मोरिंगा या ड्रमास्टिक एक ओषधीय पौधा है. प्रचीन काल से ही दक्षिण भारत के क्षेत्रीय व्यंजनों में मोरिंगा प्रमुख व्यंजन है. हाई न्यूट्रिशन वैल्यू के कारण मोरिंगा को सुपर फूड माना जाता है. जिसे रिंमोरिंगा ओलीफेरा और ड्रमस्टिक ट्री भी कहा जाता है जो भारत में मिलने वाला एक ऐसा पौधा है जिसे हाई न्यूट्रिशनल के कारण सुपरफूड माना जाता है.
पिछले कुछ सालों में किसानों ने सहजन या मोरिंगा की खेती करने में काफी रूची दिखाई है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कम लागत में किसानों को इससे अच्छा लाभ होता है. सहजन के फूल व छोटे-छोटे सहजन लेकर बड़े सहजन पर किसानों को अच्छी कमाई होती है. चलिए जानते हैं सहजन फसलों की वैज्ञानिक खेती कैसे करें और उसे रोग से कैसे बचाएं इत्यादि के तरीकों को..
सहजन की खेती करने का तरीका: सहजन या मोरिंगा की खेती बंजर भूमि पर की जाती है. गौरतलब है कि मोरिंगा को एक बहुवर्षीय सब्जी देने वाले पौधे के रूप में जाना जाता है. सहजन का पौधा आप बिना किसी विशेष देखभाल के ही घर में लगा सकते हैं. हर साल सर्दियों के मौसम में सहजन के फलों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. वहीं दक्षिण भारत के हिस्सों में लोग सहजन के फूलों और उनकी पत्तियों की खेती पूरे साल करते हैं, साथ ही इसका इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की सब्जियों के रूप में पूरे साल होता है.
विदेशों में होती है सहजन की खेती: बता दें कि सहजन की खेती सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में की जाती है. भारत के अलावा फिलीपिंस, श्रीलंका, मलेशिया, मैक्सिको जैसे देश शामिल हैं, जहां सहजन की खेती होती है. उल्लेखनीय है कि सहजन के पौधों में औषधीय गुण अधिक मात्रा में पाया जाता है.
सहजन में नहीं लगता कीट रोग: जबकि छाल, पत्ती, बीज, और जड़ आदि से औषधीय दवाइयां तैयार की जाती हैं. इसकी पत्तियां पशुचारा के रूप में भी इस्तेमाल की जाती हैं. वैसे तो सहजन की फसल में कोई कीट या रोग जल्दी नहीं लगते, लेकिन कुछ कीट या रोग ऐसे हैं जिनसे फसल की उपज प्रभावित होने की संभावना बनी रहती है.
औषधी बनाने में किया जाता है सहजन का उपयोग: सहजन के पौधों का उपयोग औषधियां बनाने में किया जाता है. सहजन के पौधों की छाल, पत्ती और बीज जड़ इत्यादि से औषधियां तैयार की जाती हैं. साथ ही इसके पत्तियों का इस्तेमाल किसान पशुचारा के तौर पर भी करते हैं. हालांकि फसलों के जानकारों की मानें तो सहजन या मोरिंगा के पौधों में जल्दी कोई कीट रोग नहीं लगता है लेकिन कुछ रोग ऐसे हैं जिनके लगने से सहजन के पौधे प्रभावित होते हैं.
सहजन खेती में लग सकते हैं ये कीट
भुआ पिल्लू कीट से बचने के उपाय: सहजन या मोरिंगा के पौधों में भुआ पिल्लू कीट लगने की संभावना रहती है. यह कीट पौधों की पत्तियों को खा जाता है और आसपास के पत्तियों में फैलते हुए पूरे पेड़ में फैल जाता है. पौधों को इन कीटों से बचाने के लिए अनुशंसित मात्रा में डाइक्लोरोवास को पानी में मिलाकर पौधों पर स्प्रे करना चाहिए.
भूमिगत कीट या दीमक: सहजन या मोरिंगा के खेत के जिस एरिया में भूमिगत कीट या दीमक लगे हों उस क्षेत्र में इमिडाक्लोप्रिड 600 FS को पानी में मिलाकर उसका घोल सहजन पौधों की बीजों में स्प्रे करना चाहिए या किसानों को फिपरोनिल 5SC से 10 मिलीलीटर प्रतिकिलो बीज उपचारित करना चाहिए और उसके बाद ही पौधा रोपण करना चाहिए.
