अजमोद का प्रयोग हर प्रकार की सब्जी बनाने में किया जाता है. यह एक द्विवार्षिक पौधा है. इसकी पत्तियां गाढ़ी हरी और चमकीली होती हैं. इसके फूल पीले हरे रंग के होते हैं. अजमोद के पत्ते और बीज को मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस पौधे की खेती सर्दियों में बंगाल के भागों में की जाती है. आजकल इसका इस्तेमाल होटलों, रेस्टोरेन्ट और शादियों में सूप, सलाद, सब्जियां सुगंधित एवं सुशोभित करने के लिए किया जाता है. यह काफी महंगी फसल होती है. ग्रामीण इलाकों में इसे बहुत ही कम पसन्द किया जाता हैं.
खेती की प्रक्रिया-
मिट्टी-
अजमोद की खेती के लिए हल्की बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है, लेकिन इसे हल्की व भारी सभी प्रकार के नम मिट्टी, जिसमें जल की निकासी हो, इस प्रकार की सभी मिट्टियों में उगाया जा सकता है. इसकी मिट्टी की तैयारी के लिए सबसे पहले खेत को अच्छी तरह देशी हल से 2 से 3 बार जोत लें और जुताई के समय खेत में मौजूद खरपतवार, ढेले और घास आदि की पूरी तरह से सफाई कर लें.
रोपण
अजमोद के पौधे को बीजों के रोपण से उगाया जाता है. इसके बीज के अंकुरण में 4 से 6 हफ्ते तक का समय लग जाता है. बीज बोने के लिए सितम्बर और अक्टूबर का माह उचित होता है. आपको बता दें कि प्रति एकड़ 200 से 300 ग्राम बीज को 24 घंटे पानी में भिगोकर रखने के बाद ही बोया जाता है, जिससे बीजों का अंकुरण आसानी से हो सके.
खाद
अजमोद की खेती के लिए प्रति एकड़ 15 टन गोबर, 60 किलो नाइट्रोजन, 80 किलो फास्फोरस तथा 60 किलो पोटाश की जरूरत होती है. नाइट्रोजन को दो बार में पौधों को रोपाई के 25 दिन व 60 दिन के अंतराल पर देना चाहिए.
कीटो से रोकथाम-
अजमोद के पौधे पर कीटों के रोकथाम के लिए रोगोर और मेटोसिस्टाक्स का घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करें. अगर पौधों पर पाउडरी मिलड्यू का प्रकोप दिखाई दे तो उसकी रोकथाम के लिए बेवस्टिन के घोल का छिड़काव करना चाहिए.
पैदावार
अजमोद के पौधे की पैदावार प्रति हैक्टर 150 क्विंटल तक की जा सकती है. यह बाजार में 60-80 रुपये प्रति किलो बिकता है.
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स्वास्थ्य लाभ
अजमोद में कैल्शियम, सोडियम, मैग्निशियम व आयरन मौजूद होते हैं. इसके साथ-साथ विटामिन-ए, ई, सी,बी-6, बी-9 आदि भी मौजूद होते हैं. अजमोद का जूस त्वचा और बाल के लिए काफी फायदेमंद होता है. कैंसर, ब्लड-प्रेशर और डायबिटीज जैसी बीमारियों की औषधि बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.