कुंदरू एक बहुवर्षीय फसल है, जिसकी एक बार बुवाई करने के बाद कई सालों तक इससे मोटा उत्पादन मिलता रहता है. यह अधिकतर गृह वाटिका में भारत के सभी हिस्सों में उगायी जाती है. कम ठंड पड़ने वाले स्थानों पर यह लगभग सालभर फल देती है, परन्तु जिन स्थानों पर ज्यादा ठंडक पड़ती है, वहां पर यह फसल 7 से 8 महीने फल देती है.
इसकी सबसे बड़ी खासियत यही है कि एक बार तुड़ाई के बाद वापस 10 से 15 दिन में इसके फल दोबारा उगने लगते हैं. इसकी उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाने के लिये मचान विधि से कुंदरू की खेती करने की सलाह देते हैं. इसमें फ्लेवोनोइड्स, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी बैक्टीरियल, कैल्सियम, आयरन, फाइबर, विटामिन-ए और सी की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है. जिस वजह से कुंदरू का सेवन करना लाभकारी होता है.
उपयुक्त मिट्टी व जलवायु
कुंदरू की फसल को सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है. लेकिन कार्बनिक पदार्थ युक्त बलुई दोमट भूमि सबसे ज्यादा उपयुक्त होती है. इसमें लवणीय मिट्टी को सहन करने की भी क्षमता होती है. कुंदरू की खेती के लिए ऐसी भूमि का चुनाव करें, जिसका पी एच मान 7.00 के लगभग हो. कुंदरू की सफल खेती के लिये गर्म और आर्द्र जलवायु सर्वाधिक उपयुक्त होती है. कुंदरू की खेती से अच्छी पैदावर के लिए के लिए 30 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान का होना आवश्यक है.
फसल के लिए उन्नतशील किस्में
कुंदरू की फसल के लिए इंदिरा कुंदरू 5, इंदिरा कुंदरू 35, सुलभा (सी जी- 23), काशी भरपूर (वी आर एस आई जी- 9) उन्नतशील किस्में है..
खेत की तैयारी
कुंदरू की खेती के लिए बीजों को नर्सरी में लगाकर पौधे तैयार किये जा सकते हैं. बाद में मेड़ या बैड़ बनाकर पौधों की रोपाई की जाती है, जिससे खरपतवारों की संभावना नहीं रहती. इस प्रकार खेती की लागत कम और किसानों का मुनाफा बढ़ जाता है. मई से जून के महीने में गहरी जुताई करके खेत खुला छोड़ देते हैं, जिससे खरपतवार तथा कीट एवं रोग नष्ट हो जाएं. जुलाई के महीने में 2 से 3 बार हैरो या कल्टीवेटर से जुताई करके खेत में पाटा लगा देते हैं. पौधों को बढ़ने के लिए सहारा देना ज़रूरी है. पंडाल प्रणाली (बांस के खंभों से बने पंडाल) की तकनीक से अच्छी पैदावर मिल सकती है. कुंदरू की फसल से अच्छी उपज के लिए 60 से 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 से 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर डाले.
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सिंचाई
कुंदरू की फसल को गर्मी में 4 से 5 दिन के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए. फसल में पुष्पन व फलन के समय उचित नमी बनाये रखे. उचित जल निकासी न हो.
फलों की तुड़ाई
कुंदरू के फलों की पहली तुड़ाई रोपण के 45 से 50 दिन पर होती है. बाद की तुड़ाई 4 से 5 दिन के अंतर पर करते रहते हैं.
पैदावार
वैसे तो उपज किस्म के चयन, खाद और उर्वरक की मात्रा और फसल की देखभाल पर निर्भर होती है, लेकिन उपरोक्त उन्नत तकनीक से इसकी खेती करने पर आमतौर पर हरे ताजे फलों की औसत उपज 300 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है. एक बार कुंदरू के पौधों की रोपाई और प्रबंधन कार्यों के जरिये ही अगले 4 सालों तक कुंदरू का बंपर उत्पादन ले सकते हैं.
होगी लाखों की कमाई
एक हेक्टेयर खेत में कुंदरू की खेती करने पर 450 क्विंटल तक उत्पादन मिल जाता है, जिसे 5000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचा जाता है. फुटकर मार्किट में कुंदरु की कीमत 80 रुपये प्रति किलो के आस-पास तक पहुंच जाती है. इस तरह किसान आसानी से लाखों की आमदनी कमा सकते हैं.