फसल को पत्ती को खाने वाली लट्ट से निजात दिलाने के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 0.5 प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें, या जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.भूमिगत कीटों जैसे दीमक, सफेद लट्ट आदि के नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरिफोस 20% EC दवा की 300 मिली मात्रा प्रति एकड़ सिंचाई के साथ देनी चाहिए.

रोग से बचाव (Protection of Diseases): चुकंदर की फसल में पत्ती धब्बा रोग लाग्ने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है. इसके नियंत्रण के लिए मेंकोजेब 75% WP 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना सही रहता है.

खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizer)

चुकंदर की अच्छी फसल में गोबर की सड़ी हुई खाद लगभग 10 से 12 क्विंटल के अतिरिक्त यूरिया 50 किलोग्राम, डी ए पी- 70 किलोग्राम और पोटाश 40 किलोग्राम प्रति एकड़ की आवश्यकता पड़ती है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और डीएपी एवं पोटाश की पूरी मात्रा को बुवाई के समय और यूरिया की बची मात्रा बुवाई के 20 से 25 दिन बाद और 40 से 45 दिन के बाद दो बार में छिड़क करें.

सिंचाई व्यवस्था (Irrigation management)

चुकंदर की फसल को 8 सिंचाइयों द्वारा 80-100 सेमी पानी देना चाहिए. पहली सिंचाई बुवाई के 25 दिन बाद और बाद की चार सिंचाई 25 दिन के अन्तराल पर दें. अन्तिम की 3 सिंचाई 25 दिन के अन्तराल पर करना उचित है.

खरपतवार प्रबंधन (Weed management)

खरपतवार नियंत्रण के लिए 25-30 दिन बाद एक निराई कर लेनी चाहिए और पौधों की सघनता ज्यादा होने पर फालतू पौधें उखाड़ दें. एक स्थान पर एक ही पौधा ही रखें.| जुताई के समय सभी खरपतवार को साफ करें. साथ ही बीजों की बुवाई के बाद और अंकुरण से पहले खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडिमेथालीन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर देना सही रहेगा.

फसल की तुड़ाई/खुदाई (Crop harvesting)

फसल की खुदाई मार्च के अंत से मई माह तक चलती है. जब चुकन्दर की फसल की नीचे के पत्तियां पीली पड़ जाए तो हल्की सिंचाई के बाद फसल को जड़ समेत उखाड़ लें. उखाड़ने के लिए देशी हल को जमीन से सटाकर चलाने से चुकन्दर बाहर निकल आती है. इसके बाद पत्तियों को कंद से हटाने के बाद फसल को छाया में ढेर बनाकर रख दें और 24 घंटे के भीतर बाजार में पहुंचा दें.

उपज (yield)

अनुकूल मौसम और वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर इसकी पैदावार 65 से 90 टन प्रति हेक्टेयर होती है.

संपर्क सूत्र (For contact)

  • किस्मों की बीज के लिए नजदीकी कृषि विश्वविध्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग में संपर्क किया जा सकता है.

  • भाकृअनुप - भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ जाकर या 09415152102 पर सम्पर्क किया जा सकता है.

  • भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलौर या निदेशक 080-28466471 080-28466353 से सम्पर्क किया जा सकता है.

English Summary: Detailed knowledge of Sugar beet cultivation
Published on: 19 November 2020, 12:43 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now