देसी पालक हरे पत्ते वाली सब्जी है. इसको सब्जियों में एक विशेष स्थान प्राप्त है. इसकी पत्तियों का आकर विलायती पालक से काफी भिन्न होता है. इस पालक की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बंगाल, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र आदि राज्यों में की जाती है. इस पालक की सब्जी में आलू, बैगन, प्याज पनीर आदि मिलाये जाते हैं. इसकी पत्तियों से सॉस भी बनाया जाता है. इसे देश के ज्यादातर हिस्सों में तीनों मौसम में उगाया जाता है. तो आज हम अपने इस लेख में आपको देसी पालक की उन्नत खेती के बारे में बताएंगे. जोकि भविष्य में आपको खूब मुनाफा देगी.
देसी पालक की जलवायु: यह पालक ठंडे मौसम वाली फसल है. इसमें पाले को सहने की विशेष क्षमता होती है. इसके उत्पादन के लिए मृदु जलवायु की आवश्यकता होती है. इस फसल के लिए तापमान में बढ़ोतरी होने के कारण वृद्धि और इसके विकास और उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
देसी पालक की भूमि : इस पालक की फसल को कई तरह की भूमि में उगा सकते हैं. लेकिन इस फसल के सफल उत्पादन हेतु उचित जल निकाय रेतीली दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी गई है. पालक की फसल थोड़ी क्षारीय मृदा को भी सहन करने में सक्षम होती है और लवणों को ज्यादा मात्रा में भी सहन कर लेती है.
देसी पालक की खेत की तैयारी: इस फसल की प्रथम जुताई मिटटी पलटने वाले हल संकरे 2 -3 जुताइयाँ देसी हल या फिर कल्टीवेटर की मदद से करें. जुताई के बाद पाटा जरूर लगाएं.
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देसी पालक की उन्नत किस्में: भारतीय पालक को दो भागों में विभाजित किया जाता है - ऑल ग्रीन, पूसा पालक, पूसा ज्योति, पूसा हरित. ये समस्त किस्में उत्तरी भारत के राज्यों में उगाने के लिए उपयुक्त है.
देसी पालक की बुवाई : इस फसल का प्रवर्धन बीज द्वारा किया जाता है.
देसी पालक की बीज की मात्रा : इस फसल का 15 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर में पर्याप्त होता है.
देसी पालक की बीजोपचार : इस फसल को बोने से पहले रात को इसके बीजों को पानी में भिगोए ताकि इसका अंकुरण समान रूप से हो सके. इसके साथ ही इस फसल को फफूंदीजनक रोगों से बचाने के लिए कैप्टान, वोबिस्टिन या थायरस की दर से उपचारित करना चाहिए.
देसी पालक की बोने का समय : इस पालक को मैदानी क्षेत्रों में जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई या फिर सितम्बर-नवंबर में बोया जाता है, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में इसे आमतौर पर अप्रैल से लेकर जून तक बोया जाता है.
देसी पालक की सिंचाई : इस फसल को पलेवा करके बोना चाहिए और बोने के कुछ दिन बाद ही इसकी पहली सिंचाई करनी चाहिए. इसकी वसंत ग्रीष्म में 6 से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए, जबकि शरद ऋतु की बात करे तो उसमें इस फसल को 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.
देसी पालक की कटाई: इस फसल को बोने के 3 से 4 हफ्ते के बाद पहली कटाई की जा सकती है. इसके उपरांत 15 से 20 दिनों के अंतराल पर कटाई करनी चाहिए.पूरी फसल की अवधि में 6 से 8 कटाई की जा सकती है.
देसी पालक की उपज : इस फसल की उपज इसकी किस्म, मौसम और भूमि की दशाओं, फसल की देखभाल पर निर्भर करती है. आमतौर पर 8 से 12 तन प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त हो जाती है.
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