दियारा खेती एक बहुत पुरानी प्रथा है, जो मुख्यत: नदी के किनारों पर की जाती है. दियारा खेती को बेसिन खेती भी कहा जाता है. दियारा खेती में कुकुरबिट्स सब्जियों का उत्पादन किया जाता है. वर्तमान में दक्षिण एशियाई देशों में दियारा खेती बड़े पैमाने में की जा रही है. कुकुरबिट्स सब्जियों में तरबूज, खरबूज, कद्दू, खीरा, लौकी, परवल आदि आते हैं. दियारा खेती या बेसिन खेती भूमिहीन, छोटे व सीमांत किसानों के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर रही है.
कहां होती है दियारा खेती
दियारा खेती भारत के इन हिस्सों में की जाती है. यह वह क्षेत्र हैं जहां पर कद्दू, लौकी, खरबूज व खीरे बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं.
-
उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा में गंगा, जमुना, गोमती सरयू और सहायक नदियों के किनारे की जाती है.
-
राजस्थान में दियारा खेती टोंक जिले में नदी-स्तर बनास में की जाती है.
-
मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी, ताप्ती नदी व तवा नदी के किनारे होती है.
-
गुजरात के साबरमती, पनम नदी और वर्तक में दियारा खेती की जाती है.
-
दियारा खेती ओरसंग, आंध्र प्रदेश के तुंगभद्रा, कृष्णा, हुंदरी, पेन्नार नदी-तल नदी के किनारे होती है.
दियारा खेती के फायदे
-
दियारा खेती करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें लागत बेहद ही कम आती है.
-
दियारा खेती से कम समय पर अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है.
-
दियारा खेती में सिंचाई करने में आसानी होती है.
-
नदी के किनारे खनिजों की भरमार होती है, जिससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता बरकरार रहती है तथा पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते रहते हैं.
-
दियारा खेती में कीट और रोग के नियंत्रण में आसानी होती है.
कैसे की जाती है दियारा खेती-
दियारा खेती के लिए गड्ढे या खाई बनाना
दियारा खेती के लिए सबसे पहले नदी के किनारे बीजों को रोपने के लिए गड्ढे किए जाते हैं. अक्टूबर- नवंबर के दौरान जब मॉनसून की विदाई हो जाती है और बाढ़ व उफनती हुई नदियां शांत हो जाती हैं, उसके बाद नदियों के किनारों पर गड्ढे या चैनल बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है. नदी के जल स्तर के अनुसार चैनल 50-60 सेंटीमीटर चौड़ा और 45-90 सेंटीमीटर गहरा किया जाता है.
दियारा खेती के लिए खाद व उर्वरक को भरना
गड्ढे बनाने की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद गड्ढ़ों को भरने के लिए उसमें सड़ी हुई गोबर की खाद, अरंडी व मूंगफली की खलीयां और सड़े हुए पत्तों के मिश्रण को प्रति गढ्डे के हिसाब से डालना चाहिए.
दियारा खेती का बुवाई का समय
-
दियारा खेती में बीज की बुवाई का समय नवंबर की शुरूआत से लेकर दिसंबर माह की शुरूआत तक अनुकूल होता है. पछेती किस्मों की जनवरी के पहले सप्ताह तक बुवाई की जाती है.
-
दियारा खेती में खीरे के लिए प्रति हेक्टेयर बीज दर 2-3 किलो, करेला और लौकी में 4-5 किलो और तुरई में 3 किलो से करना चाहिए.
-
बीज को 3-4 सेमी की गहराई पर बोया जाना चाहिए और 2 बीज को एक साथ रोपित किया जाना चाहिए.
-
तापमान कम होने पर बीजों को अंकुरित करने की आवश्कता नहीं होती है, अन्यथा बीजों को 24 घंटे पहले भिगोकर रख दें. बीज अंकुरित होने के बाद रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं.
दियारा खेती के लिए सिंचाई
दियारा खेती में सिंचाई की आवश्यकता बहुत ही कम होती है. यदि आवश्कता हुई तो उसे अस्प्रिंकलर या ड्रिप सिंचाई प्रणाली अपनानी चाहिए.
दियारा खेती के लिए मचान बनाना
दियारा खेती मुख्यत: रबी सीजन में की जाती है. रबी सीजन में दिसंबर से जनवरी तक उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में तापमान में भारी गिरावट आ जाती है. उस दौरान पौधों की प्रारंभिक अवस्था होती है, ठंड से बचाने के लिए पौधों की सुरक्षा की आवश्यकता होती है, तब पौधों को मचान का सहारा देकर सुरक्षा प्रदान की जाती है. मछान का निर्माण धान के भूसे या गन्ने के पत्तों से किया जा सकता है.
दियारा खेती की फसलों को रोग से कैसे बचाएं
यदि इन फसलों में किसी भी प्रकार का रोग लगता है, तो नीम गीरी के घोल को किसी चिपकने वाले पदार्थ के साथ मिलाकर छिड़काव करें.
यह भी पढ़ें: हल्दी की ये उन्नत किस्में देंगी बंपर पैदावार, प्रति एकड़ मिलेगी 200 क्विंटल तक उपज
सब्जियों की कटाई और उपज
कुकुरबिट्स सब्जियां औसतन 45 से 55 दिन के उपरांत फल बनने योग्य बन जाती हैं तथा 60 से 70 दिन बाद बेचने योग्य हो जाती हैं. तथा 2.5 से 3 महीने तक इसकी उपज मिलते रहती है. सब्जियों की कटाई/ तुड़ाई तब करनी चाहिए, जब वह कोमल व खाने योग्य हों.
दियारा खेती में उगाई जाने वाली फसल व उसकी उपज क्षमता
सब्जियां |
बोने का समय |
कटाई का समय |
औसत उपज क्विंटल/ हेक्टेयर |
|
1. |
तरबूज |
नवंबर-दिसंबर |
मार्च-जुलाई |
175-200 |
2. |
खरबूज |
नवंबर-दिसंबर |
मार्च-जुलाई |
225-250 |
3. |
कद्दू |
जनवरी-फरवरी |
मार्च-जून |
225-250 |
4. |
लौकी |
नवंबर-दिसंबर |
मार्च-जुलाई |
200-350 |
5. |
करेला |
फरवरी-मार्च |
मई-जुलाई |
100-150 |
6. |
परवल |
नवंबर-दिसंबर |
मार्च-जुलाई |
350-400 |
7. |
चिकनी तुरई |
अप्रैल-मई |
जून-जुलाई |
100-200 |
8. |
घिया तुरई |
जनवरी-फरवरी |
अप्रैल-मई |
100-200 |
9. |
खीरा |
जनवरी-फरवरी |
मार्च-जून |
225-250 |