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Updated on: 9 November, 2019 5:15 PM IST
Tomato Potato Cultivation

जिस देश की दो-तिहाई आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर करती है, वहां कृषि के महत्व को कमजोर करके नहीं आंका जा सकता. पिछले कुछ सालों से कृषि का क्षेत्र विकास के कई चरणों से गुजरा है. पहला चरण, जिसे फार्मिंग 1.0 के रूप में जाना जाता है, 1947 से 1966 तक फैला हुआ है. इस दौर की क्रांतिकारी विशेषता भूमि सुधार थे, जिन्होंने शोषक जमींदारी प्रणाली को खत्म कर दिया. 

दूसरा चरण फार्मिंग 2.0 का है, जिस दौरान हरित क्रांति हुई, जिसने भारत की कृषि उत्पादकता में कई गुना वृद्धि की और विदेशी खाद्य सहायता पर हमारी निर्भरता से हमें छुटकारा दिलाया. यह कृषि के इतिहास का एक सुनहरा दौर था. इन सबकी बदौलत आज हम एक खाद्य सुरक्षित राष्ट्र है. आज फिर से भारत की खेती एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर आ पहुंची है. बढ़ती हुई आबादी इस क्षेत्र पर लगातार दबाव बना रही है. इतना ही नहीं, हमारा देश तेजी से औद्योगिकीकरण की तरफ बढ़ रहा है और आबादी शहरों में जा रही है. कृषि आय गिर रही है और देश की खेती वाली जमीन खतरे में है, कृषक खेती से मुंह मोड़ रहा है. इसके मद्देनजर सरकार और वैज्ञानिक दोनों ही चिंतित है, इसके मद्देनजर किसानों को सब्सिडी देने के साथ ही कृषि क्षेत्र में नवाचार किया जा रहा है. इसी कड़ी में किसानों के लिए एक अच्छी खबर है. 

दरअसल अब किसान एक ही पौधे में टमाटर और आलू की पैदावार कर सकते हैं. आलू जड़ से उगेगा और टमाटर बेल पर उगेगा. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के सब्जी विज्ञान विंग ने ग्राफ्टिंग की मदद से इस प्रयोग में सफलता पाई है. इस पौधे का नाम पोमैटो दिया गया है. इस शोध को अब मंडी के किसानों तक पहुंचाने का काम भी शुरू हो गया है, ताकि आलू और टमाटर की अधिक पैदावार वाले क्षेत्रों में इस ग्राफ्टिंग तकनीक से किसान अधिक लाभ कमा सकें.

इंडियन हार्टिकल्चर मैग्जीन में यह शोध 2015 में प्रकाशित भी हो चुका है. बता दे कि मंडी में पोमैटो की अपार संभावनाएं हैं. जिले के बल्ह, मंडी, नाचन, धर्मपुर, सुंदरनगर और करसोग में भारी मात्रा में टमाटर का उत्पादन होता है, जबकि बरोट, सराज वैली व अन्य क्षेत्रों में आलू की काफी अधिक पैदावार है. बरोट का आलू प्रसिद्ध है.

गौरतलब है कि कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के सब्जी विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप कुमार ने सब्जियों में ग्राफ्टिंग तकनीक पर व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया. उन्होंने कहा कि आलू और टमाटर का पौधा उतनी ही पैदावार देता है, जितना एक सामान्य टमाटर या आलू का पौधा देता है. दोनों की एक ही प्रजाति है. किसानों को खुद ग्राफ्टिंग करनी होती है. उन्होंने कहा कि टमाटर, शिमला मिर्च, हरी मिर्च व आलू, कटहल की सब्जियां हैं. जिनका उत्पादन प्रदेश में व्यापक स्तर पर नकदी फसल के तौर पर हो रहा है और इन फसलों का किसानों की आजीविका सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान है.

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बीमारियों से बचाती है ग्राफ्टिंग तकनीक(Grafting technique against diseases)

फसलों में बैक्टीरियल विल्ट व निमाटोड बीमारी गंभीर समस्या है. जिनका उचित प्रबंधन न होने से किसानों को नुकसान होता है. किसान इन समस्याओं के प्रबंधन के लिए कई कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इनका उचित प्रबंधन नहीं हो पाता और किसान की उत्पादन लागत में बढ़ोतरी होती है. ऐसी स्थिति में ग्राफ्टिंग तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है. अभी तक यह तकनीक जापान, कोरिया, स्पेन, इटली जैसे देशों में ही फेमस है. 

English Summary: cultivating tomatoes and potatoes in the same plant farmers will earn bumper profits by !
Published on: 09 November 2019, 05:21 PM IST

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