बैंगन सोलेनेसी परिवार से संबंधित है, जो भारत की एक मुख्य सब्जी फसल है. बैंगन एशियाई देशों में बड़े पैमाने में उगाया जाता है. इसके अलावा इटली फ्रांस, मिस्र और अमेरिका में भी बैंगन लोकप्रिय सब्जियों की श्रेणी में आता है. देखा जाए तो बैंगन बाकी सब्जी फसल की तुलना में कठोर होता है. यही कारण है कि बैंगन कम सिंचाई वाले शुष्क क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. बैंगन विटामिन व खनिजों के प्रमुख स्रोतों में से एक है. बैंगन का पौधा साल भर बढ़ता रहता है. चीन के बाद भारत पूरी दुनिया में बैंगन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. भारत में प्रमुख बैंगन उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश हैं. ऐसे में यदि आप भी बैंगन की खेती करने की सोच रहे हैं, तो यह लेख आपके काम आ सकता है.
बैंगन की खेती के लिए मिट्टी
बैंगन एक कठोर फसल है इसलिए इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. चूंकि यह एक लंबी अवधि की फसल है, इसलिए अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है जो इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है और अच्छी उपज देती है. अगेती फसल के लिए हल्की मिट्टी अच्छी होती है और अधिक उपज के लिए चिकनी दोमट, गाद दोमट उपयुक्त होती है, अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी का पीएच 5.5 से 6.6 होना चाहिए.
बैंगन की उन्नत किस्में
जमुनी GOI (S 16), पंजाब बरसाती, पंजाब सदाबहार, पंजाब नगीना, बीएच 2, पंजाब नीलम पूसा, पर्पल लॉन्ग, पूसा पर्पल क्लस्टर, पूसा हाईब्रीड 5, पूसा पर्पल राउंड, पंत ऋतुराज आदि हैं.
नर्सरी प्रबंधन और रोपण
संबंधित सब्जियों की तरह ही बैंगन की सब्जी भी क्यारियों में बोई जाती है, जो कि 1 मीटर लंबी, 15 सेमी ऊंची और 1 मीटर चौड़ी होती हैं. इसके बाद गोबर की सड़ी हुए खाद को मिट्टी में अच्छे से मिलाया जाता है. इसके बाद बैंगन के बीजों को क्यारियों में 5 सेमी की दूरी पर बोया जाता है और सूखे पत्तों व गोबर से ढक दिया जाता है. फिर बीजों के अंकुरित होने तक क्यारियों को धान के पुआल से ढक दिया जाता है. जब पौधा मिट्टी से उभर कर 3-4 पत्तियों का हो जाता है, तो वह रोपाई योग्य बन जाता है. बता दें कि रोपाई शाम के वक्त ही की जानी चाहिए, जिसके बाद उस पर हल्की सिंचाई करें.
बैंगन के लिए भूमि की तैयारी
रोपाई से पहले खेत की 4-5 बार जुताई करनी चाहिए, ताकि मिट्टी समतल बनी रहे, ध्यान रहे कि जुताई गहरी हो. खेत तैयार होने के बाद उपयुक्त आकार में क्यारियां बना लेनी चाहिए.
बैंगन की फसल के लिए बुवाई का समय
बैंगन की फसल साल में 4 बार की जाती है, पहली फसल के लिए अक्टूबर में नर्सरी तैयार कर ली जाती है और नवंबर में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. दूसरी फसल, नवंबर में नर्सरी की तैयारी और फरवरी के पहले पखवाड़े में रोपाई. तीसरी फसल, फरवरी-मार्च में नर्सरी की तैयारी व अप्रैल के अंत से पहले रोपाई कर दी जाती है. जबकि चौथी फसल, जुलाई में नर्सरी में बीज बोए जाते हैं और अगस्त में रोपाई कर दी जाती है.
बैंगन के लिए बुवाई की गहराई
बैंगन की खेती में एक एकड़ भूमि की बिजाई के लिए 300 से 400 ग्राम बीज का छिड़काव करना चाहिए. नर्सरी में बीजों को 1 सेंटीमीटर की गहराई पर बोयें और फिर मिट्टी से ढक दें. कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 35-40 सेंटीमीटर होनी चाहिए.
बैंगन में लगने वाले रोग तथा उसका संरक्षण
फल और तना छेदक
बैंगन की फसल को यदि कोई सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है, तो वह है फल और तना छेदक. यह बैंगन के प्रमुख और गंभीर कीटों में से एक माना जाता है. एक छोटा गुलाबी रंग का कैटरपिलर सबसे पहले बैंगन में छेद करता है और अंदर जाकर बैंगन खाने लगता है. इससे पहले कि यह कीट बाकी फसलों को भी बर्बाद करें, संक्रमित बैंगन को वहां से हटा कर नष्ट कर दें. इसके लिए रोपाई के एक महीने बाद से नीम के पत्तों को एक्सट्रेक्ट कर 50 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. यदि खेत में इसका हमला दिखे तो प्रभावित फसलों पर 25% साइपरमेथ्रिन 2.4 मि.ली. को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें. अधिक आबादी के लिए स्पिनोसेड 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.
एफिड्स
पौधों पर माइट, एफिड्स और मीली बग द्वारा भी हमला किया जाता है. जो की पत्तियों का रस चूस लेते हैं व पत्तियां पीली होकर झड़ने लगती हैं. इसके नियंत्रण के लिए डेल्टामैथ्रिन + ट्रायज़ोफॉस कॉम्बिनेशन @ 10 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
झुलसा रोग और फल सड़न
जब बैंगन के पौधों की पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, तो उसे फ़ोमोप्सिस झुलसा और फल सड़न रोग कहा जाता है, जिसके बाद पत्ता काला पड़ने लगता है. इसके लिए खेतों में बिजाई से पहले ही बीजों में @3 ग्राम प्रति किलो बीज का उपचार करना चाहिए.
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बैंगन की तुड़ाई
बैंगन के परिपक्व होने पर जब उसका आकार, रंग उचित दिखने लगे तो वह तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता है. यदि आपने बैंगन की खेती में अच्छे से देखभाल की है, तो आपको उत्पादन भी अच्छा मिलेगा, जिससे बाजार में इसकी मांग और अधिक बढ़ने लगेगी.
फसल कटाई के बाद
उच्च वाष्पोत्सर्जन दर और पानी की कमी के कारण बैंगन को लंबे वक्त तक संग्रहीत करना संभव नहीं है. बैंगन को अधिकतम 2-3 सप्ताह तक 10 से 11 डिग्री सेल्सियस तापमान व 92 फीसदी नमी वाले क्षेत्र में रखा जा सकता है. ध्यान रहे कि बैंगन की तुड़ाई बाजार में भेजने से कुछ वक्त पहले ही करें.