देश के लगभग हर किसान बैगन की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. वहीं इसकी खेती में उन्हें कई तरह की दिक्कत का सामना भी करना पड़ता है. ऐसा इसलिए क्योंकि बैगन की फसल अकसर कीड़ों और विभिन्न रोगों की चपेट में आती रहती है. ऐसे में किसानों को अच्छा उत्पादन पाने के लिए इसका फसल प्रबंधन करना बहुत जरूरी है.
आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि बैंगन में वे कौन से मुख्य रोग और कीट हैं जिनसे किसानों को ख़ास सावधान रहने की जरूरत है. इसके साथ ही हम आपको यह भी जानकारी देंगे कि आप रोग व रोकथाम के तहत उनसे कैसे छुटकारा पाकर अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं.
छोटी पत्ती रोग
इसका प्रकोप बैगन की पत्तियों पर दिखाई देता है. इसमें पत्तियां काफी छोटी हो जाती हैं और पौधों की शाखाओं का विकास सही तरह से नहीं हो पाता है. पौधे झाड़ीनुमा हो जाते हैं. इससे फूल-फल नहीं बन पाते हैं.
रोकथाम- इसके लिए किसान डाईमेथाएट 30 ईसी या आक्सीडेमेटान मिथाइन 25 ईसी की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें. साथ ही पौधों की रोपाई के लगभग 5 हफ्ते बाद दवा का छिड़काव जरूर करें. रोगी पौधों को नष्ट कर दें.
आर्द्र गलन
इस रोग में पौधों की जड़ सड़ने लगती है. आपको बता दें बैगन में यह रोग फाइटोपथेरा पीथियम स्क्लेरोशियम फ्युजेरियम की अलग-अलग प्रजातियों से होता है.
रोकथाम- इसके लिए बीजों का थीरम की 2.5 से 3 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करना बहुत जरूरी है. किसानों को सलाह है कि बीजों को 50 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान पर 30 मिनट तक उपचारित करके ही बुवाई करनी चाहिए. किसान ट्राइकोडर्मा की लगभग 20 ग्राम मात्रा 1 किलोग्राम कंपोस्ट या गोबर की खाद में मिलाकर 1 वर्गमीटर खेत के शोधन के लिए इस्तेमाल करें.
सफेद मक्खी
ये कीट भी पौधों की मुलायम पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे वे पीली पड़कर सूख जाती हैं. इसके साथ ही इन कीटों से विषाणु जनित रोगों का फैलाव भी होता है.
रोकथाम- शुरुआती दौर में नीम की निबौली के सत का 5 फीसदी घोल छिड़कें. साथ ही इथोफेनाप्राक्स 10 ईसी या इथियान 50 ईसी या आक्सीडिमेटान मिथाइल 25 ईसी 1 लीटर मात्रा को लगभग 700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
फल और तना छेदक कीट
इस कीट की वजह से बैगन के पेड़ का तना मुरझाकर लटक जाता है. साथ ही बाद में सूख भी जाता है. फल आने पर इल्लियां फलों में छेद बनाकर घुस जाती हैं और अंदर ही अंदर फल को खाकर उन्हें खराब कर देती हैं. उनके मल की वजह से ही फल में सड़न आ जाती है.
रोकथाम- इसके नियंत्रण के लिए रोग से ग्रस्त फलों को किसान तोड़कर नष्ट कर दें. ऐसे ही इल्लियों को भी इकट्ठा कर नष्ट कर दें. किसान कीटों का हमला होते ही ट्राइजोफास 40 ईसी 750 मिलीलीटर या क्वीनालफास 25 ईसी 1.5 लीटर की मात्रा लगभग 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़क दें.
लाल मकड़ी माइट
इसका रंग लाल होता है और इसका प्रकोप मुलायम पत्तियों पर ज्यादा होता है. पत्तियों की निचली सतह पर इनका प्रकोप आपको ज्यादा दिखेगा. ये कीट पौधों की कोमल पत्तियों का रस चूसते हैं जिससे सफेद धब्बे पड़ जाते हैं. साथ ही पौधों की बढ़वार भी रुक जाती है.
रोकथाम- कीट का अधिक प्रकोप होने पर सल्फर की 2 से 2.5 ग्राम या सल्फेक्स की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़क दें.
जैसिड कीट
ये वो कीट होते हैं जो पत्तियों का रस चूसते हैं और इनके प्रकोप से पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं.
रोकथाम- इससे फसल को बचाने के लिए किसान खेत को खरपतवार से बचाएं. इससे कीट पनप नहीं पाएंगे. इसकी शुरुआती अवस्था में ही 5 मिलीलीटर नीम का तेल और 2 मिलीलीटर चिपचिपे पदार्थ को प्रति लीटर पानी की दर से मिलाकर छिड़काव करें. वहीं खड़ी फसल में आक्सीमिथाइल डिमेटान मेटासिस्टाक्स या डायमेथोऐट रोगर 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़क दें.