Poultry Farming: बारिश के मौसम में ऐसे करें मुर्गियों की देखभाल, बढ़ेगा प्रोडक्शन और नहीं होगा नुकसान खुशखबरी! किसानों को सरकार हर महीने मिलेगी 3,000 रुपए की पेंशन, जानें पात्रता और रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया खुशखबरी! अब कृषि यंत्रों और बीजों पर मिलेगा 50% तक अनुदान, किसान खुद कर सकेंगे आवेदन किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 16 January, 2023 12:08 PM IST
उत्तराखण्ड में सेब की व्यवसायिक किस्में

सेब की खेती ठंडे क्षेत्रों में ही की जाती है. भारत में पहाड़ी क्षेत्रो पर मुख्य रुप से सेब की खेती की जाती है. इसके लिए 100 से 150 सेंटीमीटर बारिश की जरुरत होती है. मार्च-अप्रैल के समय में सेब के पौधे  मार्च से अप्रैल महीने के बीच आना शुरू हो जाते हैं.

उत्तराखण्ड प्राकृतिक सम्पदा और भौगोलिक विविधता के लिए जाना जाता है. यहा की जलवायु फल के उत्पादन के लिए काफी उपयुक्त मानी जाती है. उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों के अधिकांश भागों में सेब उत्पादन किया जाता है. आज के युग में घरेलू बाजार में सेब की बढ़ती मांग को देखते हुए इसके उत्पादन में वृद्धि करना एक बड़ी चुनौती है. ऐसे में पारंपरित तरीकों के साथ-साथ सेब की नवीनतम प्रजातियों की खेती करना बहुत ही आवश्यक होता जा रहा है. नवीनतम तकनीकों के साथ-साथ यह भी बहुत आवश्यक है कि ऐसी प्रजातियों का रोपण किया जाये जो अधिक उपज के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता के फल भी प्रदान करें. ऐसे में उत्तराखंड के किसानों ने सेब के विभिन्न प्रकार की प्रजातियों की खेती करना शुरु कर दी है. 

शीघ्र पकने वाली सेब की प्रजातियाँ 

  1. अर्ली शनवरी

यह अगेती प्रजाति की श्रेणी में आता है. इसका फल गोल और छिलका लाल और हल्के पीले रंग का होता है. यह फल स्वाद में खट्टा मीठा होता है. इसका फल जून के दूसरे सप्ताह तक पककर तैयार हो जाता है. पके फल को 4 से 6 सप्ताह तक रखा जा सकता है.

  1. फैनी 

इस प्रकार के वृक्ष कुछ अधिक ऊंचाई के होते हैं और यह फल नियमित रूप से फल देता रहता है. यह फल गोल, चपटा, मध्यम आकार का होता है. इसका छिलका पीले रंग का धारीदार होता है और गूदा कुरकुरा हल्की खटास का होता है. फल जून मध्य से अन्तिम सप्ताह तक पककर तैयार हो जाता है. 

  1. बिनौनी 

इस किस्म के वृक्ष की भी ऊँचाई अधिक होती है. इसका फल गोल चपटा, त्वचा चिकनी पीले रंग की होती है और गूदा रसीला खट्टा-मीठा स्वाद का होता है. फल जुलाई के प्रथम सप्ताह में पकना शुरु हो जाते हैं. 

मध्य में पकने वाली प्रजातियां 

  1. रॉयल डेलीशस 

इस प्रजाति के पौधे नियमित रुप से फल देते हैं और इनकी पैदावार भी अधिक होती है. इसके फल का आकार बड़ा और अण्डाकार होता है. फल का रंग लाल, चमकीला, गूदा नरम, रसीला एवं बहुत मीटे स्वाद को होता है. इसका फल अगस्त के अन्तिम सप्ताह से लगने शुरु हो जाते हैं. 

  1. रिच एरैस

यह वृक्ष मध्यम ऊँचाई तथा फैलाव वाले होते हैं. यह फल गोल, अण्डाकार, तिकोने तथा निचले भाग पर पांच उभार वाले होते हैं. इसका गूदा रसदार, हल्का पीलापन लिए हुए, खाने में मीठा होता है. फल अगस्त के अन्तिम सप्ताह में पक कर तैयार हो जाते हैं.

ये भी पढ़ेंः सेब उत्पादन लाएगा पहाड़ों में खुशहाली

  1. वास डेलीशस

 यह अधिक उपज देने वाली प्रजाति है. इसका फल शकुवाकार तथा छिलका लाल रंग का होता है. इसके फल अगस्त के द्वितीय सप्ताह में पककर तैयार हो जाते हैं.

English Summary: Commercial varieties of apple in Uttarakhand
Published on: 16 January 2023, 12:18 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now