सब्जियों में करेले का स्वाद भले ही कड़वा क्यों ना होता हो, लेकिन देश के कई राज्यों के किसान करेले की खेती (Karele Ki Kheti) कर अच्छी कमाई कर रहे हैं. अगर किसानों को करेले फसल से अच्छी पैदावार चाहिए, तो इसके लिए उचित पोषक तत्व, समय पर बुवाई, पौध संरक्षण के साथ करेले की उन्नत किस्मों का चुनाव करना आवश्यक है. बता दें, कि इसकी खेती में उन्नत किस्मों का चुनाव करना एक महत्वपूर्ण कार्य है. ऐसे में किसानों को करेले की उन्नत किस्मों के प्रति जागरूक होना चाहिए. आज हमने इस लेख में करेले की किस्मों की विशेषताएं और पैदावार का उल्लेख किया है, इसलिए लेख को अंत तक ज़रूर पढ़ते रहें-
करेले की उन्नत किस्मों की विशेषताएं और पैदावार
प्रिया- इस किस्म के फल 19 सेंटीमीटर लंबे होते है. इसकी बुवाई के 60 दिन बाद फल पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है. इसकी हर एक बेल से 35 फल प्राप्त हो सकते हैं. उत्तर भारत में इस किस्म को मई से सितंबर सितंबर से जनवरी और फ़रवरी से मई में उगाया जाता है. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 80 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त हो सकती है.
हिसार सेलेक्शन- इस किस्म के फल हरे रंग होते हैं, जो कि माध्यम आकार के होते हैं. यह किस्म उत्तरी भारत के लिए एक प्रचलित और लोकप्रिय किस्म मानी जाती है. इससे प्रति एकड़ लगभग 40 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
कल्याणपुर बारहमासी- इस किस्म के फल हरे रंग के होते हैं, जो कि देखने में काफी आकर्षित लगते हैं. इस किस्म को गर्मी और बारिश, दोनों मौसम में उगाया जा सकता है. यह किस्म पूरी साल फल देती है. यही कारण है कि इसे बारह मासी संज्ञा दी गई है.
फैजाबादी बारहमासी- इस किस्म के फल लंबे, पतले और कोमल होते हैं. इसकी लताएं अधिक फैलने लगती है और पूरे साल फल लगते रहते हैं. इससे भी अच्छी पैदावार मिल सकती है.
पंजाब 14- इस किस्म के पौधों की बेलें छोटी होती हैं. इसके फल का औसतन वजन 35 ग्राम होता है और यह हल्के हरे रंग के होते हैं, जिससे प्रति एकड़ लगभग 50 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
पंजाब करेला 1- करेला की यह किस्म नर्म और दांतेदार होती है. इसके पत्ते हरे रंग के होते हैं, जो कि लंबे आकार का फल देती हैं. इस किस्म की बुवाई से फल लगभग 66 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है. इस किस्म के फलों का वजन लगभग 50 ग्राम होता है. इससे प्रति एकड़ लगभग 50 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
सी 16- करेला की यह एक उन्नत किस्म है. इसके फलों का रंग हरा होता है. यह पूसा दो मौसमी नामक किस्म से अधिक पैदावार देती है. इससे प्रति हेक्टेयर 130 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है.