Poultry Farming: बारिश के मौसम में ऐसे करें मुर्गियों की देखभाल, बढ़ेगा प्रोडक्शन और नहीं होगा नुकसान खुशखबरी! किसानों को सरकार हर महीने मिलेगी 3,000 रुपए की पेंशन, जानें पात्रता और रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया खुशखबरी! अब कृषि यंत्रों और बीजों पर मिलेगा 50% तक अनुदान, किसान खुद कर सकेंगे आवेदन किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 23 January, 2021 6:20 PM IST
केकड़ा पालन

क्रैब्स या केकड़े समुद्री खाद्य पदार्थो में से एक है और लोग इसे चाव से खाते हैं. पिछले कुछ दशकों से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रैब्स की अच्छी खासी मांग बढ़ी है यही वजह है कि एशियाई देशों में क्रैब्स की खेती के नए तरीके ईजाद  हुए हैं. इसकी तीन प्रजातियों स्कायला पारामोसैन, स्कायला सैराटा और एस. ओलिवेसिया का पालन प्रमुखता से किया जाता है. तो आइये जानते हैं क्रैब्स का उत्पादन कैसे किया जाता है.

मड क्रैब की मांग

पिछले कुछ सालों से इंटरनेशनल बाजार में जिंदा क्रैब की डिमांड बढ़ गई है. इसके चलते मड क्रैब फैटनिंग का चलन देश में बढ़ गया है. अब हैचरी तकनीक से केकड़ों का उत्पादन किया जा रहा है. राजीव गांधी सेंटर फॉर एक्वाकल्चर किसानों को क्रैब के बीज मुहैया करवा रहा है.

मड क्रैब की खासियत

मड क्रैब्स बेहद ताकतवर माने जाते हैं और ये मछलियों, मोलस्क्स और बेंथिक जंतुओं का सेवन करते हैं. लॉबस्टर और झींगा की तरह यह भी अपनी शेल उतारते हैं जिसे मौल्टिंग प्रक्रिया कहा जाता है.

क्रैब की खेती के लिए साइट का चयन

मैंग्रोव या गैर मैंग्रोव एरिया में क्रैब्स पालन किया जा सकता है. इसके लिए तालाब या खुले पानी जगह चुन सकते हैं. लेकिन पानी में पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन  होना चाहिए.

क्रैब पालन की प्रमुख विधियां

क्रैब फैटनिंग-इंटरनेशनल बाजारों में बड़े आकार के क्रैब्स की मांग बढ़ी तो छोटे केकड़ों को तालाबो, सिंथेटिक सामग्री से बने बक्सों में इनका पालन किया जाने लगा. इसमें 200 ग्राम के क्रैब्स का एक महीने में 25 से 50 ग्राम वजन बढ़ जाता है जो 9-10 महीने तक बढ़ता रहता है.

क्रैब फार्मिंग- इस प्रक्रिया में खेतों पर कृत्रिम तालाबों का निर्माण किया जाता है जिसमें क्रैब्स का पालन किया जाता है. पहले क्रैब्स सीड को छोटे कंटेनर या खुले पानी के बक्से में डाला जाता है. जिसके बाद इन्हें इन तालाबों में डाला जाता है.

तालाब में क्रैब्स का पालन

तालाब में 80 से 120 सेंटीमीटर की गहराई तक पानी होता है जिसमें 70 से 80 ग्राम के केकड़े डाले जाते हैं. जो 0.5 से 0.7 वर्ग मीटर की दर से ग्रोथ करते हैं. तालाब की मजबूत घेराबंदी जरूरी होती है ताकि केकड़े भाग न जाए. भोजन के रूप में केकड़ों को मछलियों के टुकड़े, मोलस्क्स दिया जाता है. 6 महीने में यह जब यह 700 से 1000 ग्राम के हो जाए तब इन्हें बाजार में बेच दिया जाता है.

पॉलिकल्चर

इनदिनों मछलियों के साथ केकड़ों का एकीकृत पालन करके आमदानी को बढ़ाया जा सकता है. मिल्क फिश, मुलेट्स या अन्य प्रजाति की मछलियों के साथ क्रैब्स का पालन किया जा सकता है.

उत्पादन

बता दें कि एस. सेराटा क्रैब तेजी से और अधिक बढ़ते हैं जो 1.5 से 2 किलोग्राम के हो जाते हैं. जबकि एस. ओलवेसिया 1.2 किलोग्राम वजनी होते हैं. विदेश तथा घरेलु बाजार में मड केकड़ों की अच्छी खासी मांग रहती है. क्रैब्स की क्वालिटी के अनुसार इंटरने शनल बाजार में केकड़ों की 8 से 25 अमरीकी डॉलर तक कीमत मिल जाती है.

English Summary: Crab farming will make you rich Let's know the complete information
Published on: 23 January 2021, 06:30 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now