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Updated on: 19 December, 2022 10:59 AM IST
चिकोरी की खेती से बंपर मुनाफा

आज कल किसानों का रुख नगदी फसलों की ओर बढ़ गया है. किसान इन फसलों से कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाते हैं. ऐसी ही एक फसल है चिकोरीजिसे कासनी भी कहते हैं. यह बहुउपयोगी फसल है. जिसका उपयोग चारे के साथ-साथ कैंसर जैसी बीमारी के उपचार में भी होता है. यह फसल कंद और दाने के रुप में उपज देती है. भारत में अधिकांश किसान कासनी को चारे के लिए उगाते हैं लेकिन अगर इसके उपयोग के बारे में जानकारी हो तो अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. आईए जानते हैं चिकोरी की खेती के बारे में संपूर्ण जानकारी.

चिकोरी के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी 

भारत में इसकी खेती ज्यादातर उत्तर भारत के राज्यों में ही की जाती है. इसकी खेती के लिए सामान्य बारिश और सामान्य तापमान की जरुरत होती है. शुरुआत में इसके पौधों को अंकुरण के लिए 25 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद इसके पौधे 10 डिग्री तापमान पर भी आसानी से विकास कर लेते हैं. फसल पकाई के दौरान 25 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है. इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण दोनों जलवायु अच्छी होती है. उचित जल निकासी वाली उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान सामान्य के आसपास उपयुक्त होता है. 

चिकोरी की बुवाई का समय 

सर्दी का मौसम पौधे के विकास के लिए उपयुक्त हैइसलिए सर्दी के मौसम में खेती की जाती है. कासनी का पौधा पाले को भी सहन कर सकता है. 

चिकोरी की उचित किस्में

चिकोरी की मुख्यता दो प्रजाति पाई जाती हैं. जंगली और व्यापारिक. जंगली प्रजाति की चिकोरी का इस्तेमाल मुख्यत पशुओं के चारे के लिए होता है. इसकी पत्तियों का स्वाद हल्का कड़वा होता है. यह कई बार कटाई देता है. इसके कंद कम मोटे होते हैं. वहीं व्यापारिक प्रजातियों की कंद व बीजों का उपयोग भी होता है. इसमें दो प्रमुख वैराइटी हैं. केकिस्म का पौधा सामान्य ऊंचाई का होता हैइसकी जड़ें मोटीलंबी और शंकु की तरह नुकीली होती हैं. के13 किस्म की खेती हिमाचल प्रदेश में ज्यादा होती है. इसकी जड़ें गठी हुई और मोटी होती हैं. इसकी जड़ें उखाड़ते समय काफी कम टूटती हैं. जिससे इनका उत्पादन अच्छा मिलता है.

चिकोरी की खेती की तैयारी

कासनी की बुवाई से पहले खेत की मिट्टी की जुताई में बीज रोपाई के लिए उचित आकार की क्यारी तैयार की जाती हैं. 

चिकोरी के बीजों की रोपाई का तरीका

कासनी के बीजों की रोपाई सघन तरीके से की जाती है. जबकि व्यापारिक उद्देश्य के रुप में उगाने के दौरान बीजों की रोपाई अधिक दूरी पर की जाती है. बीज को छिड़काव विधि से उगाया जाता है. व्यापारिक रोपाई के दौरान इसके बीजों को दानेदार मिट्टी के साथ मिलाकर छिड़कते हैं.  

चिकोरी की सिंचाई 

बीज रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें. तीन से चार दिन में बीज अंकुरित हो जाते हैं. अगर फसल चारे के लिए उगाई जा रही है तो ज्यादा पानी की जरुरत होती है. व्यापारिक खेती के दौरान पौधों को 20 दिन के अंतराल में पानी दें और फूल व दाने बनने के दौरान ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है.

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चिकोरी की खेती में मुनाफा 

चिकोरी की किस्में 120 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती हैं. चिकोरी से प्रति हेक्टेयर 20 टन के आसपास कंद का उत्पादन होता है और क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से बीज प्राप्त होते हैं. इसके कंदों का भाव 400 रूपये और बीजों का भाव हजार रूपये प्रति किवंटल के आसपास पाया जाता है. इस तरह कंदों से 80 हजार और दानों से 40 हजार रूपये तक का मुनाफा मिलता है. वहीं इसकी पत्तियों का उपयोग हरे चारे के रुप में होता है.

English Summary: Chikori farming is amazing, farmers earn profits like this
Published on: 19 December 2022, 11:14 AM IST

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