सहजन के खेत में भूमिगत कीट लगने के बचाव के लिए किसान क्लूनोलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण और 10 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में डाल दें, जो किसान इस क्रिया को भी नहीं कर सकते वह जैविक फफूंदनाशी बुवेरिया बेसियाना या मेटारिजियम एनिसोपली की एक किलो ग्राम की मात्रा से एक एकड़ खेत में सौ किलो गोबर की खाद के साथ मिक्स करके पूरे खेत में छींट दें.
फल मक्खी से बचाव: सहजन के फलों में पर फल मक्खी का खतरा बना रहता है, फल मक्खी कीट से बचाव के लिए किसानों को डाइक्लोरोवास 0.5 मिली को एक लीटर पानी में मिलाकर सहजन के फलों पर स्प्रे कर देना चाहिए, इसके छिडकाव से किसान सहजन फलों पर फल मक्खी लगने से बचा सकते हैं.
सहजन की खेती से होने वाले मुख्य फायदे
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सहजन या मोरिंगा पौधों की एक बार बुवाई करने के बाद यह चार सालों तक फलों की उपज देता है. इसके साथ ही सहजन पौधों के खेती के लिए अधिक जमीन की जरूरत नहीं होती है. छोटे किसान अपने घर के बगल या किसी भी छोटी क्यारी में सहजन के पौधा लगा सकते हैं. सहजन पौधों को अधिक पानी नहीं देना पड़ता है और न ही इन पेड़ों की अधिक देखभाल करनी पड़ती है.
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सहजन एक बहुउपयोगी पौधा है. सहजन पौधे के सभी भागों का उपयोग दवा औषधि, भोजन और औद्योगिक कार्यों को करने में किया जाता है. यह पौधा पोषक तत्वों से भरपूर और विटामिन युक्त रहता है. वैज्ञानिकों के एक अध्यन के मुताबिक सहजन के पौधों में दूध की तुलना में चार गुणा पोटाशियम और संतरा की तुलना में सात गुणा अधिक विटामिन सी पाया जाता है.
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सहजन का फूल, फल और पत्तियों को उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है, साथ सहजन की छाल, बीज, गोंद, जड़ और पत्ती आदि का उपयोग दवा तैयार करने में किया जाता है. इस रिर्सच के मुताबिक सहजन का पौधा का उपयोग 300 प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है.
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सहजन पौधे का उपयोग भारत में कई आयुर्वेदिक कंपनियां दवा बनाने में करती हैं. देश में संजीवन हर्बल कंपनी व्यवसायिक रूप से सहजन पौधे का उपयोग दवा बनाने में करता है. यह कंपनी सहजन पौधे से कैप्सूल, तेल, बीज आदि निर्यात करके देश और विदेश में सप्लाई करती है.
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सहजन या मोरिंगा फसल बिना किसी देखभाल और लागत के बिना आमदनी करने वाली फसलें हैं. किसान अपने घर में ही अनुपयोगी जगहों पर सहजन के बीज लगा सकते हैं. और उससे सहनज सब्जी की अच्छी पैदावार कर आर्थिक लाभ उठा सकते हैं.
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कैसे करें सहजन पेड़ की पहचान
सहजन पौधे का वानस्पतिक नाम मोरिंगा औलीफेरा है. सहजन को मोरिंगसाय परिवार का सदस्य कहा जाता है. सहजन के पेड़ पर सामान्यत साल में एक बार फूल और फल लगते हैं. सहजन का फल पतला लंबा और हरे रंग का होता जो पेड़ तने के नीच लटका रहता है. सहजन का पौधा 4 से 6 मीटर लंबा होता है और सहजन का तना कमजोर होता है और छोटी-छोटी पत्तियां होती हैं. इसे बहुवार्षिक पौधा भी कहा जाता है.
सहजन का पौधा कमजोर जमीन पर बिना सिंचाई से कई वर्षों तक हरा भरा बना रहता है. सहजन के पेड़ को हर साल डेढ़ से दो मीटर तक काट देते हैं. इन पेड़ों की कटाई इसलिए की जाती है जिससे इसके फल-फूल और पत्तियों पर आसानी से पहुंचा जा सके.