आज हम किसानों के लिए एक ऐसी फसल की जानकारी लेकर आए हैं, जिसे कच्चा और पक्का, दोनों रूप में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. अगर इसके बीजों की बात करें, तो भारतीय भोजन का स्वाद इसके बिना अधूरा रह जाता है.
दरअसल, हम बात धनिया की बात कर रहे हैं, जिसकी बाजार में खूब मांग रहती है. धनिया की खेती उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, बिहार, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कनार्टक में अधिकतर होती है. तो चलिए जानते हैं कि धनिया की खेती (Dhaniya Ki Kheti) कैसे की जाती है.
उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate)
धनिये की खेती (Dhaniye Ki Kheti) हर प्रकार की जलवायु में की जा सकती है. मगर ध्यान रहे कि फसल में फूल लगते समय अत्यधिक पाला ना पड़े, क्योंकि यह फसल के लिए हानिकारक होता है.
उपयुक्त मृदा (Suitable Soil)
इसकी खेती के लिए लवणीय, क्षारीय एवं अत्याधिक बलुई मिट्टीयों को छोड़कर सभी प्रकार की मिट्टी उपयुक्त है.
उन्नत किस्में (Improved Varieties)
किसान भाई धनिये की खेती (Dhaniye Ki Kheti) में आर.सी.आर-41, अजमेर कोरियण्डर-1, आर.सी.आर.-435, आर.सी.आर-684, आर.सी.आर-436, आर.सी.आर.-446, गुजरात धनिया-1 किस्म की बुवाई कर सकते हैं.
बुवाई का समय (Time Of Sowing)
आप धनिये की बुवाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक कर सकते हैं. यह समय फसल की बुवाई के लिए उपयुक्त है.
बीज दर (Seed Quantity)
आपको सिंचित खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 10 से 16 किलाग्राम बीज की आवश्यकता होगा, तो वहीं असिंचित खेती के लिए 20 किग्रा/ प्रति हेक्टेयर बीज चाहिए.
बीज उपचार (Seed Treatment)
बुवाई से पहले कार्बेन्डाजिम और केप्टान 2.5-3 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज या ट्राईकोर्डमा 4-10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज प्रति हेक्यटर के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहिए.
बुवाई विधि (Sowing Method)
किसान भाई ध्यान दें कि धनिये की बुवाई में कतार से कतार की दूरी 25 से 30 से.मी. होनी चाहिए. वहीं पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. होनी चाहिए.
खाद और उर्वरक (Manures And Fertilizers)
बुवाई से एक महीने पहले खेत में 8 से 10 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद या फिर कम्पोस्ट को अच्छी तरह मिला दें. इसके अलावा नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस तथा पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा अंतिम जुताई के समय मिला दें. बाकी मात्रा बुवाई के 30 एवं 60 दिनों के बाद सिंचाई के साथ दें.
सिचांई (Irrigation)
धनिये की खेती (Dhaniye Ki Kheti) में 3 से 4 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है. पहली सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद करनी चाहिए. वहीं, दूसरी सिंचाई 60 से 65 दिन बाद और तीसरी सिंचाई 80 से 85 दिन बाद करनी चाहिए. पानी की बचत करने के लिए बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का उपयोग करना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण (Weed Control)
बुवाई के बाद और बीज अंकुरण से पहले 75 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से ऑक्सीडाइआर्जिल का छिड़काव करना चाहिए. इसके बाद बुवाई के 45 दिनों बाद गुड़ाई कर दें.
रोग से बचाव (Disease Prevention)
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फसल को छाछ्या रोग से बचाने के लिए 20 से 25 किलोग्राम सल्फर पाउडर का खड़ी फसल पर भुरकाव क दें.
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इसके साथ ही झुलसा रोग से फसल को बचाने के लिए प्रोपिकोनाजोल फफूंदनाशक 1 प्रतिशत या कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़क दें. ध्यान रहे कि यह छिड़काव रोग आने से पूर्व भी 12 से 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए.
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फसल को उकठा रोग से बचाने के लिए उचित फसल च्रक विधि को अपनाया चाहिए.
उत्पादन (Production)
किसान भाई सिंचित खेती में 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर सकते हैं. वहीं, बारानी खेती में प्रति हेक्टेयर 6 से 8 क्विंटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं.