भारत में लौंग का प्रयोग पुराने समय से किया जाता है. यह घरों में मसालों के रुप में इस्तेमाल होता है, इसलिए भारतीय पूजा और खाने में एक विशेष स्थान है. लौंग में कई औषधीय तत्वों से भरपूर है.
इसका उपयोग सर्दियों के मौसम में ज्यादा किया जाता है, क्योंकि लौंग की तासीर बहुत गर्म होती है. यह एक सदाबहार पेड़ है. खास बात है कि इसका पौधा एक बार लगाने के बाद कई सालों तक चलता है. देश के सभी हिस्सों में लौंग की खेती होती है, लेकिन इसकी खेती तटीय रेतीले इलाकों में नहीं हो सकती. तो वहीं इसकी सफलतापूर्वक खेती केरल की लाल मिटटी और पश्चिमी घाट के पर्वत वाले इलाके में हो सकती है. हम अपने इस लेख में लौंग की खेती के बारे में ही बताने जा रहे है.
लौंग की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मिट्टी (Suitable climate and soil for clove cultivation)
लौंग की खेती को उष्णकटिबंधीय जलवायु में किया जाता है. इसके पौधों को बारिश की जरूरत पड़ती है. साथ ही इसके पौधे तेज़ धूप और सर्दी को सहन नहीं कर पाते हैं. इससे पौधों का विकास रुक जाता है, इसलिए इसके पौधों को छायादार जगहों की ज्यादा जरूरत पड़ती है. इसके अलावा सामान्य तापमान में पौधों का विकास अच्छे से होतो है.
अगर गर्मियों का मौसम है तो अधिकतम 30 से 35 तापमान पहना चाहिए. अगर सर्दियों का मौसम है तो न्यूनतम 20 तापमान होना चाहिए. इसकी खेती के लिए नम कटिबंधीय क्षेत्रों की बलुई मिट्टी अच्छी होती है. लौंग के पौधों के लिए जल भराव वाली मिट्टी में नहीं उगा सकते है. इससे पौधा खराब हो जाता है.
लौंग के बीज (Clove seeds)
लौंग के बीज को तैयार करने के लिए माता पेड़ से पके हुए कुछ फलों को इक्कठा किया जाता है. इसके बाद उनको निकालकर रखा जाता है. जब बीजों की बुआई करनी हो, तब पहले इसको रात भर भिगोकर रखें. इसके बाद बीज फली को बुआई करने से पहले हटा दें.
नर्सरी की तैयारी (Nursery preparation)
बीजों की रोपाई नर्सरी में जैविक खाद का मिश्रण तैयार करें. अब मिट्टी में करीब 10 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियां में करनी चाहिए. बता दें कि इसके बीजों से पौध तैयार होने में करीब दो साल तक का समय लगता हैं. और उसके चार से पांच साल बाद पौधा फल देना शुरू करता है. इस तरह पैदावार करीब 7 साल में मिलती है, इसलिए किसान भाई पौधों को नर्सरी से खरीदकर भी खेतों में लगा सकते हैं.
इससे समय की बचत होती है. साथ ही पैदावार भी जल्द मिलती है. ध्यान दें कि जब नर्सरी से पौधा खरीदते है, तो पौधा करीब चार फिट से ज्यादा लम्बाई और दो साल पुराना हो.
लौंग के पौध का रोपण करने का तरीका (How to plant clove seedlings)
लौंग के पौध का रोपण मानसून के वक्त किया जाता है. पौध रोपण का समय करीब जून से जुलाई के महीने में करना चाहिए. पौधे को रोपने के लिए करीब 75 सेंटीमीटर लम्बा , 75 सेंटीमीटर चौड़ा और 75 सेंटीमीटर गहरा एक गड्डा खोदकर तैयार कर लें. ध्यान रहे कि एक गड्डे से दूसरे गड्डे की दूरी करीब 6 से 7 सेंटीमीटर हो. इन गड्डे में खाद, हरी पत्तियां और पशु खाद से भर दें. इन सभी खादों को मिटटी की एक परत से ढके.
लौंग की फसल की सिंचाई (Irrigation of clove crop)
लौंग की खेती में करीब 3 से 4 साल में सिंचाई की जरूरत होती है. गर्मियों के मौसम में फसल में लगातार सिंचाई करते रहना चाहिए, जिससे भूमि में नमी बनी रहे.
लौंग के फलों की तुड़ाई (Clove fruit plucking)
लौंग के पौधे करीब 4 से 5 साल में फल देना शुरुर कर देते है. इसके फल पौधे पर गुच्छों में लगते हैं. इनका रंग लाल गुलाबी होता है. जिनको फूल खिलने से पहले ही तोड़ लिया जाता है. इसके फल की लम्बाई अधिकतम दो सेंटीमीटर होती है. जिसको सुखाने के बाद लौंग का रूप दिया जाता है.
लौंग का प्रबंधन (Clove Management)
लौंग के फूल कलियों को हाथ से अलग करके सबखने के लिए फैला दिया जाता है. जब कली के भाग काले भूरे रंग का हो जाये, तो उन्हें इक्कठा कर लिया जाता है. जिसके बाद लौंग का वजन थोडा कम हो जाता है.
लौंग की पैदावार और लाभ (Clove yield and benefits)
लौंग की खेती से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है. बाजार में इसकी कीमत अधिक होती है. इसलिए यह मंहगा बिकता है. लौंग के पौधे रोपाई के करीब 4 से 5 साल बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. वैसे इनसे शुरुआत में पैदावार कम मिलती है, लेकिन जब पौधा पूर्ण रूप से तैयार हो जाता है, तब एक पौधे से एक बार में करीब तीन किलो के आसपास लौंग प्राप्त होने लगता है.