तोरई कद्दू वर्गीय खेती में आती है. तोरई की खेती कैसे करनी चाहिए यह जानने के लिए इससे जुड़ी कुछ तकनीकों की जानकारी होना बहुत जरुरी है. इसकी खेती लो टनल तकनीकी से करनी चाहिए. यह एक खास तरह की तकनीकी है, जिससे किसान अच्छा पौसा कमा सकता है. बता दें कि इस तकनीक में पॉलिथीन से बनी हुई झोपड़ी बनाई जाती है और समय से पहले पौध को तैयार किया जाता है. इसे हरे, पीले या हल्के हरे रंग में उगाया जा सकता है, उनका आकार खीरे के समान होता है.
यह एक नगदी फसल है और जिसकी बाजार में कीमतें बहुत ज्यादा नहीं गिरती जिससे किसानों को इसकी खेती से ज्यादा नुकसान नहीं होता. तोरई उचित जल निकासी वाली मिट्टी, मीठा पानी और गर्म जलवायु में अच्छा उत्पादन देती है. सूखी और नम मौसम में इसकी अच्छी पैदावार होती है.
अच्छी पैदावर के लिए सब्जी वाली फसलों में कम्पोस्ट खाद का इस्तेमाल करना बेहद जरुरी होता है.
खेती कब करें-
इसकी खेती के लिए किसान लो टनल पॉलीहाउस में बीज की बुवाई करते हैं, जिससे पौध को नियंत्रित तापमान में तैयार किया जा सके. बता दें कि समय से पूर्व बीजाई का जनवरी माह के बाद फल आने लगता है.
खेती करने का तरीका -
कुछ लोग लो-टनल में पौध को तैयार करके उन्हें जनवरी के आखिर में या फरवरी की शुरुआत में खेत में रोपते हैं इसके साथ ही दूसरा तरीका मल्चिंग का है जिसमें बीज जमीन में समय से पूर्व ही लगा दिए जाते हैं. इन्हें पॉलीथिन सीट से ढ़क दिया जाता है. इसकी अंकुरण अवस्था से लेकर बढ़ावर होने तक इसको ढ़क कर रखा जाता है, और जब मौसम सामान्य हो जाता है तब पॉलीथिन सीट को हटा दिया जाता है.
मिट्टी-
उचित जल निकासी वाली मिट्टी, मीठा पानी और गर्म जलवायु में अच्छा उत्पादन देती है. सूखी और नम मौसम में इसकी अच्छी पैदावर होती है. बीज ढीली मिट्टी में स्वतंत्र रूप से निकलता है. तोरी के पौधे भारी फीडर होते हैं इसलिए मिट्टी कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होनी चाहिए. इसकी 6.5 का पीएच स्तर अच्छी गुणवत्ता और फल की उपज करता है.
बीज की बुवाई
बीज रोपड़ करने के लिए खेत को अच्छे से तैयार करते हैं और सड़े गोबर की खाद मिट्टी में मिलाते हैं. फिर पौधों को शुरुआत में ही होने वाले रोग से बचाने के लिए थीरम या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए. दो से तीन किलो बीज एक हेक्टेयर की रोपाई के लिए काफी होता है. तीन से चार मीटर की दूरी पर खेत में नाली बनानी चाहिए एंव इसके किनारों पर बीज रोपकर पानी लगा देना चाहिए.
सिंचाई का तरीका
बढ़ते मौसम के दौरान इसे नियमित पानी की आवश्यकता होती है, रोपण यानि फूल और फल चरणों के दौरान फसल को सबसे अधिक पानी देना चाहिए. मिट्टी को लगातार नम रखें और अगर फसल में पर्याप्त पानी नहीं होगा तो उपज को नुकसान होगा. पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद बीज बोने के तीसरे दिन करनी चाहिए. इसके बाद गर्मी के मौसम में सप्ताह में एक बार सिंचाई करें.
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
उर्वरक की आवश्यकता मुख्य रूप से मिट्टी की पोषण स्थिति पर निर्भर करती है, खेत की तैयारी के समय 1.5 से 2 क्विंटल खेत की खाद डालनी चाहिए.
बेसल खुराक लगभग 25 किलो नाईट्रोजन, फ़ॉसफोरस, पोटेशियम एक एकड़ के लिए होना चाहिए और विकास के बाद के चरणों में 20 किलो ड्रिप सिंचाई के माध्यम से 4 विभाजित खुराक में स्प्रे करना चाहिए. पौध परागण के बाद नाईट्रोजन, फॉसफोरस और पोटेशियम का 13:45 अनुपात ड्रिप सिंचाई के माध्यम से लागू किया जाता है.
बीज को सीधे जमीन में बोना-
1. सीधी बिजाई की विधि अप्रैल से मई के अंत तक बुवाई के लिए प्रयोग करें
2. लगभग 1 इंच की गहराई और बीज छेद के बीच लगभग 24 से 32 इंच की दूरी के साथ बीज छेद का उपयोग करें
3. जब पौधे लगभग 3-4 इंच की ऊंचाई तक पहुंच जाएं, तो उन्हें पतला कर लें, ताकि वे सामान्य रूप से विकसित हो सकें